________________
- १३ -
४००-२०० (ई० पू०) : जैमिनि का पूर्वमीमांसासूत्र । ३००-२०० (ई० पू०) : पाणिनि के सूत्रों पर वार्तिक लिखने वाले वररुचि कात्यायन । ३०० (ई० पू०) १०० (ई० उ०) : कौटिल्य का अर्थशास्त्र (अपेक्षाकृत पहली सीमा के आसपास) २०० (ई० पू०) १०० (ई० उ०) : मनुस्मृति। १५० (ई० पू०) १०० (ई० उ०) : पतञ्जलि का महाभाष्य (संभवतः अपेक्षाकृत प्रथम सीमा के आसपास)। १०० (ई० पू०) १०० (ई० उ०) : उपवर्ष, पूर्व एवं उत्तर मीमांसासूत्रों के वृत्तिकार। १०० (ई० पू०) ३०० (ई० उ०) : योगसूत्र के रचयिता पतञ्जलि। १००-३०० (ई० उ०) : याज्ञवल्क्यस्मृति । १००-३०० (ई० उ०) : विष्णुधर्मसूत्र। . १००-४०० (ई० उ०) : नारदस्मृति । २००-५०० (ई० उ०) :: वैखानसस्मार्तसूत्र। २००-४०० (ई० उ०) : जैमिनि के पूर्वमीमांसासूत्र के भाष्यकार शबर (अपेक्षाकृत पूर्व समय के
__ आसपास)। २५०-३२५ (ई० उ०) : ईश्वर कृष्ण की सांख्यकारिका। ३००-५०० (ई० उ०) : बृहस्पतिस्मृति (अभी तक इसकी प्रति. नहीं मिल सकी है)। एस० बी०
ई० (जिल्द ३३) में व्यवहार के अंश अनूदित हैं और प्रो० रंगस्वामी आयंगर ने धर्म के बहुत से विषय संगृहीत किये हैं जो गायकवाड़
ओरिएण्टल सीरीज़ द्वारा प्रकाशित हैं। ३००-६०० (ई० उ०) : कुछ विद्यमान पुराण, यथा-वायु०, विष्णु०, मार्कण्डेय०, ब्रह्माण्ड, मत्स्य०, कूर्म०। ४००-६०० (ई० उ०) : कात्यायनस्मृति (अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है)। ४००-५०० (ई० उ०) : माठरवृत्ति, सांख्यकारिका पर। ४००-५०० (उ० ई०) : व्यासरचित योगसूत्रभाष्य। ४७६- (ई० उ०) : आर्यभट, 'आर्यभटीयम्' के लेखक ५५०-७०० (ई० उ०) : युक्तिदीपिका , सांख्यकारिका की व्याख्या। ५००-५७५ (ई० उ०) : वराहमिहिर; पंचसिद्धान्तिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक आदि के लेखक । ६००-६५० (ई० उ०) : कादम्बरी एवं हर्षचरित के लेखक बाण। ६५०-६६० (ई० उ०) : पाणिनि की अष्टाध्यायी पर 'काशिका'-व्याख्याकार वामन जयादित्य । ६५०-७०० (ई० उ०) : कुमारिल का तन्त्रवार्तिक, श्लोकवार्तिक, टुप्टीका। ६८०-७२५ (ई. उ०) : मण्डन मिश्र, विधिविवेक, भावनाविवेक आदि के लेखक (मीमांसक)। ७००-७५० (उ० ई.) : गौडपाद, सांख्यकारिका के व्याख्याकार एवं शंकराचार्य के परम-गुरु।। ७००-७५० (ई० उ०) : उम्बेक (प्रसिद्ध मीमांसक)। ७१०-७७० (ई० उ०) : शालिकनाथ (प्रसिद्ध मीमांसक)। ८२०-९०० (ई० उ०) : वाचस्पति मिश्र, योगभाष्य, भामती आदि के लेखक । ६००-९०० (ई० उ०) : अधिकांश स्मृतियाँ, यथा-पराशर, शंख, देवल तथा कुछ पुराण, यथा
अग्नि०, गरुड़, विष्णुधर्मोत्तर०।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org