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हिन्दू संस्कृति एवं सभ्यता को मौलिक एवं मुख्य विशेषताएं
में अब भी अग्नि स्थापित की जाती है; आज विष्ण (जो इन्द्र, अग्नि या वरुण की भाँति बहधा अधिक प्रशंसित नहीं हैं। किन्तु ऋ० १।२२।१६-२१, १४१५४११-६, १११५५॥ १-६,६४६६१-८ में प्रशंसित हैं; इन्द्र एवं विष्णु दोनों ऋ० ७६६।१-७ में प्रशंसित हैं तथा अथर्ववेद ७।२७।४-६ में पूजित हैं) एवं शिव (ऋग्वेद के रुद्र, जो पहले से बहुत अंशों में परिवर्तित हैं, तथा पूज्य हैं ऋ० २।११६, २।३३।६, १०६२।६-जहाँ शिव नाम आया है की मख्य देवों के रूप में पूजा की जाती है। भारत के बहत-से भागों में ब्राह्मण लोग प्रातः एवं सायं की पूजा में अब भी क्रम से मित्र (ऋ० ३५६) एवं वरुण (ऋ० १२५) के मन्त्रों का पाठ करते हैं। दूसरी विशेषता यह है कि भारत विशाल देश है (रूस को छोड़कर सम्पूर्ण यूरोप के समान) किन्तु सम्पूर्ण भमि-भाग पर एक राजनीतिक सत्ता कभी भी नहीं स्थापित हो सकी (सम्भवत: अल्पकाल के लिए अशोक की राजनीतिक सत्ता के अतिरिक्त) । सम्राट या चक्रवर्ती के एकछत्र राज्य का आदर्श तो था, किन्तु यदि किसी राजा ने आत्म-समर्पण कर दिया, उसने विजयी सम्राट् की शक्ति को स्वीकार कर लिया तथा कुछ कर दे दिया तो सम्राट ने अपने साम्राज्य के अन्तर्गत अन्य शासकों के राज्यों के कार्य-कलापों की कोई चिन्ता नहीं की। इसी से बाह्य आक्रामकों के विरोध में कोई संयुक्त मोर्चा नहीं स्थापित हो सका, कानूनों अथवा विधि-विधानों, लोकाचारों तथा व्यवहारों में कोई एकरूपता नहीं प्रदर्शित की जा सकी और राजाओं तथा राजकुमारों में बहुधा युद्ध हुआ करते थे । तीसरी विशेषता यह रही है कि संस्कृतियों से सम्बन्धित कोई भी गम्भीर संघर्ष नहीं हुआ । विभिन्न विचारधाराओं एवं विश्वासों के विषय में सहिष्णुता विराजमान थी और अनेकता में एकता स्थापित करने की निरन्तर अनुकूलता विद्यमान थी।
यह जानकर अपार दु:ख होता है कि जहाँ ११वीं शती से आगे बडे-बडे विद्वान व्रत, दान एवं श्राद्ध पर सहस्रों पष्ठों में ग्रन्थों के प्रणयन में लीन थे (जैसा कि विद्वान मन्त्री हेमाद्रि ने किया था) या तर्कशास्त्र वेदान्त, साहित्य-शास्त्र आदि अन्य मार्मिक विषयों के ऊपर साधिकार ग्रन्थ-प्रणयन, टीका-मीमांसा आदि करते थे, वहाँ एक भी ऐसा विद्वान नहीं उत्पन्न हआ जो अलबरूनी के समान आगे आता और महमद गजनी की विजय तथा भारत की पराजय पर प्रकाश डालता और उन दोषों एवं दुर्बलताओं को दूर करने का प्रयत्न करता जिनके फलस्वरूप भारत को बाह्य आक्रामकों के समक्ष सदैव मुंह की खानी पड़ी। हिन्दुओं की पराजय के अन्य कारण भी थे । संसार में १५वीं शती से आगे विज्ञान एवं प्राविधिक क्षेत्रों में जो अनुसन्धान कार्य एवं आविष्कार हए उनमें हमारे विद्वानों ने कोई भी सहयोग नहीं किया। शाहजी ने विदेशियों से आग्नेयास्त्र खरीदे। न तो उन्होंने और न उनके महान् पुत्र शिवाजी ने ही, जिन्होंने मराठा साम्राज्य स्थापित किया, कोई ऐसी फैक्टरी खोली जहाँ आग्नेयास्त्रों तथा गोलियों आदि का निर्माण किया जा सकता । इसी प्रकार हमारे देशवासियों ने शक्तिशाली नौ-सेना के महत्त्व को भी नहीं समझा। यदि हिन्दुओं या उनके शासकों के पास नौ-सेना रही होती तो पुर्तगाल वालों, फ्रांसीसियों एवं अंग्रेजों की आकांक्षाओं पर तुपारपात हो गया होता।
अब हम हिन्दु संस्कृति एवं सभ्यता की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं पर प्रकाश डालेंगे ।
(१) ऋग्वेद के काल से अब तक चली आयी हुई अत्यन्त विलक्षण धारणा यह रही है कि मूल तत्व एक है, भले ही लोग उसे इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि आदि किसी नाम से क्यों न प्रजित करें (ऋग्वेद २१६४ १४६, ८1५८११, १०॥१२६२)। महाभारत, पुराण, संस्कृत काव्य के काल एवं मध्य-काल में जबकि विष्णु, शिव या शक्ति से सम्बन्धित बहुत से सम्प्रदाय शे, सभी हिन्दुओं में यह अन्तश्चेतना थी कि ईश्वर एक है, जिसके कई नाम हैं। देखिए वनपर्व (३६७६-७७), शान्तिपर्व (३४३।१३१), ब्रह्मपुराण (१६२।५१), विष्णुपुराण (५।१८।५०), हरिवंश (विष्णुपुराण २५॥३१), कुमारसम्भव (७१४४)।
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