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________________ हिन्दू संस्कृति एवं सभ्यता की मौलिक एवं मुख्य विशेषताएं ३६१ प्रकार मनुस्मति ने मध्यदेश (उनके द्वारा परिभाषित) के क्षेत्रों एवं आर्यावर्त को पृथक् कर रखा है (२।२१-२२) कछ समय से कछ लोग ऋ० (६।६३।५-६) में उल्लिखित 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' पर निर्भर होकर ऐसा प्रतिपादित करने लगे हैं कि वेद ने हमारे देश को सारे संसार को आर्य बनाने के लिए नियुक्त किया है किन्तु इस प्रकार के अभिमान के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है। ये शब्द इन्द्र के लिए सोमरस अर्पण के लिए प्रयक्त हए हैं। इनका अर्थ यों है-'ये सोम-तर्पण, जो पिंगल वर्ण के हैं (सोम पौधे से निकाले हुए हैं), इन्द्र (की शक्ति) को बढ़ाते हैं, जलों को (आकाश) से गिराते हुए इन्द्र के पास आने वाले विरोधी लोगों को नष्ट करते हैं, सभी (सम्पूर्ण वातावरण) को सुन्दर बनाते हुए वे अपने उचित क्षेत्र में पहुँचते हैं।' यहाँ पर वैदिक लोगों द्वारा सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाने की चेष्टा की ओर कोई भी निर्देश नहीं है। यहाँ पर कोई भी ऐसा संदेश नहीं है जिसे आधुनिक भारतीय लोग अन्य लोगों को दे सकें या उसका प्रसार कर मके। स्वयं मोम पौधा वैदिक काल में ही लप्त हो गया और उसके प्रतिनिधि की आवश्यकता पड़ गयी। भारत में सम्भवतः कई शतियों से कदाचित् ही कोई वैदिक यज्ञ किया गया हो और यदि यज्ञ सम्पादित हा भी हों तो उनमें सोमयज्ञों की संख्या बहत ही कम रही होगी। गत दो महायुद्धों के उपरान्त विश्व के आकाश में युद्ध के बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं और अब विचारकों ने अण-यद्ध से संकल हो जाने की सम्भावना पर विचार करके यही उद्घोषित किया है कि बिना आध्यात्मिक मूल्यों के पुनर्जागरण के, बिना न्यायसंगत जीवनयापन के, बिना दलित लोगों के प्रति करुणा-दृष्टि फेरे तथा बिना मानव में भ्रातभावना की स्थापना किये विश्व का कल्याण नहीं है और न मानव सभ्यता की रक्षा की जा सकती है । यद्यपि हमारे प्राचीन ऋषियों एवं विधान निर्धारकों ने आध्यात्मिक मूल्यों पर बहुत वल दिया है. तथापि अधिकांश लोग तथा हमारे तथाकथित नेतागण शतियों से इन मूल्यों के अभाव से ग्रसित रहे हैं और अब भी हैं । हमें आत्म-निरीक्षण करना चाहिए । केवल पूर्व गौरव की गाथा गाने से कार्य नहीं होने का । हमें अब मस्थिर मन से विचार करना और वास्तविकता का परिज्ञान करना है। क्या कारण था कि १३वीं शती के उपरान्त हमने अपनी स्वतन्त्रता खो दी ? इसी सन्दर्भ में हम कुछ प्रश्न रखते हैं (१) हिन्दू लोग आक्रामकों से, यथा--पारसीकों, यूनानियों, सिथियनों, तुर्को, अंग्रेजों से तुलना में हीन क्यों सिद्ध हो गये, जब वे संख्या में अधिक थे और बहुत-से आक्रामक उनके साहस से प्रभावित थे और भारतीय सैनिकों की मृत्य-सम्बन्धी उपेक्षा से परिचित थे ? (२) हिन्दू लोग कई शतियों तक सम्पूर्ण भारत को एक सत्र में क्यों नहीं बाँध कर रख सके अथवा वे एकछत्र राज्य की स्थापना करके एक स्थिर व्यवस्थित राज्य क्यों नहीं बना सके ? (३) उन्होंने भारत में स्थित प्राकृतिक सामग्रियों का सदुपयोग करके वस्तु-निर्माण, व्यापार एवं औद्योगिक क्षेत्र में विकास क्यों नहीं किया ? हमें इस विषय में एक बड़े पैमाने पर अपनी जाँच करनी चाहिए और पता लगाना चाहिए कि हमारे अधःपतन के क्या कारण थे और अपने दोषों को दूर करना चाहिए जिससे शतियों के उपरान्त प्राप्त की हई स्वतन्त्रता की रक्षा हम प्राणपण से कर सकें। अंग्रेजों के शासन के पूर्व भारत में राजनीतिक एकता कभी नहीं थी। भारतीय राजाओं एवं राजकुमारों के मध्य सदैव युद्ध एवं ६. इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । अपघ्नन्तो अराव्णः ॥ सुता अनु स्वमा रजोऽभ्यर्षन्ति बनवः । इन्द्रं गच्छन्त इन्दवः ॥ऋ० (६३-५-६) । मिलाइए इसी सूक्त का चौदहवाँ श्लोक 'एते धामान्यार्या शुक्रा ऋतस्य धारया। वाजं गोमन्तमक्षरन् । 'धामान्यार्या' का अर्थ है (देवों के) 'सुन्दर या भद्र निवास स्थान या सुन्दर विधियाँ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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