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________________ ६५ तन्त्र सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण प्रग्य एवं निबन्ध (२२) 'फिलॉसफी आव त्रिपुरातन्त्र', म० म० गोपीनाथ कविराज, सरस्वती भवन स्टडीज, १६३४, जिल्द पृ० ८५-६८ । (२३) 'सम आस्पेक्ट्स आव दि फिलॉसफी आव शाक्त तन्त्र', म० म० गोपीनाथ कविराज, सरस्वती भवन स्टडीज, १६३८, जिल्द १० पृ० २१-२७ ।। (२४) 'बुद्धिस्ट तन्त्र लिटरेचर', प्रो० एस० के० दे, न्यू इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द १, पृ० १-२३ । (२५) 'इन्फ्लुएंस आव तन्त्रज़ ऑन दि तत्त्वज़ आव रघुनन्दन', प्रो० आर० सी० हज्रा (इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली, जिल्द ६, १६३३, पृ० ६७८-७०४ । (२६) 'इन्पलुएंस आव तन्त्र इन स्मृतिनिबन्धज', प्रो० आर० सी० हज्रा, ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १५, पृ० २२०-२३५ एवं जिल्द १६, पृ० २०३-२११ । (२७) 'दि तान्त्रिक डाविट्रन आव डिवाइन बाई-यूनिटी', ए० के० कुमारस्वामी, ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १६, पृ० १७३-१८३ । (२८) 'कम्पेरेटिव एण्ड क्रिटिकल स्टडी आव मन्त्रशास्त्र', श्री मोहनलाल भगवानदास झवेरी (१६४४) । (२६) प्रो. चिन्ताहरण चक्रवर्ती के निम्नलिखित निबन्ध : 'एण्टीक्वेरो आव तान्त्रिकिज्म' (इण्डि० हिस्टॉ० क्वा०, जिल्द ६, पृ० ११४); 'कण्ट्रोवर्सी रेगाडिंग दि ऑथरशिप आव तन्त्रज', प्रो० के० बी० पाठक कमेमोरेशन वाल्यम, १० २१०-२२०; 'ए नोट ऑन दि एज एण्ड ऑथरशिप आव दि तन्त्रज', जर्नल एण्ड प्रोसीडिग्स आव दि एशियाटिक सोसायटी आव बेंगाल, न्यू सीरीज, जिल्द २६ (१६३३), सं० १, पृ० ७१७६; 'आइडियल्स आव तन्त्र राइट्स', (इण्डि० हिस्टॉ० क्वा०, जिल्द १०,१०४६८); 'शाक्त फेस्टिवल्स आव बेंगाल एण्ड देयर एण्टीक्वेरी', (इण्डि० हिस्टॉ० क्वा०, जिल्द २७, १६५१, पृ० २५५-२६०); 'एप्लिकेशन आव वैदिक मन्त्रज़ इन तान्त्रिक राइट्स' (जे० ए० एस० बी० लेटर्स, जिल्द १८, १६५२, पृ० ११३-११५; 'काली वशिप इन बेंगाल', आधार लाइब्रेरी बुलेटिन, जिल्द २१, भाग ३-४, पृ० २६६ (३०) 'तन्त्रज, देयर फिलॉसफी एण्ड ऑकल्ट सीक्रेट्स', डी० एन० बोस (कलकत्ता, ओरिएण्टल' पब्लिशिंग कम्पनी)। (३१) 'वज्र एण्ड दि वज्रसत्त्व', डा० एस० बी० दास गुप्त, 'इण्डियन कल्चर', जिल्द ८, पृ० २३-३२ । (३२) 'इण्ट्रोडक्शन टु तान्त्रिक बुद्धिज्म', डा० एस० बी० दास गुप्त (कलकत्ता, १९५०) । (३३) 'फिलॉसफीज़ आव इण्डिया', हेनरिख ज़िम्मर (१६५१), पृ० ५६०-६०२ । (३४) 'दि वेद एण्ड दि तन्त्र', श्री टी० वी० कपाली शास्त्री (मद्रास, १९५१), पृ० १-२५५ । (३५) 'युगनद्ध' (जिसका शाब्दिक अर्थ है, विरोधी तत्त्वों के विषय में : 'एक-दूसरे से बँधे हुए या जुते हुए', 'तान्त्रिक व्यू आव लाइफ,' डा. हरबर्ट बी० गुइन्थर, चौखम्बा संस्कृत सीरीज, बनारस, स्टडीज, जिल्द ३, १६५२ । (३६) 'कल्चरल हेरिटेज आव इण्डिया', जिल्द ४ में निम्नलिखित लेख-'इवल्यूशन आव दि तन्त्र', डा. पी० सी० बागची, पृ० २११-२२६; 'तन्त्र ऐज़ ए वे आव रीयलिज़ेशन', स्वामी प्रत्यगात्मानन्द, पृ० २२७-२४०; 'दि स्पिरिट एण्ड कल्चर आव दि तन्त्रज', पृ० २४१-२५१, श्री अटलविहारी घोष; 'शक्ति कल्ट इन साउथ इण्डिया', श्री के० आर० वेंकटरमन, पृ० २५२-२५६; 'तान्त्रिक कल्चर एमंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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