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________________ ३९३ तं प्रसादय गत्वा त्वम् II. 63.45a ,, प्रस्थितं महात्मानम् VI. 73.10a , प्रस्रवणपृष्ठस्थम् IV. 47.10a , प्रस्विन्नममर्षणम् II. 26.8b ,, प्रहस्याब्रवीद्रक्षः VII. I9.24a , प्रहारमचिन्तयन् VI. 52.35d , प्रहारमनुस्मरन् III. 39.10d ,, प्रहृष्टं निधायाङ्के III. 51,22a ,, प्राप्तविजयं वाली IV. 22.2a ,, प्रासमालोक्य तदा विभग्नम् VI. 69.8ga ,, प्रेक्षमाणः सहसातिकायः VI. 7I.IO2a ,, प्रेक्ष्य भरतं क्रुद्धम् II. 78.21a , ,, रामः सुभृशम् III. 4.9a ,, बाणमहमुद्धरम् II. 63 52d ,, बाणं सहसोत्सृजत् VI. 71.8ob ,, बाष्पपरिपूर्णाक्षः II. 19.30a ,, ब्रह्मणोऽस्त्रेण नियुज्य चापे VI. 7I.I00a , वाणं तथा वाक्यम् VII. 69.3a , ,, तु तद्वाक्यम् VII. 2.27a ,, , मधु देवः VII. 61.12a ,, भार्या बाणमोक्षेण IV. 19.3a ,, भास्कराभं शिखरं प्रगृह्य VI. 74.65b , भीतमिति विज्ञाय IV. II.Ita ,, भीमवपुषं दृष्ट्वा VI. 71.38a ,, भीमवेगा हरयः VI. 45.6a ,, भूमौ देवसंकाशम् VI. 83. IIa ,,, पतितं दृष्ट्वा VI. 7I.I06a ,,, पितुरातेन II. I04.9a ,, भोगे: संपरित्यक्तम् II. I04.17a ,, भ्रातरं किंचिदुवाच सीता III. 45.39d ,, मणिं काञ्चनं दिव्यम् V. 65.8c ,, ,, हृदये कृत्वा V. 66.Ic , मत्तमातङ्गविलासगामी IV. I.127a ,, मत्तमिव मातङ्गम् II. I0I.I5a " , , V. 48.54a | तं मन्मथशरैर्विद्धम् II. II.Ia ,, ममाख्याहि पृच्छतः II. 72.13b ,, ममार्थे सुखं पृच्छ V. 38.54a ,, महर्षिगणैर्जुष्टम् III, 35.36a ,, महर्षिमुपेयुषः II. 54.34b ,, महाप्लवगं दृष्ट्वा VI. 56.9a ., महाभ्रमिवादित्यः VI. Id.za तं महेषू महाबलः VI. I08.14b ,, महोरगसंकाशम् III. 26.12a , महौघनिभं दृष्ट्वा IV. 31 40a , मातरो बाष्पगृहीतकण्ठ्यः II. II2.3ra ,, मामेवंगतं पुत्रः IV. 59.8a , ,, मत्वा II. 90.18a ,, मार्गध्वं समन्ततः IV. 41,24b ,, मां शाखाः प्रशाखाश्च V. I0.24a ,, मुक्तकण्ठमुक्षिप्य III. 4 28a , मुनि सह भार्यया II. 64.2gd ,, मूनि समुपाघ्राय II. 72.4a 1 ,, मृगं साधु वीक्षते III. 43.3b ,, मे मार्गयतस्तत्र IV. I0.19c ,, मेरुशिखराकारम् III. 22.13a ,, , VI. I7.2a , ,, I2I.27a तया क्लिन्नमिदं भस्म I. 41.20c ,, तान्यपविद्धानि II. I0.7c ,, दत्तवरा चास्मि IV. 51.18a , दत्ताभयास्तत्र VII. 5I.IIe तयाद्य मम सज्जेऽस्मिन् II. 26.22a तया धर्षणया क्रुद्धः VI. I07.4Ic ,, परिगृहीतांस्तान् VII. 51.12a , परुषमुक्तस्तु III. 46.ra ,, परुषितः पूर्वम् III. 22.7a ,, प्रीततराऽभवत् II. II8.17b ,, मिन्नतनुत्राण: VII. 8.14a , मन्ये विशालाक्ष्या V. 13.9c २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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