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________________ १२२८ स सत्यवचनाद्राजा I. I.23a ,, सत्यवचनाद्वीरः II. II0.12a ,, सत्यवाक्यो धर्मात्मा II. 34.9a ,, सप्त कक्ष्या धर्मात्मा IV. 33.19a ,, समर्थस्तव प्रीतिम् IV. II.r3c ,, समर्थो महाप्राज्ञः IV. 11.22a ,, समर्थोऽर्थसाधने V. 41.6d ,, समाश्वासितस्तेन V. 63.4a ससमित्कुसुमोच्चया I. 30.9b स समीक्ष्य परिक्रान्तम् III. 64.37c , समीपस्थितो राज्ञः II. 14.45a , समुत्थाय पतितः VI. 96.27c , समुत्पाटयामास III. 30.17c ,, समृद्धां मया सार्धम् II. I02.3a ,, सम्यग्वर्तते पथि VI. 63.7d ससर्ज चान्यानिशितान्पृषत्कान् VI. 59.98d दीप्तं तममित्रमर्दनम् IV. 16.38c , निनदं महत् III. 20.24b ,, निशिताञ्छरान् VI. 67.II6d __ " " 99.43d , , 45b निशितान्वाणान् III. 25.17a VI. 88.17C ,, परमक्रुद्धः VI. I02.20c , बाण युधि वज्रकल्पम् VI. 7I.100d , रोधिपतेर्वधाय VI. 59.1OId ,, विविधाञ्छरान् VI. 99.48b ,, राक्षसेन्द्राय VI. 88.370 , विशिखाराम: VI. 102,60c ससर्जासिगदाधरः VII. 7.34d ससर्जास्त्रं महोत्साहम् VI. 99.46c ससजेन्द्रजितं प्रति VI. 90.7od ससोरसि मार्गणान् VI. 90.44d स सर्वमखिलं राज्ञः VII. 51.23a .. सर्वा देवतास्त्यक्त्वा VII.29.22a | स सर्वार्थिनो दृष्ट्वा II. 16.27c ,, सर्वान्सान्त्वयामास VI. 60.66a ,सर्वाभरणैर्युक्तः V. 18.6a ,, सर्वायुधसंपन्नः VI. 69.5c ,, सर्वाश्च दिशो वाणैः III. 28.6a ,, सर्वाः समतिक्रम्य II. I7.21a ,, सर्वैः सह बन्धुभिः IV. I0.20d ,, संक्षिप्यात्मनः कायम् V. I.156a ससंग्रहं सिद्धयति वै कपीन्द्रः VII. 36.45b स सङ्ग्रामो महाभीमः VI. 93.8a ,, संचुकोपातिबलो मनस्वी VI.71.57c ,, संज्ञा इव तत्रासन् I. 74.16a ,, संज्ञामुपलभ्यैव II. 62.3a ,, संज्ञां प्राप्य तेजस्वी VI. 76.3a » , , , , , 27a ,, संतीर्य महाबाहुः II. 46.29a ,, संधाय महातेजान् VI. 71.80a ससंध्य इव तोयदः IV. 12.4rd ,, , , VI. 67.91b ..संपूर्णमनोरथम् VII. II0.15b ,, संप्रतस्थे धर्मात्मा II. 93.3a ,, संप्रहारस्तुमुल: III. 27.Ioa , , 51.2a , VI. 42.47a , 86.9a ,, 89.24a ,, संप्राप्य चिरात्संज्ञाम् VI. 70.57a ,,, धनुष्पाणिः VI. 85.34a ,, , महातेजाः VI.73.17a ,, संप्रेक्ष्य च धर्मवित् II. 82.4b ,, संभ्रम प्रस्तविषण्णराक्षसाम् V. 54.42a ,, संभ्रमात्त्वरराम I. 48.23a ,, संभ्रान्तश्च निष्कान्तः VI. 33.7a ,, संयुगे राघवगन्धहस्ती III. 31.46d ,, संरब्धस्तु सौमित्रिः VI. 90.55a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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