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________________ ब्रह्मणा परिनिर्तिम् VII. 15.38d लोककर्तृणा VII. 10. 18b वरुणेन च VI. 125.11 समनुज्ञातः I. 2. 27a समनुज्ञाताः IV. 40.3/c VI. 28.7a VII. 98.24c " " " 19 22 .. " समुदाहृतम् I. 15.15b "" " सहदेवेषु VII. 10.46c ब्रह्मणे दक्षिण दिशम् I. 14.43d ब्रह्मणोऽर्थे कृतं दिव्यम् V. 9. Ira ब्रह्मणोऽस्त्रेण योजयेत् V. 38.2gb स तु माम् V. 58.131a ब्रह्मणो वा स्वयंभुवः IV. 67.28b ब्रह्मणो हि प्रसादजा III. 3.6b ब्रह्मण्यमनुगच्छति II. 45.21b ब्रह्मण्यश्च शरण्यश्च VII. 61.4a ब्रह्मण्यः सत्यवाक्शुचिः VII. 53.7d ब्रह्मतेजोबलं बलम् I. 56.23b ब्रह्मदण्डनिभं शरम् VI. 22.5b ब्रह्मदण्डप्रतीकानाम् VI. 60.3a ब्रह्मदण्डमिवापरम् III. 30.24d زر 33 " ब्रह्मदण्डं समुद्यम्य 1. 56.2a ब्रह्मदण्डेन तच्छान्तम् I. 56.5c राघव I. 56.16d ब्रह्मदत्त इति ख्यातम् I. 33.1&c ब्रह्मदत्तं महद्वाणम् VI. 108.4c "" महीपतिम् I. 33.25b affa: I. 33.21b "" ब्रह्मदत्तवरो युधि VI. 71.3b वीरः VI. 44.33c ह्येष VI. 71.97a 33 ब्रह्मदत्तः शरोत्तम: III. 12.33b ब्रह्मदत्ताय काकुत्स्थI. 33.20c ब्रह्मदत्तास्ति ते शक्ति: VI. 69.4a ,, Jain Education International ७५७ ब्रह्मदत्ते च राघव I. 34.1b ब्रह्मदत्तो महीपालः I. 33.220 ब्रह्म कुर्मः किं कार्यम् VII. 33.12e ब्रह्मन्न प्रतिजानीमः I. 65.15a ब्रह्मन्त्रह्मबलं दिव्यम् I. 54.14C ब्रह्मपाशं कालपाशम् I. 56.8c ब्रह्मपुत्रो वसिष्ठो माम् I. 65.24a ब्रह्मभूते त्वनावृते VII. 74.1od ब्रह्मभूतो महातपाः I. 33.16b ब्रह्ममालाविदेहांच IV. 40.22c ब्रह्ममावर्तयन्परम् VII. 109.4b ब्रह्मयोनिमथोवाच VII. 55. 180 ब्रह्मयोनिर्महानासीत् I. 32.1a ब्रह्मराशिर्विशुद्धश्च VI. 4.48c ब्रह्मर्षिगणसंकीर्णम् I. 51.25a ब्रह्मर्षित्वमनुप्राप्तः I. 18.55a ब्रह्मर्षिपरिवारितः IV. 43.55d ब्रह्मर्षिभिश्चैव सुरर्षिभिश्च VI. 21.35b ब्रह्मर्षिमतुलप्रभम् I. 54.13d ब्रह्मर्षिममितप्रभम् VII. 100.2b ब्रह्मर्षिमेवमुक्त्वा तु VII. 10.rga ब्रह्मर्षिरमितप्रभः 1. 51.14b VII. 17.8d " ब्रह्मर्षिशब्दमतुलम् I. 63.200 ब्रह्मर्षिसमतेजसम् VI. 125.32b ब्रह्मर्षिस्त्वं न संदेहः I. 65.26 ब्रह्मर्षिस्त्वेवमुक्तोऽसौ VII. 11.36a ब्रह्मर्षीणां कुले जातः VI. 81. 18c तपोवनम् VII. 47.15d "" ब्रह्मर्षे विचरिष्यतः VII. 100.15d ब्रह्मर्षेः सुमहाद्युते VII. 76.17b ब्रह्मर्षे स्वागतं तेऽस्तु I. 65.1gc ब्रह्मलोकं गमिष्यति VII. 51.21b चरत्वेक I. 47.5a जगाम ह VII. 33.2od "" އ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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