SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रच्छन्नद्वीपवारिणी IV. 14.17d प्रच्छन्नमिव पावकम् IV. 17.23b प्रच्छन्नं राक्षसाधिपः III. 35.4b प्रच्छन्नशशिनक्षत्राम् II. 114.13C प्रच्छन्नश्च प्रकाशश्च V. 1. 8oc प्रच्छन्नहृदया घोराः VI. 16.5c प्रच्छन्ना ददृशुर्गत्वा VI. 29.24c संप्रकाशते VI. 58. 28b प्रच्छन्नौ च विमुञ्चेमौ VI. 25.21a प्रच्छादनार्थ भावस्य III. 42.30a प्रच्छादयत्वेष हि राक्षसेन्द्र : VI. 73.67a प्रच्छादयन्तं शरवृष्टिजालै: VI. 59.51C प्रच्छादयन्तौ गगनम् VI. 8024a प्रच्छादयामास रविप्रकाशैः VI. 73.54c शरै: VI. 67.103c " स बाणजालैः VI. 59.44b प्रच्छाद्य भगवन्भूमिम् II. 91.8c महतीं भूमिम् VI. 41.28c प्रच्छाद्यमानं रामेण II. 8.36c प्रच्छाद्यमानस्तरसा भवद्भि: VI. 14.20b प्रच्छाद्य वदनं श्रीमत् II. 72.21c " सर्वां पृथिवीं महात्मा VI. 37.37b प्रजगाम नभश्चन्द्रः V. 17. IC " "" " प्रजगुर्देवगन्धर्वाः II. 91.26c VI. 128.71C " प्रजग्मतुः पञ्चवटीं समाहितौ III. 13.25d प्रजग्मुर्मधुरां शीघ्रम् VII. 108. IC प्रजघान हयानील: VI. 58.43c प्रजङ्घः कम्पनस्तथा VI. 75.47b प्रजङ्घतरसाभ्यां च VI. 41.4ra प्रजङ्खं रणमूर्धनि VI. 43.20d प्रजङ्घसहितो वीरः VI. 76. 12a प्रजङ्घस्तु महावीरः VI. 76.14a प्रजङ्घस्य शिरः कायात् VI. 76.27c प्रजङ्खेन संपातिः VI. 43.7a Jain Education International ૬૮૬ 23 प्रजङ्गो जङ्घ एव च VI. 89. 12d वालिपुत्राय VI. 76.220 प्रजध्ने स नृपोऽरण्ये VII. 87.9a प्रजज्वाल ततो वेदिः I. 30.8c तदा लङ्का V. 4. 7a महाघोरः VII. 32.39c सघोष VI. 77.70 प्रजज्वालानलो यथा VI. 78. 1d प्रजज्ञे वर्ष IV. 66.20d प्रजल्पितमहापथम् VI. 10.5b प्रजहर्ष ननाद च VI. 45.13d प्रजाम्येष वै तूर्णम् IV. 22.6c प्रजहास महाबाहुः VI. 46.23c प्रजहौ समरोद्धर्षम् VI. 89.46c प्रजहुर्वानरास्तरून् VI. 22.54b प्रजा इच्छस्युपासितुम् VII. 104.14d प्रजाकरं गृहाण श्वम् I. 16.1gc प्रजाकामः स च प्रजाः I. 42.11d चाप्रजः I. 38.2d "" "" "" " ار प्रजाः काल इवान्तकः III. 2.gb प्रजागरपरिश्रान्तः II. 14.60c प्रजा धर्मेण पालयन् VII. 74.3od पालिताः I. 58.2od "" "" " 26 " प्रजा धर्मेण रक्षयन् I. 7.21b "" प्रजाध्यक्ष प्रजाः सर्वाः VII. 6.4c प्रजानां च हिते रतः I. 1. 12b "" 51.17d IV. 17.17d 35 " „ 18.47d प्रजानाथ चतुर्विधाः VII. 35.54d प्रजानाथः प्रजापतिः VII. 35.57d प्रजानां परमार्तिकृत् VII. 35.50b परिपालनम् II. 106.1gd " " "" "" " रक्षतः III. 6.14d VII. 78.6d For Private & Personal Use Only " " "" "" " www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy