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________________ क्षतजाई जटायुषम् III.67.1ob क्षता सवर्णाभा 23.9a क्षतजार्द्र रजोध्वस्तम् VI. 31. 36c क्षतजेन समुक्षितः VI. 67.121d क्षतप्ररूढामित्र वर्णरेखाम् V.5260 क्षति नित्यम् II. 32.29c :" 32.35a क्षतः शस्त्रैर्निरन्तरम् VII. 28.36d क्षत्रकर्मण्यभिरतः II. 118.27c क्षत्रधर्मचिकीर्षया I. 32.3d क्षत्रधर्मं चरिष्यामि III. 9.28d क्षत्रधर्ममनुस्मरन् II. 7.16b क्षत्रधर्म पुरस्कृत्य I. 75.270 क्षत्रधर्मव्यवस्थिताः VI. rog.15b क्षत्रधर्मस्थितेन च I. 44.10d क्षत्रधर्मश्रितां मतिम् II. 21.44b क्षत्रधर्मेण ते शपे I. 58.20b पालय VII. 54.14b भार्गव I. 76.3b "" " ار ܕܙ राघव VII. 72.14d क्षत्रं नोत्सादयिष्यति I. 74.21d क्षत्रबन्धुमनुव्रताम् VI. 92. 35d क्षत्रबन्धुरनिश्चितम् II. 1o6.20d क्षत्रबन्धुं सदानार्यम् VI. 88.24a क्षत्रबन्धो स्थितोऽस्म्येषः I. 56.3a क्षत्रमुत्सादयं रोषात् I. 75.24e क्षत्रं ब्रह्ममुखं चासीत् I. 6.1ga क्षत्ररूपो दुरासदः VII. 59.14b क्षत्र रोषात्प्रशान्तस्त्वम् I. 75.6a क्षत्रवेदविदां श्रेष्ठः I. 65.23c क्षत्रस्य च मतिर्मता V. 48. 13d क्षत्रस्योत्सादनं भूयः I. 74.220 क्षत्रियस्याभिषेचनम् II. 106.1gb क्षत्रियाणां तु वीराणाम् III. 9.26a क्षत्रियान्मुमहावीर्यात् VII. 16.46c "" Jain Education International २५२ क्षत्रियाणामिह धनु: III. 9.15a क्षत्रिया यत्र जायन्ते VII. 74.12a क्षत्रियाः युद्धदुर्मदाः VII. 16.47b क्षत्रिया ये च शूद्राश्र VII. 96.7c क्षत्रियाच महात्मानः VII. 37.16a क्षत्रियेण त्वया मुनिः II. 64.55b वो राजन् II. 64.23a क्षत्रयेष्वितरेषु च I. 44.21d क्षत्रियैर्धार्यते चापः III. 10.30 क्षत्रियैर्बहुभिर्वीरैः VI. 7.1a क्षत्रियो निहतः संख्ये VI. 109.18c क्षत्रिय याजको यस्य I. 59.130 क्षत्रियो वासि दुर्जयः VII. 75.18d वीर्यतो भवेत् VII. 26.33d "5 क्षत्रियोऽहं कुलोद्गतः IV. 18.22b " दशरथः II. 64.13a क्षत्रिय लोकविश्रुतौ 1. 66.5b क्षत्रिय वृत्तसंपन्नौ III. 3. 3a क्षन्तव्या न हि त्वया II. 62. 12d क्षन्तुमर्हसि सुव्रत VII. 26.5cd क्षपाचरैर्भीमबलैः सुपालिताम् V. 2.53d क्षपाद दिवस ये VI. 4. Irob क्षपा समतिवर्तत VI. 38. 13d क्षमं कर्तुमिहार्हथ VII. 6.34d कृतमिदं मया VI. 104.21d क्षमवतां वर VI. 17.27d VI. 18 17d "" " " च युक्तं च निशाचराधिप III. 37.25d चेद्भवता प्राप्तम् IV. 17.53c क्षमतरमस्ति परत्र चेह वा IV. 21. 16b क्षमतां धर्मराजो मे II. 64.38c क्षम त्वं न क्षमिष्येऽहम् VII. 58.14C क्षमं त्वं कर्तुमर्हसि III. 37.24d क्षम: पुरवरे वसन् II. 35.34d क्षममाणः प्रिय. प्रिये IV. 22.20b " "" در For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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