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________________ उत्तिष्ठोत्तिष्ठ राजर्षे VII. 87.1gc उत्तिष्ठोत्तिष्ठ शोभने II. 10.3gb उत्तीर्य पुष्पाण्याजहः VII. 31.37a उत्तीर्य यमुना नदीम् VII. 68.3b उत्तीर्य सागरं राम: VI. 33.15a उत्तीर्याभिमुखः प्रायात् II. 49.9c उत्थानं रावणस्य च I. 3.20b उत्थापयन्ति स्म तदा IV. 25.48c उत्थापयामास तदा II. 57.28c उत्थापयामासुरदीनसत्त्वाम् IV. 24.26c उत्थापयित्वा शोकार्तम् II. 72.23c उत्थाप्य च महाबल: VII. 44.18b उत्थाप्य तमुवाच ह II. 77.21d उत्थाप्य प्रकृतीजनम् VII. 107.11b उत्थाप्यमानः शक्रस्य II. 77.90 उत्थाप्य मुनिपुंगवः III. 8.1ob उत्थाप्य सहसा नीतः V. 58.800 उत्थाप्याभिप्रसाद्य च II. 77.24b उत्थाप्य च महातेजाः II. 46.18a उत्थाय च यथाकालम् III. 8.2a उत्थाय बहवो येन III. 43.40a उत्थाय स महाप्राज्ञः V. 63.4c उत्थाय सस्वजे स्नेहात् VII. 40.200 उत्थायाग्निचयात्तस्मात् III. 5.40c उत्थायेदं महाप्राज्ञः VI. 18.16c उत्थायोत्थाय पूर्वाह्न II. 10.5IC उत्थायोत्थाय वानराः VII. 40.27b उत्थास्यति च मेदिन्याः II. 42.17a उत्थित लवणाम्भसि V. 1. 178b उत्थितश्चाप्रमत्तश्च VI. 3.1gc उत्थितान्घोरदर्शनान् III. 23.1gd उत्थितान्रोमहर्षणान् III. 23.18d उत्थिता मेदिनी भित्वा V. 16.16a उत्थितां पश्य लक्ष्मण VI. 24.9b नरव्याघ्र II. 77.25a Jain Education International ૩૦ उत्पतद्भिर्द्विजगणै: V. 14. roa उत्पतद्भिर्विश्च IV. 67.45c उत्पतन्निपतंश्चापि V. 12. 150 उत्पतन्तं निशाचरम् III. 27.16d उत्पतन्तमनूत्पेतुः V. 64.24a IV. 34.4a उत्पतन्तमिव क्रुद्धम् VI. 4. 119c उत्पतन्तमिवाम्बरम् III. 44.6b उत्पतन्तं युगान्ताग्निम् VI. 102.61c उत्पतन्तं स्थितं यान्तम् VI. 69.74c उत्पतन्निहतो युधि VI. 31.27b उत्पतिष्यन्तमेव च IV. 67.20d उत्पतिष्यन्महाबल: V. 1. 36d उत्पतिष्यन्विचिक्षेप V. 1. 3IC " उत्पत्तिरद्य कथिता सकला यथावत् VII. 8.28b उत्पत्य च ततः सर्वे V. 62. 8a उत्पत्य च हनूमन्तम् VI. 70.440 उत्पत्य चास्य वेगेन VI. 77.210 उत्पत्य चैनं तरसा VI. 67.48a उत्पत्य रामं स धनुः कलापी VI. 71.44c उत्पत्य संध्या समानवर्णः VI. 70. 600 उत्पत्याभ्युत्पतो दिवम् IV. 66.21d उत्पत्योत्पत्य सहसा I. 29.26c उत्पस्योत्पत्य संहृष्टाः VI. 123.53c उत्पत्स्यति महातेजाः VII. 30.41c उत्पत्स्यति हितार्थं वः VI. 94.35c उत्पत्स्यति हि मद्वंश: VI. 60.ga उत्पत्स्यते कुले ह्यस्मिन्VII. 19.30a उत्पत्स्यते हि लोकेऽस्मिन् VII. 53.20a उत्पत्स्यन्ति वधार्थं हि VII. 16.170 उत्पत्स्येते महावीर्यौ VII. 53.22c उत्पथं प्रतिपन्नस्य II. 21.13 उत्पथं यः समारूढः II. 78.4c उत्पद्यते दस्युवधे VII. 8.27d उत्पन्नः कृष्णवर्त्मना VI. 27.20d For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002794
Book TitleValmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGovindlal H Bhatt
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1961
Total Pages182
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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