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________________ महा १५६८ धर्मशास्त्रका इतिहास तक एवं काम्पकर्म, कर्माधिकारी, प्रवृत्त एवं पल्लव-राजनीति पर एक ग्रन्थ। राजनीतिरत्नाकर निवृत्त कर्म, आचमन, स्नान, पूजा, श्राद्ध, मधुपर्क, (चण्डेश्वर कृत) में व०। १३०० ई० के पूर्व । दान, युग आदि पर। पल्लोपतन--छिपकली गिरने से शकुनों पर। परिशिष्टदीपकलिका-शूलपाणि द्वारा। रघु० के शुद्धि- पल्लीपतनफल। तत्त्व में व०। सम्भवतः यह गृह्यपरिशिष्ट (यथा पल्लीपतनविचार। छन्दोग.) की टी० है। पल्लीपतनशान्ति। परिशिष्टप्रकाश--रघु० शद्धितत्त्व एवं एकादशीतत्त्व पल्लीशरटकाकभासादिशकून । में व०। सम्भवतः यह छन्दोगपरिशिष्टप्रकाश ही पल्लीशरटयोः फलाफलविचार। है। टी० हरिरामकृत। पल्लीशरटयोः शान्ति। परिशिष्टसंग्रह। पल्लोशरटविधान। परिशेषखण्ड-चतुर्वर्गचिन्तामणि का एक अंश। पवित्ररोगपरिहारप्रयोग। परीक्षातत्त्व--रघु० का दिव्यतत्त्व। पवित्रारोपणविधान-श्रावण में देवता के चतुर्दिक नवपरीक्षापद्धति-वासुदेव कृत। दिव्यों पर। विश्वरूप, सूत्र चढ़ाने एवं फिर धारण करने का कृत्य। यज्ञपार्श्व, मिताक्षरा, शूलपाणि पर आश्रित। १४५० पशुपतिदीपिका-शुद्धिकौमुदी (पृ० २०६ एवं २१०) ई. के पश्चात्। में व०। सम्भवतः यह पशपति की 'दशकर्मदीपिका' पर्णपुरुष-(पर्णपुरुषविधि) दूर मरने वाले लोगों का है। __ आकृतिदाह। पशुपतिनिबन्ध--श्राद्धक्रियाकौमुदी (पृ० ५०३) में व० । पर्याशौचविधि-संन्यास ग्रहण पर। हलायुध के भाई पशुपति की श्राद्धपद्धति ही पर्वकालनिर्णय। सम्भवतः यह है। लग० ११७०-१२०० ई०। पर्वतदानविधि। पाकयज्ञनिर्णय-(या पाकयज्ञपद्धति) धर्मेश्वर (उप० पर्वनिर्णय--गणपति रावल द्वारा, जो हरिदास के पुत्र धर्माभट्ट) के पुत्र उमापति (उप० उमाशंकर या उमण तथा रामदास (औदीच्य गुर्जर एवं गौड़ाधीश मनोहर भट्ट) के तनुज चन्द्रशेखर (उप० चन्द्रचूड़) द्वारा। द्वारा सम्मानित) के पौत्र थे। दर्श एवं पूर्णिमा १५७५-१६५० ई० के बीच । के यज्ञों एवं श्राद्धों के उचित कालों पर विवेचन। पाकयज्ञपद्धति-पशुपति द्वारा। कालविवेचन, नि० सि०, निर्णयसागर, मदन के उल्लेख पाकयज्ञप्रयोग--बालकृष्ण के पुत्र शम्भुभट्ट द्वारा। हैं। सं० १७४२ (नेत्राम्भोधिधराधरक्षितिमिते श्री- आपस्तम्बधर्मसूत्र का अनुसरण करता है। इण्डि० विक्रमार्के शके) अर्थात् १६८५-८६ ई०। आ० (पृ० ९९-१००, पाण्डु० तिथि सं० १७४९, पर्वनिर्णय-मुरारि द्वारा। १६९२-९३ ई०)। १६६०-१७१० ई० । पर्वनिर्णय-माधव के पुत्र रघुनाथ वाजपेयी द्वारा। पाञ्चालजातिवितेक। १५५०-१६२५ ई० के बीच। पाणिग्रहणादिकृत्यविवेक-मथुरानाथ तर्कवागीश द्वारा। पर्वनिर्णय-धर्मसिन्धु का एक अंश। नो० (जिल्द ९, पृ० २४४) का कथनहै कि लेखक पर्वसंग्रह। रघुनाथ हैं, किन्तु कालोफोन में मथुरानाथ नाम आया पलपीयूषलता-मधुसूदन के पुत्र मदनमनोहर द्वारा। है। विभिन्न प्रकार के मांसों के धार्मिक उपयोग पर ७ पारस्करगृह्यकारिका-(उप० कातीयगृह्यसूत्रप्रयोगअध्याय। विवृत्ति) शाण्डिल्य गोत्र के सोमेश्वरात्मज महेशसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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