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________________ ११७४ स तृणैरागृतं दुर्गम् IV. 9.IIa । स ते सुखोचितो बाल: II 8.35a , तेजसा विपुलमवाप्य तं जयम् VII. 15.4la ,, तेऽहं पितुराचार्यः II. III.4a , ते जीवितशेषस्य III. 56.9a ,, तै परिवृतः सर्वैः VII. 24.4:c ,, दद्यान्महातपाः VII. 80.10d ,, तैणैिर्महावीर्यः III. 51.8a तेन तोषितश्वासीत् I. 43.10c ,, तैाह्मणमभ्यस्तम् VII 81.22c : तेन धनदानुजः III. 35.7b ,, तैर्मदाद तिवार्थवेगः V. 61.23a ,, न विनाशितः V. 42.17d ,, तैर्महात्मा भरत: II. 69.5a ,, निहतः संख्ये V. 5I.IIC ,, तैर्वानरमुख्यैस्तु VI. 82.7a परमास्त्रेण I. 30.1&a ,, तैस्तथा भास्करतुल्यदर्शनै: VI. 69.14a बाणाशनिना VI. 89.41c ,, तैरतु सहितो राजा VI. I9.16a . . बाणैः प्रसभं निपातितैः V. 47.21a तैः क्रीडन्धनुष्मद्भिः V. 15.10a राजा दुःखेन II. 59.27a ,,, पञ्चभिराविद्धः V. 4.25a , शैलेन भृशं रराज VI. 74.66a ,, परिवृतः शूरैः V. 42.30a ,, सह संयुक्तः III. 31.17a ,,, प्रबुद्धैः परिभर्यमान: V. 61.25a , सह सैन्येन VI. 83.7a ,,, प्रहरणै|रैः III. 25.13c तेनाग्निनिकाशेन III. 24.17a ,,, शरैर्मूर्ध्निसमं निपातितः V. 47.15a ,, तेनाभिहतः क्रुद्धः VI. 58.40a ,, संपीज्यमानोऽपि V. 49.15a , कोपात् VI. 67.48c ,, ,, संपूजितः पूज्यः V. I.191a तेनाभिहतो मूर्ध्नि VI. 67.44c सतोय इव तोयदः VII. 16.14d ते पार्श्वमुपागतः V. 23.14f सतोयद इवाम्बरात् VI. 103.3b ,, ,, प्रतिग्रहीतव्यः III. 74.16a सतोयमिव तोयदम् V. 19.14d ,, ,, भर्ता भविष्यति VII. 56.25d सतोयाम्बुदसंकाशम् VI. 61.3a .. ,,, भ्रातुर्हि विख्यातः IV. 15.18c सतो वा नानुवतेसे V. 21.0b ,, तेभ्यस्तु नमस्कृत्वा V. 13.58a स तो दृष्ट्वा नरव्याघ्रौ V. 35.27e. ,, ते मोक्षयिता शापात् VII. 53.21a स तो प्रसार्योरगभोगकल्पो VI. 74 47a , वीर्य बलं दर्पम् III. 56.15a ,,,, महात्मा गजमन्दगामी IV. I.129a ,,, श्रेयोऽभिधास्यति III. 4.21d सत्कार समनुप्राप्य I. 23.20c ,,,श्रेयो विधास्यति III. 5.35d ,, संविधत्स्व मे I. 52.21f ,, तेषां द्विजमुख्यानाम् VII. 91.8a सत्कारार्ह सुसत्कृतम् III. 12.16b ,, ,, प्रतिशुश्राव I. I.44c सत्कारार्हा कृते तव II. 12.70b ,, ,, भोजनं ददौ III. 12.27d सत्काराही महाबलौ I. 48.8d ,, ,, यातुधानानाम् III. 25.5a सत्कृतस्ते पुरोहितः II. I00.IId ,, , राजपुत्राणाम् I. 4I.I5a सत्कृतं पुरुषर्षभम् I. 13.27b ,, , समुदाहरत् IV. 41.7d , माल्यभूषितम् II. 31.33b ,, ते सहायो मित्रं च III. 72.15a सत्कृत्य केकयीपुत्रम् II. 70.21c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002795
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1966
Total Pages1190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size26 MB
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