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घ्राणतर्पणमभ्येत्य II. 94.140
| चकार बुद्धिं च तदाश्रमे तदा II. 90.24c घ्राणतृप्तिकराणि च III. 35.21d
,, भगवान्मुनिः I. 3.9d चक्रम्पे चानलोपम: V. I.30b
,, भर्तारमतित्वरेण V. 48.15c ,, जगती चैव VII. 9.32a
,, भूयो मतिमुग्रतेजाः V. 61.2IC , मेदिनी कृत्स्ना VI. 107.47a ,, मतिमान्प्रभुः VI. 37.36d चकर्त रक्षेधिपतेः शिरस्तदा VI. 67.167c ,, मतिमान्मतिम् I. 2.17d चकर्षुश्च ददंशुश्च VI. 44.9a
, III. 35.34d चकर्षेव गुणैर्बद्धम् II. 45.12c
, V. I, I95d चकार उटजाशुभान् VII. 93.2d
,, V. 30.40d ,, कदनं घोरम् VI. 53.29a ,, मतिमुत्तमाम् IV. 29.28d , ,, ,, ,, 58.24c
,, ,, V. 46.Id , ,, महत् VI. 67.121b
,, माता रामस्य II. 25.IC ,, ,, ,, ,, 86.24d
,, यत्नात्कौसल्या VI. 128.18c ,, ,, ,, ,, 95.50d
,, युद्धे ह्यधिकं च विक्रमम् VI. I06.36d ,, गमने बुद्धिम् IV. 2.28c
रक्षा कौसल्या II. 25.38c , , मतिम् V. 1.8d
,, रक्षोधिपतेर्महद्भयम् V. 47.37b च ततः स्वनम् III. 44.19b ,, राघवः प्रीतः VI. I08.3IC ,, यथोक्तं हि II. 56.240 ,, , सख्यम् IV. 57.12c चरितं कृत्स्न म् I. 4 Ic
, राज्यं सुमहान्महात्मा VII. 79.20c चरितव्रतः I. 4.7d
, रामः परमाहवाग्रे VI. 59.143d चैवोत्तमनागमूर्धनि II. II2.2gd ,, ,, सर्वाणि I. 77.2?a ,, ज्यास्वनं वीरः IV. 33.26c ,, रामो धर्मात्मा VII. 99.18c ,, तद्वचः श्रुत्वा III. 47.17a ,, रुदती मन्दम् IV. 16.IIC
तस्मिन्ह रिवीरमुख्ये V. 48.35b ,, रूपं पवनात्मजस्तदा IV. 66.38d तां हृदि जननीं प्रदक्षिणम् II. 21.64d रौद्रीं स्वां बुद्धिम् III. 9.2IC तीव्रां मतिमुग्रतेजाः IV. 30.85c
लक्ष्मणः क्रुद्धः VI. 67.100c ,, ध्यानमास्थितः I. 2.22d
लक्ष्मणश्छित्त्वा II. 55.15c ,, न तु संभ्रमम् VII. 34.14d
विधिवद्धर्मम् VII. I09.30 , नादं घननादनिःस्वनः V. 47.21b ,. विविधाः कथाः III. 17.4d ,, निनदं भूयः V. 46.26c
वेगं तु महाबलस्तदा V. 47.30c ,, पश्चाद्भरतो यथावत् II. II5.24d
शरजालेन VI. I07.42a ,, पुरुषोत्तमः IV. 40.58d
,. सख्यं रामेण I. I.6ra , बलिमुत्तमम् II. 56.32d
,, सज्यं धर्मात्मा III. 20.6c ,, बहुधा गात्रे III. 51.5c
,, सर्वान्मवयस्कबान्धवान् II. I03 48c . बहुमिवृक्षः VI. 86.19c
,, सा महत्पापम् II. Ior.6c
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