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________________ दुराक्रामान्बलीयसः I. 21.17d दुराचारो हि यन्मृढः I 55.270 दुरात्मन्नात्मनाशाय VI. 81. 18a दुरात्मन्मम राघव VI. 79.12b दुरात्मानं समन्त्रिणम् VII. 14.4d दुरात्मानो महामुने I. 28.21b दुराधर्षं सुरैरपि VI. 20.28b दुराधर्षा VII. 100.21d दुराधर्षः I. 28.2b "" दुराधर्षां सुरासुरै: V. 2.34b 39 " VII. 40.2b दुराधर्षो भवत्येष VI. 84.15a दुरात्मा पृच्छयतामेषः V. 50.5a दुरावरं त्वदन्येन II. 10550 दुरावापा मनोहरा VI. 108.28d दुरावारं दुर्विषमम् VI. 90.66a दुरावारान्दुर्विषहान् III. 25.17c दुरारक्षतमं मतम् II. 52.72d दुरासदं मारुततुल्यगामिनम् V. 8.5b हरिश्रेष्टाः VI. 76.56c दुरासदध संजज्ञे VI. 77.9a दुरासदा राघवविप्रमुक्ता: VI. 14.13b हि ते वीराः IV. 42.23a दुरासादः सहस्रशः VI. 89.26b दुर्गकर्मविधानतः V. 53.14d 19 VI. 3.7b दुर्गगम्भीरपरिखाम् I. 5.3a दुर्गतिं वर्तयिष्यति I. 59.22b दुर्गतिः पुरुषर्षभ VII.. 63.5d दुर्गां दुःखभागिनीम् V. 68.6d दुर्गन्धं दुःसहं घोरम् V. 27.25a दुर्गमा वसुधाभवत् VI. 60.63d दुर्गमृक्ष बिलं नाम IV. 50. Sa दुर्गमेतदुपाश्रितः IV. 5 22b दुर्गा हृदयाः सदा II. 39.22b ފ 33 Jain Education International ५०० दुर्गा नाच IV. 49.2b दुर्गाण्यतितरत्यसौ VI. 128.11od दुर्गामक्ष्वाकुशार्दूल: IV. 31.16c दुर्गामन्यैर्दुरासदाम् I. 5.13b दुर्गा पर्वतदुर्गभ्याम् VI. 28.30c पादपसंकुलाम् III. 24. 12d रावणपालिताम् V. 2.26b ** در 39 सगहनद्रुमाम् VI. 28.30b दुर्गाश्व धरणीधराः V. 13.4d दुर्गे जनपदे तथा II. 52.72b विनाशिते कर्म V. 544a "" दुर्गेषु विषमेषु च IV. 47.13b दुर्जनाचरिते पथि II. 35.27b दुर्जनाप्रमेये IV. 15.22a दुर्जयं दुर्विषां च VI. 90.48c दुर्जयः करवीराक्षः III. 23.32a 26.27a "" "" "" दुर्जातेन महात्मनः II. 103.gb दुर्ज्ञेया दुर्निवेशा च VI. 44.15c दुर्ज्ञेया: कार्यगतय: VI. 12.22a दुर्दर्श च नभोऽभवत् VI. 1063od नो भविष्यति II. 40.22d दुर्दर्शमिव घोरं च IV. 50.13a दुर्दर्शसलिलाशयम् III. 2.2d दुर्दर्शों पारियात्रस्य IV. 42.20a दुर्दिनं रूक्षमारुतम् VI. 55.11d दुर्दिनेषु यथा ग्रहाः VI. 83. 10d दुर्धरं त्यक्तजीवितै: VI. 49.27d दुर्धरै: प्रवरायुधैः VII. 32.71b दुर्धर्षा हरिवाहिनी VI. 9.18b दुर्धर्षाः क्रूरकर्मभि: III. 11.84d दुर्धरत्यक्तजीवितः V. 46.28d दुर्धरस्य रथे हरिः V. 46.27b दुचैव राक्षसम् V. 46.2b | दुर्धर्षाणि भवन्ति हि I. 26.23b For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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