SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०१ दुर्धर्षान्समरे परैः V. 6.34b दुर्धरेण निपातिताः V. 46.221 दुर्धरेणानिलात्मजः V. 46.26b दुधरेण प्रहस्तेन V. 49. IIa दुनयं भवतामद्य VI. 65.8c दुर्निवारेण रावण III. 53.22d दुनिरीक्ष्यं पृथग्जन: I. 74.18d दुनिरीक्ष्यमिदं मत्वा V. 32.4c दुर्निरीक्ष्याणि संयुगे V. 59. I0b दुनिरीक्ष्या बभूव ह I. 49.16b दुनिरीक्ष्यां सुरासुरैः 1. 49.13d दुबन्धनमिदं मन्ये VI. 128.40 दुर्बलस्य च राघव II. I00.58b ,, तपस्विन: II. 41.2b दुर्बलान नवज्ञाय II. I00.37c दुबलेन बलीयसा IV. 54.12b दुर्बलेव यथावेगम् VII. 32.61c दुबलो हृतमर्यादः VI. 83.26c दुबुद्धिरजितेन्द्रियः III. 41.15d ,, , 48.22d दुर्बुद्धे किं विकत्थसे VI. 59.65b दुर्घातुर्बलशालिन: IV. II.70b दुर्भिक्षभयवर्जितः I. I.god दुर्मतिविबुध्यते IV. 30.6gd दुर्मन: शोककर्शिताम् V. 55.6d दुर्मना व्यथिता दीना V. 13.27a दुर्मनाः परिषस्वजे II. 87.7d दुर्मुखो दूषणः खरः VII. 27:30b ,, नाम वानरः IV. 30.33d , ,, राक्षस: VI. 8.6b दुर्मुखः पुनरूत्थाय VI. 58.21a दुर्मुखश्चैव राक्षस: VI. 9.3d ,, ,, VII. 5.35d दुर्मेधस्त्वं हि संप्राप्तान् I. 40.29a दुर्लभो हीदृशो बन्धुः IV. 7.I8c दुर्लभो ह्यस्य निरयः II. 36.27c दुर्लभं जीवितं हि वाम् III. 69.46b ,, तव जीवितम् V. 50.IId , , , , 51.42f ,, ते भविष्यति VII. 34 gd ,, दर्शनं तस्य IV. 20.18c , मम जीवनम् V. 25.17d ,, ,, बन्धुषु II. 7I.31b ,, वालिपालितम् V. 16.1b ,, हि सदा सुखम् II. I8.13d दुर्लभश्चैव कामोऽद्य VII. 27.18c दुर्लभस्त्वीदृशो बन्धुः VII. 53.2a दुर्लभस्य च धर्मस्य IV. 18.41a दुर्लभा या गतायुषाम् VI. 46.39d ,, सागराम्बरा II. 97.7b दुर्लभां प्रमदामिव III. 30.7d दुर्वर्गकरणेन च VI. I2.I7d दुर्वहामजितेन्द्रियः II. 2.9b दुर्वाक्यं प्रलपन्बहु V. 27.24d दुर्वासा भगवानृषिः VII. I05.Ib ,, यदुवाच ह VII. 50.13d दुर्वासोऽभिगमं चैव VII. I06.6c दुर्वासाः सुमहातेजा: VII. 5I.IOC दुर्वासाश्च महायशाः VII. 96.2d दुर्विगाहं हनूमता V.55.30b दुर्विगाह्य च सर्वश IV. 50.13b | दुर्विभाव्या सदा भुवि II. 24.35b दुर्विनीते विनिध्वंस VII. 30.36c graafiat afacla VII. 59.160 दुर्विनीतश्च राक्षस VI. 87.27b दुर्वनीतस्य दुर्मतेः VI, 94.37b दुर्विषह्यस्वरा घोरम् VI. I06.29c दुव॒त्तमपि कः पुत्रम् II. 6.4.64c दुवृत्ते पतिघातिनि II. 747d दुवृत्तं पापचेतसम् VII. 15.2b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy