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________________ संरब्धो रक्तलोचनः III, 59.20b रावणस्तदा VI. 59.82b वाहिनीपतिः VI. 17.30b संरम्भशिक्षाबलसंप्रयुक्तौ VI. 40.18c संरम्भस्त्यज्यतामयम् IV. 35.12d संरंस्यसे वीतभयः कृतार्थः V. 28.14d संरुरोध दिशो दश VI. 55.1gb संरुद्धप्राण एव च VI. 91.25d संरद्धस्तैस्तु परितः V. 30.28 संरुध्य भृकुटिं ततः III. 30.16b संरूढकक्ष्यां बहुलाम् III. 54.13a संलीनमीनविहगाः III. 23.13c संवत्सर गणान्बहून् I. 43.gd "2 39 VII. 53.1od संवत्सरमतोऽधिकम् VII. 102.14b संवत्सरमथोषितः VII. 23.15b 102.13b संवत्सरमथोषिता VII. go.2ob संवत्सरमथो साग्रम् VII. 92. rge संवत्सरशतान्यपि I. 64. 18b संवत्सरसहस्रं तु VII. 16.34 संवत्सरोषितस्याद्य VII. 89.20c संवदन्तोपतिष्ठन्ते II. 67.26c संवर्त इव लोकानाम् VII. 22.18a संवर्तक इवानलः VI. 53.27d संवर्तयऽशत्रुवधे समर्थः IV. 27.48d संवर्तयत्सुसंक्रुद्धः V1. 98.20c संवर्तयतुमर्हसि I. 69.12d संवर्तयित्वा तत्कर्म I. 16.24c संवर्तस्य तु राजर्षिः VII. 90.140 संवर्त चैव दुर्धर्षम् I. 27.18c नाम भरत: VII. 101.7c परमोदारम् VII. 90.4c संवर्तेन विदारिता: VII. 1or.8b संवर्तो नाम ब्रह्मर्षिः VII. 18.3a "" دو 23 Jain Education International १२४८ संवत मार्गमावृणोत् VII. 18.14d संवर्त्य मुष्टिं गिरिशृङ्गकल्पम् VI. 69.93b सहसा जघान VI. 70.58c "" संवसेच्छ भुसेविना VI. 16.2d संवादमसितापाङ्गि V. 42.70 संवादः कृत इत्युत V. 42.6d संवासात्परुषं किंचित् II. 39.38a संवाद्दन्त्यः समापेतुः II. 91.54a संविधत्स्व विधानज्ञ I. 37.4c संविधानं यथाहस्ते VI. 37.ga संविधाय यथान्यायम् VI. 10.25e संविधास्यति कार्याणि IV. 26.6a संविभक्तमहापथाम् II. 51.21b संविवेश तदा रामः VI. 19.41c महाबल: VI. 31. IIh संविवेशाला भूमौ II. 10.6a संविवेशाश्रमे सुखी III. 30.38b संविश्य भूमौ कैकेयी II. 9.57c संविष्टाश्चापराः स्त्रियः V. II.6d संवीतं मृत्युदामभिः IV. 19.27d रक्तवाससा VI. 40.6b संवृतं काञ्चनं घटम् VI. 128.55b " गिरिसंनिभैः IV. 28.2d ور 20 >> " ދ परमासनैः II. 10. 15b विविधैः पुष्पैः II. 17.5C 22 स्वैरथानीकैः VII 27.44a संवृतानि च भूतानि VI. 55.20a शरैर्भृशम् VI. 88.75b संवृतान्भूमिभागचि V. 53.20a संतापणवेदिकाम् II. 42.23b संत मृगशवाक्षीम् V. 17.260 संवृते तमसा च वै VI. 89.36b नरके घोरे VII. 53.6c " "" संतो द्रुमवासिभिः IV. 39.35d राक्षसेन्द्रस्तु VII. 32.23a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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