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न शशाकोत्तरैर्वाक्यम् II. II6.23c ,, शशी सौम्यदर्शन: II. 4I.I-b ,, शान्ति मनसागमत् VII. 99.4d ,. शापस्तत्र मुच्यते I. I9.8b ,, शास्त्रबुद्धिग्रहणेषु वाऽपि V. 52.17b ,, शीता न च धर्मदा VII. 6o.id ,, शुश्राव तपस्विनी II. 26.3b ,, शुश्रूषति पूर्वजान् VII. 79.14d ,, शूद्रो लभते धर्मम् VII. 74.25c ,, शूरपल्यः परिदेवयन्ति IV. 24.44b ,, शृणोषि बलं मम VII. 19.25d ,, शेकतुरवेक्षितुम् VI. 45.16d ,, शेकुरतिकायस्य VI. 7I.42c ,, शेकुरपि वीक्षितुम् VI. 76.62b , शेकुरभिसंरोद्धम् II. 14.41c ,, शेकुरवमर्दितुम् VI. I00.4rd ,, शेकु श्वाः संस्थातुम् VII. 7.12a , शेकुरारोपयितुम् I. 31.10c ,, शेकुर्ग्रहणे तस्य I. 66.19a ,, शेकुर्वाष्पमागतम् II. 40.27b ,, शेकुर्भाषितुं वीराः VI. 69.74a ,, शेकुर्वानराः सोढुम् VI. 69.76c ,, , स्थातुम् VI. 7439c , शेकुः शमितुं विषम् V. I.21d ,, ,, समरे स्थातुम् V. 48.3c ,, ,, समवस्थातुम् VI. 58.57a ,, ,, सहितुं दीप्तम् VI. 96.2c ,, ,, स्पन्दितुं क्वचित् VI. 74.43d ,, ,, भयात् VI. 77.10b ,, शोकपरितापेन IV. 25.2a. ,, शोकेनावसीदति V. 15.53d ,, शोचामि तथा रामम् VI. 48.20a , शोच्य इति निश्चयः VI. I09.18d ,, शोच्यास्ते न चात्मा ते II. 60.21a ,, शोभनमिदं कृतम् VII. 25.14b
'न शोभार्थाविमौ बाह II. 23.30a नश्यमानं महाबलम् VII. I.I7b न श्रद्दध्यां कथंचन VI. 25.30 .. श्रमं प्रतिपद्यताम् VI. 88.73d ,, श्रमो न ज्वरो वा ते I. 22.13c ,, श्रीहाति न पाया: IV. 17.4c ,, श्रुतं व चनं त्वया VI. III.76) ,, श्रूयन्तेऽपराजिताः VII. 6.36d ,, धूयन्ते स्म निर्जिताः VI. 69.12d ,, श्रोतव्यं त्वयेरितम् II. 27.3d ,, श्लेषमभिगच्छन्ति VI. IO.IIC नष्टग्रह निशाकरा: IV. 28.13d नष्टचन्द्र दिवाकरम् IV. 43.35d नष्टचन्द्रमिव व्योम IV. 17.3c नष्टचन्द्रमिवाम्बरम् II.12.30d नष्टचित्तो यथोन्मत्तः II. 12.55a नष्टज्वलनसंतापा II. 48.3-10 नष्टतारामिवाम्बरम् II. 48.35d नष्टदुःखेव हृष्टेव IV. I.IIIC नष्टधर्मव्यवस्थानाम् VII. 8.27a नष्टनाथा गमिष्यति VI. 6.4.32d नष्टभत्री यथाशना V. 26.26d नष्टभी सराक्षसा V. 2626) नटराज्यमनोरथः VI. 50.(b नष्टव्यापारयत्रिताः II. 71.42b नष्टशोकोऽभवत्तदा VI. I05.28b नष्टशोकः समृद्धार्थः I. 44. IOC नष्टसंज्ञस्य भाषितम् VII. 89. I2b नष्टसंज्ञा बभूव ह III. 21.22b
,, भयार्दिताः VII. 22.10b नष्ट संज्ञो विचेतनः VII. 863) नष्टसंदेशकालार्थाः IV. 53.5c नष्टसोममिवाध्वरम् II. 6I.I8d नष्टहर्षा निराश्रया II. 48.35b नष्टा च मम चेतना II. 14.24b
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