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प्रकाशक की ओर से
धर्म ऐसा व्यापक शब्द है जो सामने आते ही किसी जाति या समाज का इतिहास और उसके जीवन
की भूमिका प्रस्तुत करने में समर्थ होता है । 'धर्म' शब्द में जाति विशेष की सभ्यता, संस्कृति, आचारविचार, रहन-सहन, रीति-रिवाज तथा जीवन-प्रणाली की प्रक्रिया और निदर्शन प्रस्तुत होता है। धर्म की परिभाषा भी हमारे दार्शनिकों, चिन्तकों और मनीषियों ने अपने-अपने समय, विचार और चिन्तन के परिणामस्वरूप भिन्नभिन्न रूपों में प्रस्तुत की है। 'धारणाद् धर्म इत्याहुः' के अनुसार धर्म जीवन का मूलाधार है। इसी से मनुष्य को प्रेरणा और प्रकाश उपलब्ध होता है। यही धर्म जीवन की गतिविधि और प्रगति में सहायक होता है । कहने का अर्थ यह है कि धर्म वस्तुतः संकुचित नहीं, अपितु विशद, महान् और उदात्त भावना से प्रकाशमान होता है। संसार में जितने भी धर्म हैं, उनका अपना महत्त्व और स्वत्व तो है ही, किन्तु हिन्दू धर्म और हिन्दू जाति की अपनी विशेष महत्ता और सत्ता रही है। हिन्दू धर्म अन्य सभी धर्मों और जातियों का समादर तथा सम्मान करने में अग्रणी रहा है।
___ इसी हिन्दू धर्म की शास्त्रीय विशेषताओं तथा इसके अन्तर्गत उपलब्ध विभिन्न शाखाओं और क्षेत्रों का विशद परिचय एवं सैद्धान्तिक विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ 'धर्मशास्त्र का इतिहास' में अंकित करने की चेष्टा की गयी है। इसके सम्मान्य और विद्वान् रचनाकार भारतरत्न पाण्डुरंग वामन काणे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के लेखक और प्राच्य इतिहास एवं साहित्य के मनीषी चिन्तक रहे हैं। उन्होंने संस्कृत और संस्कृति के साहित्य का प्रगाढ़ अध्ययन तो किया ही, किन्तु उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण साधना और सेवा यह है कि हमें इस प्रकार के अनमोल और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध हुए। श्री काणे जैसे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वानों के विद्याव्यसन और निष्ठा की प्रशंसा करनी ही पड़ती है। ऐसे विद्वानों और मनीषियों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। उनकी इन कृतियों से जिज्ञासुओं और आनेवाली पीढ़ी को प्रेरणा और प्रकाश मिलेगा, हमारा यह निश्चित मत है । हमें यह कहने में संकोच नहीं कि 'धर्मशास्त्र का इतिहास' हमारे भारतीय जीवन का इतिहास है और इसमें हम अपने अतीत की गौरवमयी गाथा और नियामक सूत्रों का निर्देश और संदेश प्राप्त करते हैं। विद्वान् लेखक ने बड़े मनोयोग और श्रम से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसे एक तरह से हिन्दू जाति का विश्वकोश कहें तो अन्यथा न होगा। इसमें लेखक ने धर्म, धर्मशास्त्र, उनके लेखक, जाति, वर्ण, उनके कर्तव्य, अधिकार, संस्कार, आचार-विचार, श्रौत यज्ञ , दान, प्रतिष्ठा, राजधर्म, व्यवहार (न्याय), दायभाग, तीर्थ यात्रा, व्रत, काल, पंचांग, तन्त्र, पुराण, षड्दर्शन हिन्दू-संहिता आदि का विवेचन करते हुए सामाजिक परम्परा और उसकी उपलब्धियों का विस्तृत और आवश्यक विवरण प्रस्तुत किया है। वेद, उपनिषद,
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