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सुकेतोरपि धर्मात्मा I. 71.6a सुकेशतनया देव VII. 6.25a सुकेशतनयान्प्रति VII. 6.13d मुकेशतनयान्विभुः VII. 5.15b मुकेशतनया रणे VII. 6.29b मुकेशतनयास्तदा VII. 5.33d मुकेशतनयैर्देव VII. 6.14a सुकेशपुत्रानामन्त्र्य VII. 5.12c मुकेशपुत्रैर्भगवन् VII. 6.4a सुकेशं ताम्रमूर्धजा III. I7.10b
, धार्मिक दृष्ट्वा VII. 5.1a ,, प्रति सापेक्षः VII. 6.gc
, राक्षसं जाने VII. 6.20a सुकेशी केशसंवृतम् V. 31.16d सुकेशी मृदुभाषिणीम् IV. 1.30d सुकेशे संहतस्तनि III. 46.22b सुक्षेत्रा सस्यमालिनी I. 32.Tod सुखकामः सुखंधितः VI. 83.34b मुखतन्त्रो न चालसः II. I.27d सुखदुःख सहः काले IV. 22.20c मुखदुःखे भयकोधौ II. 22.22a मुखदुःखोपसेवनम् VII. 98.17b मुखप्रसुप्त कालाग्निम् VI. 7I.53a.
, भुवि कुम्भकर्णम् VI. 60.40c सुखप्रसुप्तान्विहगान् V. 14.9c सुखभागी न दुःखार्हः II. 88.19c सुखभाजः प्रजाः स्मृताः II. I05.3rd सुखमत्र वसिष्यामि VII. 54.12a मुखमस्म्युषितो निशाम् III. II.72b सुखमस्य महात्मनः VII. 47.17d सुखमात्मनि वा प्रियम् II. 34.45b सुखमापुर्मुहूर्त ते VII. 21.23a सुखमाप्नोत्यनुत्तमम् V.58.gob सुखमायुष्मतामहम् II. 15.17d सुखमास्स्व रमस्व च II. 16.20d
| सुखमिव सा विबभौ विभावरी च I. 22.24d सुखमेकं भविष्यति II. 53.12b सुखशीतमनामयम् III. 73.17b सुखसुप्तस्य ते राजन् III. 31.45c मुखमुप्तं समासाद्य VI. 31.20c मुखसुप्तः परंतप V. 67.6d सुखसुप्ता त्वया सार्धम् V.67.3a सुखस्पर्शश्च मारुतः VI. I28.1(02d मुखस्पर्शी हिमावहः IV. I.53b सुखहस्ताः मुशीघ्राश्च VI. 128.13c सुखं गमिष्यामि हरीश्वरालयम् V. 4I.13d ,, तद्धि तपोवनम् I. 61.3d ,, तपश्चरिष्यामः I. 61.3c ,, दुःखमभाषताम् IV. 7.2.1d ,, परिहृतं मोहात् II. 73.5c ,, पश्यथ दुर्धर्षाः VI. 100.54a ,, पारे समुद्रस्य VII. 39.5c ,, प्राप्स्यन्ति लक्ष्मण III. 64.58d ,, मे जीवितं चैव IV. 8.39c ,, राघवनन्दन II. 86.3d , वत्स्यामहे निशाम् I. 23.I7d ,, बने निवत्स्यामि II. 27.12a ,, वसति राघव II. 100.46d
, वा पतिपौरुषे II. 20.38!) ,, विश्रम्य गम्यताम् V. I.I05) ,, समाहर्तुमहं व्रजामि VI. 63.55b , स विहरिष्यति IV. 41.47d , सुखार्दोऽनुवभूव राघवः VI. II8.21d ,, संतारितौ मया II. 86.24d ,, स्वपिति निश्चिन्तः VI. 60.I6c , स्वप्स्यन्ति निर्भयाः VI. 92.Iod ,, स्वप्स्यामहे वयम् I. 47.10b ,, हि कारणं श्रुत्वा IV. 8.42a
,,, मे नास्ति यतो विहीना V. 32.TOc | सुखाद्विहीनं बहुदुःखपूर्णम् V. 28.4a
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