SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्पन्नस्त्वं गुणज्येष्ठः II. 3.40a उत्पन्नाः कामरूपिण: VI. 28.5d उत्पन्नाः तव दर्शनात् V. 34.17d उत्पन्ना तु कथं बुद्धिः II. 73.1ga उत्पन्ना मैथिलकुले VII. 17.13e उत्पपात गदापाणि: VI. 16.17c उत्पपात गिरेः शृङ्गात् IV. 63.14 उत्पपात गृहीत्वा तु VI. ror.38c उत्पपात जलात्तूर्णम् V. 1.94c उत्पपात ततो हृष्ट: VI. 46.46a उत्पपात तदाकाशम् VI. 40.28a उत्पपात तदा क्रुद्धः VI. 76.8c 102.34a 33 " उत्पपात तदाङ्गदः VI. 70.7d उत्पपात तदा वीरः VI. 67.51c उत्पपात तदा हृष्टा II. 72.2c उत्पपात नदन्व्योम्नि V. 46.23c उत्पपात नभो हरिः V. 56.51d उत्पपात निशाचरः VI. 70.44b उत्पपात पुनव्यम VII. 35.40c उत्पपात पुनर्हृष्टः III. 51.21c उत्पपात महाभागा 1. 45.36c उत्पपात महावेगात् VI. 125.25c उत्पपात रजो भूमौ VI. 99.9a उत्पपात रसातलम् VI. 22.34d उत्पपात विभावसुः VI. 118.1d उत्पपात विहायसम् III. 67.20b VI. 122.25d "" "" " " "" " 123.1d उत्पपात विहायसा VI. 41. god उत्पपात सधूमानि: VI. 92. 18g उत्पपात हरिश्रेष्ठः IV. 34.3a उत्पपाताङ्गदस्तदा VI. 41.86d उत्पपातानिसंकाशम् I. 45.20a उत्पपाताथ रावण: III. 49.22d Jain Education International १२८ उत्पपाताथ वेगेन V. 1.42a 1.186a " 33 ور 53.63a उत्पपातानिलात्मज: V. 48.3rd उत्पपाताशु संहृष्टः III. 72.50 तत्पपातासनात्तूर्णम् II. 34. 16c VII. 44.8a " " 13 " उत्पपातासनं हित्वा VII. 35.36c उत्पलानि च फलानि III. 73.229 उत्पाटयामास करेण वृक्षम् VI. 67.1570 उत्पाटयामास शिरः VI. 77.220 उत्पादयित्वा वेगेन V. 43.170 For Private & Personal Use Only उपाय कुसुमायुताम् IV. 12.40b उत्पाट्य गच्छन्युधि कुम्भकर्ण: VI. 67.6gb उत्पाव्य च महावृक्षान् VI. 76.65a उत्पाट्य तापसान्सर्वान् II. 116.1Ic उत्पाट्य मेषवृषणौ I. 49.8c उत्पाट्य लङ्कामलयात्सङ्गम् VI. 67.66c. उत्पाट्य वा ते हृदयम् V. 24.37c उत्पाठ्य वृक्षं स्थितवान् VI. 54.29c उत्पाट्य शुभलक्षणाम् IV. 12.3gb उत्पाट्यसंक्रामयितुम् VI. 25.31a उत्पातवाताभिरताः III. 52.34a उत्पातान्विविधान् VI. 35.242 उत्पातान्समवस्थितान् VI. 95.48b उत्पातांस्ताननादृत्य VII. 6.58c उत्पाता राक्षसेन्द्राणाम् VII. 6.53c उत्पाताश्चापि दृश्यन्ते VI. 94.28a उत्पातांश्चैव दारुणान् VI. 102.42b उत्पादयसि मे भूयः V. 34.140 उत्पाय सुमहद्वैरम् III. 56.8c उत्पेततुररिन्दमी V. 46.2gd उत्पेततु भूमितलं स्पृशता VI. 40.170 उत्पेततुर्महारण्यम् VI. 22.50c उत्पेततुस्तदा तूर्णम् VI. 97.27a www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy