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क्षमया पृथिवीसम: I. I.18d ,, , V. 35.9b ,, हि समायुक्तम् VI. 21.29c क्षमयैव निरस्यति V. 55.6b क्षमसे तं महीपते V. 38.37d क्षमस्व तावत्परवीरहन्तः IV. 33.56c ,, मत्संगमकालमात्रम् V. 39.54d ,, मे तद्धरिवंशनाय IV. 20.25c ,, रोषं त्यज राक्षसेन्द्र V. 52.5a क्षमस्वाद्य दशग्रीव VII. 32.30c क्षमा तु पुरुषस्य वा I. 33.7b क्षमा ते पृथिवीतुल्या VII. 37.6a ,, दानं क्षमा सत्यम् I. 33.8c ,, यज्ञाश्च पुत्रिकाः I. 33.8d ,, यशः क्षमा धर्म: I. 33.9a क्षमा यस्मिस्तपस्त्याग: II. I2.33d क्षमायां विष्ठितं जगत् I. 33.9b क्षमिष्येते तु राघवौ III. 51.28d क्षमो रावण तेन ते I. I.51b क्षम हि ते कोशलराजसूनुना IV. 15.30c क्षम यत्तदनन्तरम् VI. 31.5b ,, युक्तं च रावण III. 40.1b क्षमा वा कुरु रावण ,, 39.20b क्षयं ते रोमहर्षणम् VII. Iob.8b क्षयं दशरथस्य च IV. 55 21d ., नयति राक्षसान् V. 38.43d ,,, सायकैः VI. 71.36d ,, नाभ्येति ब्रह्मर्षे VII. 78.2IC क्षयं नीता महाराज VII. 22.27c क्षयमेव हि नः कुर्यात VI. 86.26c क्षयं यातानि सर्वशः I. 66.22d ,, यास्यन्ति मूर्तयः I. 64.20b भयव्याकुलमानसाः II.47.16b तये निदाघस्य यथा घनानाम् VI. 50.65c योऽपि वनवासस्य II. 39.34c
क्षयोऽस्य दुर्मते: प्राप्तः VII. 81.5a क्षरतश्च यथा मेघान् V. 6.33c क्षरन्ती च पयस्तत्र VII. 23.21a क्षरन्नमुग्दिग्धविवृत्तनेत्र: V. 47.15b क्षरनसड्निमथितास्थिलोचनः V. 47.36b क्षात्रधर्म पुरातनम् VII. 8.3b क्षात्रं धर्ममहं त्यजे II. I09.20a क्षात्राच्च बलवत्तरम् ]. 54.14d क्षान्तमेव हतो न सः VII. 25.27d क्षान्तं क्षमवतां पुत्र्यः I. 33.6a क्षान्त्या च वसुधासम: VII. 26.34b क्षारितश्चापकर्मणा II. 100.56b क्षितावभ्यवपद्यत VI. 77.20b क्षितावाविद्धयालङ्गुलम् V. 42.30c
, वीर्यवान् VI. 76.33d क्षितिकम्प इव द्रुमाः VI. 56.3rd क्षितिक्षमा पुष्कर संनिभेक्षणा V. 16.29a क्षितिक्षमावान्क्षतजोपमाक्ष: IV. 2431d क्षितिक्षमावान्भुवनस्य गोप्ता IV. 24.25b क्षितिस्थाश्च ववन्दिरे II. 16.39b क्षितीश्वरव्याघ्रहतोऽवसन्न: VI. I09.12d क्षितौ क्षिप्तस्य रावण VI. 103.21b
, नगाग्रानिपतन्ति केचित् V. 61.17d ., न पतिते कस्मात् V. 22.18c ,, निपतितं राजन् VI. III.46c , निपतितोऽङ्गदः VI. 31.31d ,, पञ्चत्वमागतः IV. II.46d क्षितौ पपात क्षत जोक्षिताङ्गः VI. 70.59b ,, रामोऽब्रवीत्ततः IV. 38.20b ,, विसंज्ञो निपपात दुःखित: II. 13.25d क्षिपता पादपाश्चमे IV. II.54a
,, यशनि पुरा IV. 54.14b क्षिपतोः शरजालानि VI. I07.33c क्षिपन्तीन्द्रजितं संख्ये VI. 82.14a क्षिपन्त्यपि तथान्योन्यम् V. 62.13a
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