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________________ २०२ कारयामास वेश्मन: II. 6.5d , सर्वदा II. 115.23d ,, सुप्रभम् VII. 61.15d कार यित्वा जटा उभौ II. 86.24b , महत्कर्म II.75.23a कारयिष्यति किं वापि II. 7.9c कारयिष्यामि ते कुब्जे II. 9.50a , ते हितम् VII. 8920d कारिताश्च प्रमाणतः I. I4.28b कारितास्तत्र बहवः I. 14 4Ic कारिताः सर्व एवैते I. 14 24a कारुण्यं कर्तुमर्हसि II. 12.34d कारुण्य भावपार्वत्याः VII. 4.28c कारुण्यात्स महातेजा: I. 58.14C कारण्येन समाप्लुत: II. I.39b कारुण्येन नृशंस्येन V. 15.49c कारुण्ये परिवर्तते VI. JII.74d ,, पर्यवस्थि म् VII. 88.10d कारुण्यं यदि ते मयि III. 60.18d ,, सदृशं कर्तुम् III. 71.24a ,, समपद्यत I. 2. I3d कार्तवीयवलं क्रुद्धाः VII. 32.36c कातवीर्यभुजासक्तम् VII. 32.5a कार्तवीर्यस्त दार्जुन: VII. 32.45b कार्तवीर्यात्प्रधर्षणम् VII. 33.21b कार्तवीर्यार्जुनस्तदा VII. 32.72b कार्तवीर्याश्च लक्षाण: VI. 49.20d कार्तस्वरवि पिता: VII. 7.32b कार्तस्वरविभूषित: V. 2.50d कार्तस्वर हिरण्मय: V. 9. I3b कार्तिकेय इति ब्रुवन् I. 37.25b कार्तिकेयं महाबाहुम् I. 37.27c कार्तिकंय वनोद्भता: IV. 8.22c कार्तिकेयस्य च स्थानम् III. 12.21a कार्तिकेयोऽमिसंभवः I. 36.19b | कार्तिके समनुप्राप्ते IV. 26.17a कार्दमेय महाबल VII. 87. I9d , , VII. 89.20b कार्मुकं चापि सायकम् VI. I08.2rb कार्मुकं ज्यासमावृतम् VI. 31.44b ,, पुरुषर्षभ VI. 67.14od कार्मुकस्य महात्मनः VI. 93.27b कार्मुकाणि च भीमानि VI. 7I.20c क मुकाद्दीप्यमानानि VI. I00.3c कार्मुकादीमवेगस्य VI. I00.7c कार्मुकै रसाधनैः II. 99.20b कार्यकारणसिद्धार्थों IV. 18.61c कार्यकारण सद्धौ च IV. 18.47e कार्य कारुण्यमार्येण VI. 113.43e कार्य कार्यविदां वर VI. I7.65b , कार्यविधौ स्थित: V. 52.3d ,, चास्मि समायात्तम् VII. 35.30c कार्यनिश्चयदर्शिनी V. II.40d कार्यः परपुरंजय: V. 52.?od कार्य तदविकरेगा II. 52.24d कार्य तन्मुक संशयम् IV. . 2.11b कार्य तस्य विकीवितम् III. 72. Igd ,, ते मम श सनम VII. I08.26b ,, न भिहितं वयः VI. 63.15b कार्यमप्रतिचिन्तितम् VI. 12.34b कार्यमस्ति न में त्वया VI. II5.181 क र्यमस्माभिरुत्तरम् IV. 33.40b कार्यमागमन प्रनि I. 18.56d कार्यमावेद्य च गिरे: V. 58.Iya कार्य पोर जनस्य च VII. 531b कार्य प्रायोपवेशनम् IV. 65.9d कार्य बुद्ध्वा जगाम ह III. 35. Id कार्य भवति शासनम् II. 2 I Id ,, वो भर्तृश सनम् II. 45.9d ,, संप्रतिपद्यन्ताम् VI. 6.15c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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