SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1084
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवृतो परिघाकारो V. 10.18a. संवृत्तश्च मनोरथ: VI. I2755b संवृत्तस्त्वं ममाग्रत: VI. 32.d संवृत्तः पश्य लक्ष्मण III. 64.56b संवृत्ता यदि ऋता सा III. 58.9c संवृत्तेभ्यस्ततस्तत: VI. 83.38) संत्तयं परंतप I. 45.35 संगद्ध इन पावकः VI. 61,251 संवेश्य जगतीपतिम् II. 60.) , शयने चाय्ये IIL76.5a संवेष्टितमिवात्यर्थम् III. 69.25a संवेष्टयमाने लाले V. 53.71 संव्रजत्यविचारयन् III.13.34b संशयश्च जये नित्यम् VII. J8.17aa संशयस्थमलक्षणम् II. I06.20b संशयस्थमिदं सर्वम् VI. 51.16c , , ,, 64.Ita संशयं गन्तुमर्हसि I. 21.20d ,, हरयो गताः IV. 50.14d संशयान्नष्टरांशयाः IV. 11.275 राशये न्यस्य जीवितम् VI. II6.13b ,, स्थाप्य तिष्ठति VII. 9.IId " , . , 12.12b ., , मां चंदम् VI. 41.3a संशयो जीवितस्य च III. 21.60 ,, भवतीह गे II. 97.26d ., मे न रोचते V. 30.350 ,, हि मयानघ II. 30.8d संशान्तानां करोत्ययम् VII. 36.20d संशितव्रतमेकाग्रं II. 54.IIC संश्रद्दधानाजगत: प्रधानान् V. 5.15b संश्रयन्ते परस्परम् VI. 7I.7d संश्रयिष्ये सुरर्षभाः VII. 80. Id संश्रवे मधुरं वाक्यम् V. 33.Ic संश्रिता मामक वनम् IV. II.55d संश्रिता हरिपुंगवाः IV. 37.4d संश्रिताः केचिदालयाः IV. 40.25d संश्रित्य तस्मिन्निषसाद वृक्षे V. 16.32c , निकृति विमाम् II. 39.7d ,, गृह्णता पाणिम् VI. 32.21a संवतं जनकात्मजे III. I0.17b संश्रुत्य च तपस्विभ्यः II. 75.26a. .. ,, न शक्ष्यामि HII. I0.I7c ,, ,, पिनुर्वाक्यम् II. 21.42a . शैब्यः श्येनाय II. I4.4a संश्रुत्येन्द्रजितो वधम् VII. I.275 सश्रोतुं तव राघव VII. 35.18b संसक्तकुसुमोच्चयम् V. 9.64d संसक्तशिखराः शैला: IV. I.I9c संसक्तः किंचिदापाण्डुः III. 16.19c संसक्तानां महाद्धम् VI. 76.18c संसक्तां धूमजालेन V. 15.32c संसक्ताः सर्वतो दिशः VI. 90.5b संसक्तो धूमकेतुना VI. 102.35b संसद्यमानो मम बाण जाले: VI. 59.91d संसर्गमिति जानकी V. 38.4d संसर्गेण च मानद VI. II6.rob संसाधयति वेगेन II. 64.74C संसाधय सुहृजनम् IV. II.34d संसिक्ता मधुगन्धिनः IV. I.76b संसिद्धं प्रियराघवम् II. 40.8b संसिद्धः प्रेत्यभावाय IV. 22.19C संसिद्धार्थाः सर्व एवोग्रवीर्याः VI. II.30c संसृज्य बाणवर्ष च VI. 73.50a संस्करिष्यन्ति भूमिपम् II. 86.18d संस्करिष्यन्ति राघवम् II. 51.20d संस्कारक्रमसंपन्नाम् IV. 3.32a संस्कारयितुमारेमे VI. III.I032. संस्कार विधिपूर्वकम् VI. III. Iord | संस्कारः क्रियतां भ्रातु: VI. III.92a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy