SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1062
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२७ सशरीरो यथाहं वै I. 57.20c सशृङ्गाविव पर्वतो II. 43.14d सशरी वामचापभृत् VI. 85.25b सशैलखण्डां सपुरोपकाननाम् II. 34.56b ,, शरैरतिविद्वाङ्गः VI. 88.20a स शैलजीमूतनिकाशरूपैः Vl. 59.9a ,, शरैरद्य वदनैः VI. 95.16a सशैलवनकानना III. 23.6b स शरैरभिविद्धाङ्गः VI. 43.34a IV. 18.6b , शररर्पितः क्रुद्धः III. 28.19a , 39.9d ,, शरैराहतस्तेन VI. 88.32a , 66.32b ,, शरैभिन्न सर्वाङ्गः VI. I02.6ga VI. 26.13b ,, शरैः पूरिततनुः V. 44.15a , 41.56d , ,, शर जालानि VI. 103.5a ,, I07.47b ,, ,, सूर्यसंकाशैः VI. 73.35a सशैलवनकान नान् IV. 47.3d ,, ,, ,, ,, 47a सशैलवनकाननाम् IV. 40.19b , शरो रावणं हत्वा VI. I08.20a VI. 8.4b ,, शरौघसमायस्तः VI. 59.70a , 42.3b ,, शरौघान वसृजन् VI. 82.I7c स शैलशिखरामेण VII. 14.28a सशल्यः क्लिश्यते प्राणः II. 63.46c ,, शैलश्रृङ्गाभिहतश्चुकोप VI. 67.6ra ,, ,, स समासाद्य VI. IOI.44a ,, शैलश्रृङ्गाभिहतो विसंज्ञः VI. 67.67a सशल्या वणिनस्तथा VI. 91.23b सशैलसागरानूपम् III. 35.IHa. स शल्येन महारणे II. 18.32d स शैलः समकम्पत VII. I6.25d ,, शशास जगद्राजा I.7.23e सशैला कम्पिता भूमिः IV. 36.9c ,, शाटी परितः कय्याम् II. 32.37a स शोकं त्यज राजेन्द्र IV.7.13c ,, शापः केकयी घोर: VI. 11.25c ,, ,, धारयस्वेमम् II. 3449c ,, शास्ति चिरमैश्वर्यम् VI. 357c सशोकं नृपतिं तथा II. 34.18d सशिष्य आजगामाशु VII. 93.Ic सशोकानां मुमूर्षया II. 48.Id स शिष्यहस्तादादाय I. 2.8a स शोचेत्फलवेलायाम् II. 63.9c सशिष्यान्सुहृदथैव I. 59.8a सशोणितपरितः VI. 49.15b सशिष्यावब्रवीद्धृष्टौ VII. 93.41 स शोणितसमादिग्धः VI. I03.7a सशिष्याः सपुरोगमाः VII. I.16b ,, श्रीमानाप्तदक्षिणेः VII. 99.9d स शुभमतिः सह रामलक्ष्मणाभ्याम् IV. 4.35d ,, श्रुत्वा पुरुषव्याघ्रम् II. 50.34a सशून्यामिव निःशब्दाम् II. 57.6a ,, ,, राक्षसाधिपः VI. 88.38b सशूरः पुरुषव्याघ्रः II. 44.I2a ,, ,, वानरेन्द्रस्तु V. 35.35c स शूरो राक्षसद्वयम् VII. 65.IId श्वतवालव्यजनः III. 35.8a ,, शूलनिभिन्नमहाभुजान्तरः VI. 67.20a ,, षट् चाष्टौ च वर्षाणि II. 20.31a , शूलनिस्त्रिंशपरश्वधानि VI. 73.55a ,, षट्शतसमुच्छितः VI. 65.41b , शूलमाविध्य तडित्प्रकाशम् VI. 67.19a |, सज्जायुधतूणीरः VII. 6.63c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy