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________________ ११७७ सत्यं धृतिपराक्रमो IV. 17.29b ,, नेति मनस्तापः II. 22.10c ,, पश्याम्यहं ध्रुवम् II. I09. Igb , प्रतिशृणोमि ते V. I.148d , ,, ,, 58.28b , , ., VI. II9.13d , ,, वः VI. I00.48b ,, बतेदं प्रवदन्ति लोके V. 28.3a ,, ब्रूयान्न चानृतम् III. 47.17d ,, , , V. 33.25b ,, राक्षसराजेन्द्र V. 51.38a वचः सानुनयं च विप्रः II. I09.37d वा यदि वानृतम् II. I2.46b ,, सत्यपराक्रम VI. II7.12d ,, समनुवर्तन्ते II. I09.22c ,, समनुवर्तस्व II. 14.8a ,, सर्वज्ञया हितम् IV. 17.41b सत्यः सत्याभिसंधश्च IV. 22.9a ,, सत्यपरायणः II. 2.29b सत्यात्पाणिगृहीतश्र IV. 55.5a सत्यानुरोधात्समये II. 14.6c सत्यानास्ति परं पदम् II. I09.13d सत्यार्जवशमोपेतैः VII. 5.Ila सत्ये धर्म इवापरः I. I.Igb ,, धर्मः प्रतिष्ठितः II. I4.7b ,, ,, सदाश्रितः II 109.13b ,, धर्मे प्रतिष्ठिता I. 34.IIb सत्येन च महाबाहो II. 25.6c , च शपाम्यहम् IV. 8.27d , धनुषा चैव II. 21.16c , परिगृह्णाति IV. 30.72c ,, महता राम II. 18.40c ,, समयीकृतम् II. I09.16d सत्येनायुधमालभे II. 97.6d सत्येनावाप्यते परम् II. 147d सत्येनाहं ब्रवीमि ते V. 38.65b , शपे राजन् VII. I07.6d सत्येनैतद्रवीमि व: VII. 86.14d सत्येनैव च ते शपे II. 51.4d , शपाम्यहम् IV.7.22d सत्ये लोकः प्रतिष्ठितः II. I09.Iod सत्योऽयं प्रतितकों मे VI. I04.7c स त्वनेकाग्रहृदयः II. 71.34a ,, त्वपश्यद्विनिष्क्रान्तम् II. 14.32a ,, त्वमद्भुतदर्शनम् V. I.I79b ,, त्वमभ्युपपद्य माम् VI. 62.18b ,, त्वमर्थस्य हीनार्थः VI. 88.14a ,, त्वमस्मद्धितार्थाय VII. 6.16a ,, त्वमाविश्य भाषते II. 33.10b , त्वमिक्ष्वाकुनाथं वै V. 22.17a ,, त्वमिन्द्राशनिप्रख्यैः VI. 86.4a , त्वमुज्जास्यमानासु VII. I04.IIa ,, त्वमेवंविधं यज्ञम् VII. 83.13a ,, त्वया नानृतः कार्य: VII. 22.39c , ,, नावमन्तव्यः II. 39.25a ,, ,, निहतः पाप: VII. 71.8a ,, ,, निहतो युद्ध VII. 24.31a ,, त्वयापि सदा मान्य: II. I05.38c ,, त्वयोक्तः पतिर्देवि II. 9.I7c ,, त्वर्जुनप्रयुक्तेन VII. 32.6za , त्वं केसरिणः पुत्रः IV. 66.29c , ग्राम्येषु भोगेषु IV. 34.15a ,,, जीवति मुग्रीवे VI. 92.15a ,,, तत्र निवासाय VII. 3.30a ,,, धर्मपरो भूत्वा I. 75.8a ,, धर्म परित्यज्य II. 12.45a ,,, नाम च गोत्रं च III. 47.24a ,,, पुरुषशार्दूल I. II.12a , , II. 34.54c VII. 52.16a १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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