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________________ ऊरुभ्यामुदरं छाय V. 19.3a ऊरुभ्यां जज्ञिरे वेश्याः III. 14.300 ऊरुवेगेन महता V. 41.14c ऊरुवेगैश्च ममृदुः VI. 4. 66c ऊरुवेगोत्थिता वृक्षाः V. 1.45a ऊरुवेगं हनूमतः V. 57.19f ऊर्जितं लवगेश्वरम् IV. 40.17b ऊर्जितः खलु ते काम: II. 85.2a ऊर्ध्वप्रणिहितेक्षण V. 1. 35b ऊर्ध्वबाहुं निरालम्बम् VII. 89. 10c ऊर्ध्वबाहुर्निरालम्ब: I. 63.23a ऊर्ध्वबाहुः पञ्चतपाः I. 42.13a ऊर्ध्व हुमधोमुखम् VI. 126.13b ऊर्ध्वबाहुमिवस्थितम् V. 56.2gd ऊर्ध्वमुत्पात्य तरसा IV. 11.5c ऊर्ध्वरेताः शुभाचारः I. 33.1Ic ऊर्ध्वमाश्चिततनुम् VI. 60. 28a ऊर्ध्वं गन्तासि मधुराम् VII. 72. 170 ऊर्ध्व तथैव कायेन VI. 27.170 ऊर्ध्व द्वाभ्यां तु मासाभ्याम् V. ऊर्ध्व मासान जीवेयम् V. 38.65a 33.31C 39 65.25c ऊर्ध्वं मासान्न वस्तव्यम् IV. 40.70a 42.53a "2 Jain Education International " ऊ वर्षसहस्रान्ते II. 23.25a ऊर्मयः सिन्धुराजस्य VI. 4. 118c ऊर्मयो वायुना विद्धाः VI. 99.33c ऊर्मिभिर्विमलेऽम्भसि IV. 1. 66b ऊर्मिमन्तमतिक्रम्य IV. II.ga ऊर्मिमन्तं महारौद्रम् IV. 40.36c ऊर्मिमालिनमक्षोभ्यम् II. 18.6a ऊर्मिलासनया तदा I. 33.12d लामुद्यतां मया I. 73.3od मिला शुभदर्शना II. 118.53b र्मिलां च यशस्विनीम् I. 77.11d ९ " १४५ ऊर्मिलां लक्ष्मणाय I. 71.21b ऊखलं तदा VI. Iri. xxgd ऊर्वोस्तु दक्षिणेनैव III. 49.170 तुर्मुदितौ वीरौ I. 31. Ic ऊषुः प्रमुदिताः सर्वे I. 68.1gc ऊस्तां रजनीं तत्र I. 22.230 हुर्भार्या महौजसः I. 73.3gd ऋकोटिसहस्राणि IV. 35.22a ऋक्षगोपुच्छवानरान् I. 17.35d ऋक्षमुख्या महात्मानः VI. 24.18a ऋक्ष राक्षससङ्घाश्च VII. 108.17c ऋक्षराज च दुर्धर्षम् VII. 40.6a ऋक्षराजबलं चैव VI. 85.32c ऋक्षराजवचः श्रुत्वा VI. 50.120 ऋक्षराजश्च वीर्यवान् VI. 37.32b ऋक्षराजस्तथा नीलः VI. 41.27c ऋक्षराजस्तथेत्युक्त्वा VI. 83.4a ऋक्षराजेन तुष्यामि VI. 49.25C ऋक्षराजो महातेजाः IV. 39.26c ऋक्षराजो महाबाहुः VI. 4.20c ऋक्षराजं गवाक्षं च VI. 98. 11c ऋक्षराजं महात्मानम् VI. 50. 8c ऋक्षवन्तं गिरिश्रेष्ठम् VI. 27.9a ऋक्षवानर गोपुच्छाः I. 17.1ga ऋक्षवानर गोपुच्छै: IV. 27.3a ऋक्षवानरमुख्यास्त्वाम् IV. 23.5a ऋक्षवानरमुख्यैश्च VI. 86.13a ऋश्वानररक्षसाम् VI. 23.3d 41.12d "" 39 VII. 40.1b " ऋक्षवानररक्षांसि VII. 99. ra " "" 109.19a ऋक्षवानरराक्षसाम् VII. 41.1b 99.5b 39 ऋक्षवानरराक्षसाः VII. 40.13b در For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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