SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९२ तमेवमुक्त्वा जनकः I. 73.3Ic देवेशः I. 63.3a राजर्षिः VII. 59.17a राजानम् I. 42.25a रुदतीम् VI. 81.29a संक्रुद्धः IV. II.39a सुग्रीवः IV. 38.6a सौमित्रिम् III. 5.20a ,, सौहार्दात् II. 21.45a तमेवमुक्त्वोपरमम् III. 7.22c तमेव मृगमुद्दिश्य III. 44.14c तमेवं दुखितं प्रेक्ष्य II. I05.14a ,, प्रथमं मासम् VII. 88.5a , वरमङ्गना II. 13.2d ,, वादिनं रामम् VI. 41.8c ,, वानरश्रेष्ठम् IV. 67.29c , वृत्तसंपन्नम् II. I.34a शोकसंतमम् II. 76.ra ,, सान्त्वयित्वा तु VI. 50.23a तमेव शरणं गतः V. 38.32d , , ,, VI. 94.40d ,, शरणं व्रज VII. 16.33b ,, सृजति प्रभुः VI. I05.22b ,, हत्वा सबलं सबान्धवम् I. 15.34a , हयहर्तारम् I. 39.15c तमेवाद्यावगच्छामि IV. 63.12a तमेवानुपपात ह VI. 76.13d तमेवाभ्यद्रवद्रुतम् III. 30.22d तमेवैनमहं मन्ये III. 43.5c तमेवैष महाबाहुः VI. 89.18c तमेवोवाच वचनम् IV. 14.8a तमोग्रस्तेन्दुमण्डलाम् V. 19.13b तमोनाय हिमनाय VI. 105.20a तमोविमुक्ताश्च दिशः प्रकाशाः IV. 30.36d तमोविलिप्ता न दिशः प्रकाशाः IV. 28.47d तमोवृता द्यौरिव ममतारका II. 9.66d तमोषधीशैलमुदप्रवेगम् VI. 74.73b तं पत्रविटपे लीन: V. 18.25a ,, पथ्यहितवक्तारम् III. 40.2a ,, पद्मदलपत्राक्षम् V. 25.16a ,, परिष्वज्य धर्मात्मा II. 32.39a " , बाहुभ्याम् II. 34.20a , , सापरम् II. II2.26d , पर्वताग्रमाकाशे VI. 56.1ga ,, पश्य गुह संविष्टम् II. 86.IIC ,,, जगतीपते II. 34.8b ,, ,, भगवन्कंचित् VII. 3.23c , पश्यमानो नृपतिः II. 3.37c ,, पश्य सुखसंसुप्तम् II. 51.10c , पापं प्रति राघव IV. 9.23d ,, पीडयित्वा बाहुभ्याम् VI. 59.IIIC ,, पुत्रं दुर्विनीतं तु VII. 61.18a ,, ,, पूर्वकं राज्ये VII. 79.6a ,, पुत्रवधसंतप्तम् VI. 91.18a ,, पुनः प्रापयित्वा च IV. 58.35a ,, पुरस्कृत्य देवेशम् VII. 86.8c ,, पुरस्तास्थितं दृष्ट्वा VI. 70.55a ,, प्रगृह्य महाखड्गम् VI. 76.IIa ,, प्रतिग्राहयामासुः IV. 37.35c ,, प्रत्युवाच कैकेयी II. 72.14a ,, प्रदक्षिणमागम्य II. 92.17c ,, प्रमथ्य महावने III. 31.31b ,, प्रयान्तं मुनिगणाः VII. 82.16a ,, मुनि सीता VII. 49 14a ,, ,, समुद्वीक्ष्य V. I.I50a ,, प्रवक्ष्यामि भारतीम् II. 64.38b ,, प्रविष्टं रिपुं दृष्ट्वा IV. 9.12a |, ,, वनं ,, ,, 12.23a , विदित्वा तु IV. I0.17a ,, प्रसादं तु रामस्य VI. 19.27a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy