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________________ धर्मशास्त्रीय प्रत्यती टी. प्रकाश या जीर्णोद्धार, मधुसूदन मिश्र द्वारा। धर्मकारिफा-(लेखक अज्ञात) विभिन्न लेखकों की टी० प्रदीप या कादम्बरी, गोकुलनाथ द्वारा (इण्डि० ५०८ कारिकाओं का संग्रह। नि० सि०, कौस्तुभ, आ०, जिल्द ३, पृ. ४८८)। कालतत्त्वविवेचन एवं मयूख का उल्लेख है, अतः दतनिर्णय-शंकरभट्ट द्वारा। लग० १५८०-१६००; १६८० ई० के उपरान्त (दे० बी० बी० आर० धर्म-सम्बन्धी सन्देहात्मक बातों पर। (दे० एनल्स, ए० एस०, पृ० २१९, सं० ६९१) । भण्डारकर इन्स्टीच्यूट, जिल्द ३, भाग २, पृ० बर्मकोश-त्रिलोचन मिश्र द्वारा। वर्षमान द्वारा एवं ६७-७२)। आहिकतत्त्व में व०। व्यवहारपदों, दायभाग, ऋणातनिर्णय-विश्वनाथ ने व्रतराज में अपने पितामह द्वारा दान आदि का वर्णन है। प्रणीत कहा है। १७वीं शती का उत्तरार्ष। धर्मचन-भारद्वाज गोत्र के रामरायात्मज गोवितनिर्णयपरिशिष्ट-(या द्वैतपरिशिष्ट) केशव मिश्र न्दराय के पुत्र केशवराय द्वारा। आश्वलायनगृह्य द्वारा; रत्नपाणि द्वारा व०। दो परिच्छेदों में। और इसके परिशिष्ट पर आवृत। आचार आदि श्राजों पर। दे० मित्र, नो० (५, पृ० १८६)। पर कई किरणों में विभक्त। बड़ोदा (सं०५८६०, दैतनिर्णयपरिशिष्ट-शंकर भट्ट के पुत्र दामोदर द्वारा। तिथि संवत् १८१०)। लग० १६००-१६४० ई०। धर्मतत्वकमलाकर-रामकृष्ण के पुत्र कमलाकर भट्ट तनिर्णयफक्किका-वैतनिर्णयपरिशिष्ट में व०। द्वारा। व्रत, दान, कर्मविपाक, शान्ति, पूर्त, आचार, तिनिर्णयसंग्रह-विद्याभूषण के पुत्र चन्द्रशेखर वाचस्पति व्यवहार, प्रायश्चित्त, शूद्रधर्म एवं तीर्थ पर १० परिच्छेदों में विभक्त। बीकानेर (पृ० ९९) । तिनिर्णयसिवान्तसंग्रह-शंकर भट्ट (जिनके बैतनिर्णय धर्मतस्यकलानिषि-नागमल्ल के पुत्र पृथ्वीचन्द्र द्वारा। का यहां सक्षेप दिया गया है) के पुत्र नीलकण्ठात्मज इनके विरुद्ध हैं कलिकालकर्णप्रताप, परमवैष्णव । भानुभट्ट द्वारा। लग० १६४०-१६७० ई०। १० प्रकाशों में विभक्त, सातवाँ आशौच पर है। रतनिर्णयामृत--रघुनन्दन के दायभागतत्त्व में व०। बड़ोदा (सं० ४००६)। रेसविषयविवेक-भावेश के पुत्र वर्षमान द्वारा। लग० धर्मतत्त्वप्रकाश-कर्पूर ग्राम के गोविन्द दीक्षित के पुत्र १५००। शिव चतुर्धर द्वारा। १६९८ शक (नागांकरसभू) मामुष्पायनिर्णय-(या निर्णयेन्दु) नैध्रुव गोत्रज में प्रणीत (प्रयाग में गंगा पर प्रतिष्ठान में)। हुल्श कृष्ण-गर्जर के पुत्र विश्वनाथ द्वारा। बडोदा (सं० (सं०३, ५०५) ने गलत कहा है कि इसकी तिथि १२७०८) । दिनकरोद्घोत, कौस्तुभ का वर्णन है। १७४६ ई० है, यद्यपि उद्धरण ८४ में उन्होंने 'नागा१६८० ई. के उपरान्त । रसभूशाके' दिया है। बनजायसंग्रह-रघुनन्दन द्वारा तिथितत्त्व में व०। धर्मतस्वसंग्रह-महादेव द्वारा। बलमागविवेक-दे० 'भागविवेक'। धर्मतत्वार्षचिन्तामणि। पनिष्ठापंचक। धर्मतत्वावलोक-दे० गोविन्दार्णव (अर्थात् स्मृतिमनुर्विवादीपिका--नि० सि० में कमलाकर द्वारा व०। सागर)। बनुर्वेदचिन्तामणि-नरसिंह भट्ट । धर्मवीप-दिवाकर की आह्निकचन्द्रिका में व०। मनुर्वेदसंग्रह-(वीरचिन्तामणि) शाङ्गधर द्वारा। धर्मदीपिका-(या स्मृतिप्रदीपिका) चन्द्रशेखर वाचअनुर्वेदसंहिता-वसिष्ठ द्वारा। महाराज कुमुदचन्द्र स्पति द्वारा। धर्म की विरोधी उक्तियों का समाधान सी० में कलकत्ता से प्रका। पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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