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________________ त्वत्तः शीघ्रमरिन्दमः V. 21.28b ,, श्रुत्वैव राघवः V. 39.12b ,, संमानमर्हति II. 26.31d , ,, V. I.107b त्वत्तो जनाः पूर्वतरे द्विजाश्च II. IC9.35a त्वत्तोऽन्यो भुवि कश्चन I. 51.15b त्वत्तो मया श्रुतं वीर VII. 6.4a ,, राजन्मया श्रुतः VII. I3. I9d त्वत्तोऽहं ब्रह्मवादिनः VII. 9.25b वधमाकाङ्क्षन् IV. I8.57c त्वत्पराक्रमकालोऽयम् VI. 74.27c त्वत्पराक्रमभीतश्च VI. 61.2gc त्वत्प्रतिज्ञामवेक्षते IV. 29.22d त्वत्प्रभावान्मया जितम् VI. III.97d त्वत्प्रयत्नो हरिश्रेष्ठ V. 37.56c त्वत्प्रसादात्समृद्धयताम् II. 2.52f त्वत्प्रसादात्समेयुस्ते VI. 120.६c त्वत्प्रसादात्समेष्यामः V. 57.47a त्वत्प्रसादादरिंदम III. 74.13d त्वत्प्रसादान्महाबाहो IV. 38.25c त्वप्रियार्थं कृतोत्साहाः VI. 2.7c ,, विनिर्दिष्टाः III. 21.2c , हतो वाली IV. 32.IIC , मद्विधाश्चैव III. 55.26c त्वत्सकाशमनुप्राप्ताः II. I0I.9c त्वत्स काशमनुप्राप्तः VII. 41.9c त्वत्स काशमरिन्दम IV. 31.33b V.67.15b ___VII. 26.47d त्वत्सकाशमिहागतः III. 59.6d V. 34.33d , 58.135d त्वत्सकाशात्तु मैथिली VII. 98.7b त्वत्सकाशान्महाबाहो VI. III,IOIC त्वत्सकाशं महाभागे V. 68.24c त्वत्सकाश महासङ्घौ V. 39.4Ic त्वत्सनाथमनिन्दिते IV. 21.8d त्वत्सनाथः सखे संख्ये IV. 39.5a त्वत्समीपं निशाचर III. 36.17b ,, महाबाहो VII. II.27a त्वत्समीपे च ये सत्त्वाः VII. 81.15a , शतक्रतो VII. 27.19b त्वत्सहायनिमित्तं हि IV. 35.1ga त्वत्सहायस्य मे वीर IV. 30.76c त्वत्सुते वरये नृप I. 70.45b त्वत्सैन्यं त्वद्वशे युक्तम् IV. 40 8c त्वथर्षभो ज्योतिमुखो नलश्च VI. 59.42b त्वद्दत्तं राज्यमव्ययम् II. 13.22d त्वदधीनमिदं पुरम् IV. 25.15d त्वदधीनं हि जीवितम् II. 87.9d त्वदधीना वयं सर्वे IV. 12.36a ,, हि नगरी II. 72.53c त्वदन्यास्त्रिषु लोकेषु V. 22.14C त्वदन्यस्याभिषेचनम् II. 23.ICb त्वदर्थकामस्य जनस्य तस्य IV. 33.51c त्वदर्थममिकामये II. 4.44d त्वदर्थमव्यग्रमिहोपभुज्यताम् II. 46.36d त्वदर्थमुपकल्पिता II. 51.2b ,, , 86.3b त्वदर्थमुपयास्यति VII. 38. Iob त्वदर्थं परिवृद्धये I. 18.57b , पालितं चेदम् VII. I2I.IOC , प्रेषयामास V. 35.52c त्वदर्थे कृतनिश्चयः V. 68.17d ,, जीवितं युधि VI. 57.16d ,, विहितं राज्ञा II. 18.36c त्वदस्त्रबलमासाद्य V. 48.3a त्वदाननरसस्याद्य VII. 26.22a त्वदाश्रयतपोबलात् VII. 98.14d त्वदृते मधुसूदन VII. 27.10b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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