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________________ " संगतौ बलसंयुतौ V. 1. 17b संगत्या नापराध्नोति II. 79.3c भरतः श्रीमान् VI. 125.17a संगमं त्वमिच्छामि I. 48.18c संगमादाहृतं जलम् II. 15.5d संगमिष्यसि रोहिणी V. 37.27b संगमे तत्र पर्वतः IV. 42.15b संगमो मे सदा त्वया II. 29.17b संगम्य कपिमुख्येन IV. 2.12 "" د. . " 33 " यथोचितम् IV. 39.42b हनुमान्कपिः IV. 50. Ib संगम्याथ निशाचरः VII. 28.36b संगृहीतमनुष्यश्च II. 9.35a संगृहीतं तु रक्षसा VI. 127.62b संगृह्य तं तु दौहित्रम् VII. 28.20a नरपुंगवः VI. 88.51b परमाहवे III. 28.26b पादौ पितुरुग्रतेजाः IV. 31.37a पुरुषर्षभ I. 41.2b 29 संग्रहः क्रियतां नृप VI. 17.42d संग्रहानुग्रहे रतः V. 35.21a संग्रहेणाकरोत्सर्वान् II. 56.29c संग्रामशिरसि स्थितम् III. 24.25b संग्रामः सुमहानभूत् VI. 58. Iob संग्रामाणाभकोविदम् I. 20.24d संग्रामात्पुनरागत्य II. 2. 370 संग्रामान्नष्टचेतनः II. 9.16b संग्रामेष्वनिवर्तिनः II. 64.41b IV. 36.16b संग्रामे समुपोढे च II. 75.39a संघर्षमाणाः प्लवगाः VI. 42.10c संघर्षादिव पुष्पिताः IV. 1.91d " " " किल शंकरम् VII. 6.24b च ततस्ततः VI. 66.8b 67.8b "" در " Jain Education International १२३८ संघर्षाद्वर्वमोहितों IV. 61.3b संघटं परिगृह्य तौ II. 55. 18b संघातमिव भास्वरम् VI. 71.4b शोकानाम् V. 17.29C संघुष्टानि समंततः II. 31.4d संचकर्ष तदा कुब्जाम् II. 78.16c संचक्रमाते बहु युद्धमार्गे VI. 40.20b संचचक्षेऽथ मेघावी II. 1. 43 संचचार कृताञ्जलिः IV. 34.5b संचचाल च मेदिनी VI. 51.33d 95.43d " चलद्रुमः VI. 102.4ob पुन: पुन: VI. 59.67b लवंगानाम् VI. 75.59a मही सर्वा VI. 99.70 संचचालासनात्तूर्णम् II. 90.4c संचचालेव मेदिनी VI. 69.38d "" 127.21b संचरन्तस्ततस्तत: IV. 1. Iord संचरिष्यन्ति भद्रं ते I. 47.6c संचितः कुशलैर्द्विजैः I. 14.2gb संचिता देवशासनात् IV. 66.33b संचितान्यस्य वित्तानि II. 75.43a संचिन्तयितुमर्हति IV. 65.32d संचिन्त्यतां हि पिनेश IV. 38.24a संचिन्त्याहं पुन: पुन: II. 46.8b संचुकोप महाकपिः VI. 70.45b संभे तेन तदाभिभूतः VI. 67.18c संचूर्णिताङ्गाथ गदाप्रहारै: VII. 7.53b संचेरतुर्मण्डलमार्गमाशु VI. 40.21d संचोदयति राजानम् II. 16. 160 संचोदयामास हरिप्रवीर: IV. 65.35c चोदयात्वरितम् IV. 37-33c संचोदिता प्रागपि साधुसिद्धै: V. 29.6b संचोदितो रथः शीघ्रम् III. 22.23a " 21 :9 "" " 52 ܕܐ For Private & Personal Use Only ور " www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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