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________________ पुनर्ययौ सूर्यसमानतेजा VII. 58.25c पुनयास्ये यथागतम् V.3.37d पुनर्लङ्कामनुप्राप्ताः VI. 29.28c पुनर्वचनमब्रवीत् VI. 20.20d पुनर्वसिष्ठं प्रोवाच VII. 65.33e पुनर्वसुमहामीनम् V. 57.3a पुनर्वसुसमन्वितः I. 29.25f पुनर्वस्वन्तरगतः VI. 71.24c पुनर्वाक्यमुवाच ह VI.II9.26d पुनवीरा मधुवनम् V. 62.20c पुनर्व्यपहनच्छीमान् III. 51.18c पुनः शब्दापयेदिति II. 59.3d , शरशतेनाथ VI. 43.30a ., सखेदं मदविह्वलाक्षी IV. 33.58c ,, संदर्शनेऽभवत् III. 44.3d , संदर्शयिष्यति VI. 25.Igd . ,, संधाय कार्मुकम् VI. 67.123h स परुषं वचः VI. 88.44b ,, संप्रययौ महीम् VII. 18.19d ,, संप्राप्तये त्वयि V. 55.5b ,, सभां च प्रययौ सुहृद्वृतः VI. 92.64d ,, समभिवर्तत V. 48.31b ,, स मुदितोत्पत्य VI. 62.9a ,, संवृतपत्राणि V. 9.37c ,, संश्रोतुमिच्छसि IV. 30.75d ,, संस्कारमापन्नाम् V. I9. IOC ,, संस्थापयाम्यहम् VI. 46.40d ,, सान्त्वैश्च मैथिलीम् III. 56.31b , सुयुद्धं तरसा समाश्रिता VI. 43.46c ,, स्वभवनं गताः VII. 18.34d पुनश्च कश्चिच्छशलक्ष्मवर्णाः V. 5.20c ,, किल पक्षी सः V. 67.4c , गिरिमूर्धनि VI. 107.64d , तत्परमसुगन्धि सुन्दरम् V. 7.15c , दुखं महदप्युपागमत् III. 63.20d पुनश्च धनुरस्पृशत् VI. 89.43b 5, नास्त्रे विहतेऽस्त्रमन्यत् V.48.50c ,, पद्मानि सकेसराणि V.7.10c ,, बाणान्निशितान्मुमोच VI. 59.100d ,, युद्धाभिमुखोऽवतस्थे VI. 98.25d ,, युद्धे स बभूव हर्षितः VI. 69.06d , रामेण समाजगाम VI. 67.88d , 74.73d संगृह्य शशिप्रभानना III. 59.46c ,, संज्ञा प्रतिलभ्य कृच्छ्रात् VI. 55. I03c ,, सोऽचिन्तयदात्तरूपः V. 9.73a ,, हर्षादिदमब्रवीद्वचः VI. 125.46d पुनश्चाचिन्तयत्तत्र V. 55.27a पुनश्चाप्तमिदं मया IV. 36.5d पुनश्चिन्तापरोऽभवत् V. 16. d पुनश्चेदमुवाच ह I. 36. I2d पुनस्तं परिपप्रच्छ I. 50.17a पुनस्तस्थौ धृतायुधः VII. 69.16b पुनस्तानि भविष्यन्ति VII. I0.24a पुनस्तान्युत्थितानि वै VII. I0.26b पुनस्तेषां च रक्षसाम् III. 25:35b पुनस्त्रिदिवमाक्रामत् VII. 30.50a पुनस्त्वयि निवृत्ते तु II. 24.34a पुंनागगहनं कुक्षिम् IV. 42.7c पुंनागान्वञ्जुलान्धवान् IV. 50.25d 'नागाः सप्तपर्णाश्च V. 15.9c पुनागैश्च सुपुष्पितैः III. 75.23d पुंनागैश्चोपशोभिताः III. 15.16d पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात् II. I07.12a पुप्लुवुः प्लवगर्षभाः V. 61.2d पुप्लुवे कपिशार्दूल: V. 1.6gc ,, गगनार्णवम् V. 57.4d ,, गोपुरस्थले VI. 40.8d ,, तस्य चोपरि VI. 40.IIb ,, बलदर्पितः VI. 28.13d Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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