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________________ विचित्रार्थपदं सम्यक् I. 4.33a विचिन्वन्तु वनं सर्वे IV. 49.14C विचित्रा चित्रकाननाम् V. 14.6b , वनौकसः IV. 49.7b ,, ,,,34b ,, समन्ततः IV. 494d ,, परमाद्भुतैः V. 18.7d विचिन्वन्तो हरिवरा: IV. 49.17c विचित्रषु वनेषु च IV. 40.34b विचिन्वन्तौ महीं कृत्स्नाम् V. 35.24a विचित्रो नास्ति राघव III. 43.8b विचिन्वन्यो हतं पतिम् VI. II0.3d विचित्वा राममब्रवीत् III. 64.3d विचिन्वन्नाविजनासि VI. 22.4a विचिनुवं तथा सीताम् IV. 49.5c विचिन्वन्प्रायशस्तत्र IV. 48.22b विचिनोति च विन्भ्यस्य IV. 50.Ic विचिन्वंश्च ततस्ततः VII. 75.10b ,, स्म पर्वतम् IV. 50.4d विचीयन्ते महावने III. 43.32b विचिनोमि पुन: पुन: V. 13.50d विचेतनं विघूर्णन्तम् I. 30.Iga विचिन्तमानो भरतो निवर्तनम् II. 83.26d विचेतनाऽभूद्भयशोकपीडिता III. 56.36d विचिन्तयन्काम पुरस्कृतोऽपि IV. 24.9d विचेतनो वासवसूनुराहवे IV. 16.30c विचिन्तयन्ती सतत तमेव V. 32.12c विचेतव्यास्ततस्ततः IV. 43.27d विचिन्तयन्नमें चापि IV. II.76c विचेतुमुपचक्रमे III. 6I.I9d विचिन्तयामास चिरं स रावणः III. 33.24d , V. 12.1.d मुहुर्महात्मा VI. 67.84d | विचेतुं वयमाज्ञप्ता V. 60.15c रणे पराक्रमम् V. 47.25d विचेया तेषु जानकी IV. 40.67d विशाललोचना V. 32.8d विचेयाः कान नौकसः IV. 40.20b हरिप्रवीर : V. 48.39d विचेरतुश्च तां सेनाम् VI. 5.2c विचिन्त्य दक्षिणामाशाम् V. 63.23a विचेरुरुद्यतैः शैले: VI. 69.45c , राजानामचिन्त्यदर्शनम् II. 66.27d विचेहदक्षिणां दिशम् IV. 19.15d , ,, 69.2Id विचेहनैऋताम्बुदाः V.45.7d विचिन्त्य राजा विपुलं प्रदध्यौ VI. 73.2d विचेरुश्च समन्ततः IV. 49.22d , वाचा ब्रुवती तमेव V. 32.IIb विचेरुस्तत्र राक्षसा: VI. 75.63f , सीता शुद्धति VII. 96.210 विचेरुस्ते तपो घोरम् VII. 5.10c विचिन्वत महाभागाम् IV. 43.150 विचेरुः सर्पशत्रवः VI. I02.25d विचिन्वतश्च वैदेहीम् V. 18.Ic विचेष्टन्ती महीतले V. 26.2d विचिन्वतो दर्शनमेति मैथिली V. 12.2d विचेष्टन्ते विचक्षण III. 24.5d विचिन्वन्तस्ततस्तत्र IV. 50.7c विचेष्टमानमुत्प्रेक्ष्य II. I.4.Ic विचिन्वन्तः सहस्त्रशः V. 31.13b विचेष्टमाना पतिता V. 13. IOC विचिन्वन्ति तथापरे VI. 22.6ob विचेष्टमानामादाय III. 49.22c ,, समन्ततः IV. 47.2d विचेटमानो निजघान वृक्षान् VI. 67.159c , समाहिताः IV. 48.15b विचेष्यामः समाहिताः III. 65.14d विचिन्वन्तु च काननम् II. 93.20b | विच्छिद्यन्ते क्रियाः सर्वाः VI. 83.33c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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