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________________ सुखा नः शर्वरी धीमन् II. 89.7a सुखानामुचितस्यैव II. 13.11a सुखानामुचितो नित्यम् V. 36.21a सुखानिलोऽयं सौमित्रे IV. 1.1oa सुखार्थं चापि लक्ष्मण II. 97.6b सुखामर्हमखिलं जगत् II. 2.5d सुखार्हस्य महार्हस्य IV. 4.13a सुखासुखम् IV. 22.8a सुसाह जनकात्मजा II. 54.26d 23 दुःखकर्शिता VI. 64.34b सुखा दुःखसंतप्ताम् V.15.20 दुःखितां ज्ञात्वा V. 16.2Sc सुखाः कृपणा व II. 61.1od सुखा लम्प्स्यते गुरुम् VI. 33.33d मुसा लोकप्रियावा II. 51.16b सुखासीनी मुनिश्रेष्टम् I. 51.3c मुखास्वादमनुत्तमम् VII. 775d सुखितमनाः प्रतिसंक्रमं प्रपेदे V. 38.7od सुखिता बत तं कालम् II. 42.32a विचरिष्यन्ति II. 51.230 86.21c "" 25 सा भविष्यति III. 58.7d सुखितां त्वां करिष्यन्ति II. 10.31a सुखिता: प्रविशेमहि II. 86.22d सुखिनश्च समृद्धाश्र VII. 51.20a सुखिनी कचिदार्या च II. 100100 सुखी बत सुभार्यश्च II. 53.11a भव मया विना VI. 16.25f " " " "" " " " در "" महाबाहो V. 58.34a VI. 63.35c " " ,, सुहृद्वृतः I. 21.3d भविष्यामि तवास्तु निरृतिः II. 34.59d सोऽतितरिष्यति V. 1. 88d " सुखेन मत्वाहमितः पुनर्व्रजे V. 41.gd व्यतिचक्रमुः I. 63.gb १२७५ Jain Education International सुखेप्सुः सुहृदां मध्ये VI. 12.6c सुखद भविष्यति II. 92. 3od III. 56.13b सुखोदितमरिंदमम् VI. 121.1b सुखोपविष्टं राजानम् I. 52.6a रामं तु IV. 8.15a सुखोषिताः स्म भगवन् III. 8.5a सुखोषितोऽस्मि भगवन् II. 92.5a सुगन्धमाल्यैर्वादित्रैः VI. 127.20 सुगन्धि दुरतिक्रमम् IV. 50. Iod मम रामस्य II. 64.71a सुगन्धिर्विविधैौषधिः VI. 22.38d सुगन्धि शुभमव्रणम् IV. 1.rogb सुगन्धिषु महत्सु च IV. 37.8b सुगन्धिः श्रमनाशन: VII. 31.2gb सुगन्धीनि च माल्यानि IV. 26.26a सुगुप्तामनरण्येन VII. 19.7a सुग्रीव इति विश्रुतः III. 75.27b ,, इव रावणः VII. 34.44b 33 ܕܕ " शान्तारिः IV. 28.gc एव विक्रान्त: IV. 23.4c कुरु तं शब्दम् IV. 14.17a तव भाषितम् IV. 36.16d सुग्रीवतारासहिता: IV. 25.52c सुग्रीव दोषेण न माम् IV. 22.3a सुग्रीवनीलाङ्गदजाम्बवन्तः VI. 74. IC सुग्रीवनेत्रे धर्मात्मा VI. 46.34c सुग्रीवपत्न्यः सीता च VI. 128.220 सुग्रीवप्रतिपादनम् I. 3.24b सुग्रीवप्रतिसंसर्गम् VI. 32.1c सुग्रीवप्रमुखान्हरीन् VI. 12.23d सुग्रीवप्रमुखा रामम् VII. 37.19c सुग्रीवप्रियकामार्थम् IV. 15.18a सुग्रीवप्रिय कामेन IV. 17.49a सुग्रीवप्रियकाम्यया VII. 35.11b "" دو " "" 39 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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