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न हि तद्भविता राष्ट्रम् II. 37.2ya ,, ,, तद्विद्यते कर्म VI. I04.8a ,, ,, तस्मान्मनः कश्चित् II. 17.13a ,,, तस्य पुरा देवी II. I0.18c ,, ,, तस्यारत्यविज्ञातम् III. 7I.34a ,, ,, तातं न शत्रुवम् II. 53.32a ., ,, ताभ्यां रिपुदृष्ट: V. 26.2IC ,, ,, तारामतं किंचित् IV. 22.14c , ,, तावदतिक्रान्ता II. 52.97a ,, ,, तावद्गुणैजुष्टम् II. 43.10a ,,, तावद्भवेत्काल: IV. 2). I0a ,,, तां सूक्ष्म पक्ष्माक्षीम् [V. I.30C
,, तुल्यं बलं मह्यम् J. 54.ia ,, ,, ,, सौम्य VII. 26.51a ,, ,, तेन समं बन्धुम् IV. 15.26c ,.,, ते निष्ठुरं वाच्यः II. 97.15a ,, ,, तेऽन्यत्परायणम् II. 74.33d 7. ,, ते परितुष्यामि III. 59.23a ,, ,, तेभ्यो भयं किंचिा IV. 42.24c ,, ते राघवादन्यः 10. 35.34c ,,, राजपुत्रं तम् VI. I25.3-10
,, वानरं तेज: V. 50. I.:.c ,,,, वीर्यसौमुख्यम् VI. 104.15C ,,, सर्वभूतेषु VI. 02.30
,, नीवधकृते I. 25.17a ,, तं परिपश्यामि VI. I. a ,,,, ,, पुरुषव्याघ्रम् II. 42.2IC ,, ,, ,, वेद्मि वै राम II. 6.1.5a ,,,, त्वमीशं कृत्वा III. 53.2 IC ,,, त्वस्मिन्कुले जातः II. 61.45a ,,, त्वं जीवितस्तस्य II. I00. C ,, ,, ,, शोचितो मे . HI.74a ,,, वाग्विी :ति III. 09.421) ,,, त्वां द्रधुमिच्छामि II. 12.00 ,,, प्रातं मन्ये V. 36.9a
न हि त्वां रावणो दृष्ट्वा VI. II5.24a ,, ,, दुष्टात्मनामार्यम् III. 50.12c ,.,, दृष्टिपथं प्राप्य VI. 48.18a , , द्रक्ष्यामि यदि ताम् V. I.38c ,, ,, धर्मविरुद्धेषु [.51. I8a ,,, धर्मात्मनस्तस्य V. 55.23a ,, ,, धर्मार्थसिद्धयर्थम् IV. 33.46a ,, ., धर्माभिरक्तानाम् VII. I0.33a ,, ,, निम्बात्स्रवेत्क्षौद्रम् II. 35.17c ,, ,, निष्क्रमितुं शक्यम् IV. 52.28a ,, .नो जीवितेनार्थः II. 48.21c ., नोन्मीलनं क्षमम् IV. 49.8d ,, पश्यामि काकुत्स्थम् VI. 127.23c ,, ,, धर्मज्ञम् II. 64.67a ,, ,, मत्येषु V. 39.15a
, राघव VI. 2.3b
., वैदेहीम III. 61.2the ,, ,, , V. [3.3c ,, पश्यामि सदृशम् VI. 113.18a पश्याम्यहं कंचित् VI. 2.17a
, भूतम् VII. 45.16a
, लोके III. I9.7a ,, प्रकृष्टा: प्रेष्यन्ते V. 39.39C
, , ,. 68.22c ,,, प्रतिज्ञां कुर्वन्ति VI. I0I.51a ,,,, प्रव्रजिते रामे II. 48.26a ,,,, प्रषयिता तात IV. 65.22a ,, ,, भारः स ते राम VII. I. ISa.
भारोऽसि देवस्य III. 60.49c
भ्रातृन्समुत्सृज्य VI. 68.Igc ,, ,, मद्वाहुसृष्टानाम् VI. 71.52a ,,,, मन्ये नृशंसे त्वम् II. 73.2:a ,,,, मम हरिराजसंश्रयात IV. 2 I.Itha ,, मां केवलं रोषात् IV. I8.Ic ,,, त्वत्समीपस्थाम् II, 29.6a
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