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________________ अरण्यभूतेव पुरी II. 71.24a अरण्यं प्रतिभाति मे III. 39.16d अरण्यवासे यद्दुःखम् II. 44.6a अरण्यवासे वसतः II. 28.23c अरण्यं विचरामीदम् III. 17.21a अरण्यात्पुनरागतौ II. 43.11b अरण्यां मथ्यमानायाम् VII. 57.1ga अरण्ये ते विवत्स्यन्ति II. 23.22c अरण्ये भृशदारुणे II. 12.23d अरण्ये मुनिभिर्जुष्टे VII. 46.ga अरण्ये विजने शुभाम् VI. 111.22h अरण्ये सह सीतया IV. 56.15b अरत्निघातैव कराग्रघातै: VI. 40.15b अरयश्च मनुष्येण IV. 2.22a अरविन्दोत्पलवतीम् III. 75.21a अराक्षसमिमं लोकम् VI. 41.67a अराजकं हि नो राष्ट्रम् II. 67.8c अराजके धनं नास्ति II. 67.11d अरावणमरामं वा VI. 100.48c अरिघ्नं सिंहसंकाशम् V. 68.25a अरं जेतुं समर्हसि VI. 2. 16d अरिः प्राणान्परित्यज्य VI. 18.28C अरिश्च रामस्य सहानुबन्ध: VI. 20.23c अरिष्टं गच्छ पन्थानम् I. 24.30 III. 8. Ira [ अ ] रुदन्वचनमब्रवीत् II. 24.2od अरुदं भृशदुःखित: IV. 62.1b अरुन्धती वसिष्ठं च V. 24. I0C अरुन्धत्या इवासीनः VII. 42.24a अरुन्धत्या विशिष्टां ताम् VI. III. 200 अरुन्धनिमथिलां सर्वे I. 66.21a अरेः सपत्नीपुत्रस्य II. 8.4c अरोगत्वं च दत्तवान् VII. 36.16b अरोगप्रसवा नार्यः VII. 41.1gc अरोगवीरपुरुषा VII. 7o.roc अरोगं विगतज्वरम् VI. 125.5b अरोगस्तरुणो वाग्मी II. 1. 18a अरोगं सर्वसिद्धार्थम् II. 25.41a अरोगा चापि कौसल्या II. 70.8c अरोगा चापि मध्यमा II. 7o.gd अरोगा चापि मे माता II. 70. IOC अरोचयत तद्वाक्यम् III. 31.32a अर्क तुद्यां शरैस्तीक्ष्णैः III. 49.4a अर्करश्मिप्रतीकाशम् VI. 128.750 अर्करश्मिप्रतीकाशैः II. 99.21a अर्कश्च बहुभिः प्रार्श्वम् VI. 4. 33c अर्घ्यं च प्रददौ तस्मै 10.31a अर्घ्यं चोपानयच्छीघ्रम् II. 50.38a अर्घ्यमादाय सत्वरम् I. 50.7b अर्घ्यमावेद्य धर्मतः VII. 21.3d अर्घ्यं पाद्यं तथातिथ्यम् I. 23.19c अर्घ्यं प्रतिगृहाणेदम् VI. 124.17C अर्चन्ति पुरुषोत्तमम् VI. 119.29d अर्चन्तु शुचयो नराः VI. 127.2d अर्चयामास गन्धैश्च VII. 31.43c अर्चयामास तं देवम् VII. 51.16a अर्चयामास धर्मात्मा VII. 76.21 अर्चयाहूय सौमित्रे II. 32.13c अर्चयित्वा यथाविधि VII. 37.14b अरुजास दुरासदम् VI. 86. 18b अरुण किरणरता दिग्बभौ चैव पूर्वा VII. 59.23c / अर्चयित्वाssसनोदकैः III. 12.26b "" " अरिष्टनेमिनः पुत्रः IV. 66.4a [ अ ] रिष्टनेमिश्र राघव III. 14.9b अरिष्टनेमेर्दुहिता I. 38.4a अरिष्टमरिमर्दनः V. 50.26b अरिष्टमैन्द्रं निशितं सुपुङ्खम् VI. 67.164c अरिष्टं लवतां वर V. 1. 18gd अरिसंघैरनाधृष्याम् II. 99.23c अरींश्च कुरुते वशे VI. 35.7d ५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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