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________________ धर्मशास्त्रीय प्रन्यसूची बानकौस्तुभ-अनन्तदेव के स्मृतिकौस्तुभ से। भवशर्मा कृत कहा गया है, जो खौपालवंश में उत्पन्न बानचन्द्रिका--गौतम द्वारा। हुए थे और अग्निहोत्री थे। बानचन्द्रिका--जयराम द्वारा (हेमाद्रि का उद्धरण)। दानपरिभाषा-नीलकण्ठ द्वारा। बानचन्द्रिका-महादेव के पूत्र एवं रामेश्वर के पौत्र दानपरीक्षा--श्रीधर मिश्र द्वारा। दिवाकर द्वारा। उपाधि 'काल'। दानोयोत, दान- दानपारिजात--काण्व कुल के जन्ह के पुत्र नागदेव या रत्न, दानमयूख एवं प्रतार्क के नाम आये हैं। दान- नागेश के पुत्र अनन्तभद्र द्वारा। संक्षेपचन्द्रिका नाम भी है। १६६० ई. के उपरान्त। दानपारिजात----क्षेमेन्द्र द्वारा। बनारस में १८६४ ई० एवं बम्बई में १८८० एवं दानप्रकरण। १८८४ में प्रकाशित। दानप्रकार। वानचन्द्रिका-नीलकण्ठ द्वारा। वानप्रकाश-मित्र मिश्र का (वीरमित्रोदय का अंश)। बानचन्द्रिका-श्रीकर के पुत्र श्रीनाथ आचार्यचूडामणि दे० प्रा० १०८। द्वारा। लग० १४७५-१५२५ ई०। वानप्रदीप-.--दयाराम द्वारा। दानचन्द्रिकावलो-श्रीधरपति द्वारा। दानप्रदीप----दयाशंकर द्वारा। वानप्रदीप --गुर्जर देश के विष्णुशर्मा के पुत्र महामहोबानवर्षग-रघुनन्दत के शुद्धितत्त्व (२, पृ० २५०) एवं पाध्याय माधव द्वारा। तिथितत्त्व में व०। दानफलविवेक। बानदिनकर-दिनकर के पुत्र दिवाकर द्वारा। दानफलवत-पति से विरोध होने पर पत्नियों द्वारा या बानदीधिति-.-भास्कर के पुत्र नीलकण्ठ द्वारा। पुत्रों से विरोध होने की आशंका से स्त्रियों द्वारा किये मानवीपवाक्यसमुच्चय। जाने वाले कृत्यों का वर्णन (इण्डि० आ०, जिल्द ३, गनधर्मप्रक्रिया-कृष्णदेव सन्मिश्र मैथिल के पुत्र भवदेव पृ० ५७७)। भट्ट द्वारा। भूपाल का नाम आया है। चार काण्डों दानभागवत-वर्णी कुबेरानन्द द्वारा। संग्रामसिंह के में। पाण्डु०, मित्र, नो० (५, पृ० १४४)। तिथि काल में प्रणीत। यह एक विशद ग्रन्थ है और पुराणों शक १५५८ (१६३६-७ ई०)। एवं पौराणिक कृत्यों के विषय में बहुमूल्य है एवं बानपजी-(या पञ्जिका) द्रोणकुल के देवसिंह के पुराणों पर आधृतधर्म के विषयों पर प्रकाश डालता है। पुत्र नवराज द्वारा। नो० (५, पृ० १५०)। पीटर्सन ड० का० (पाण्डु० सं० २६५, १८८७-९१) । इसमें (५वीं रिपोर्ट, पृ० १७७) ने 'नरराज' पढ़ा है और 'नागरी' (अक्षरों के लिए प्रयुक्त) शब्द की व्युत्पत्ति कहा है कि नरराज के आदेश से सूर्यकर ने संगृहीत है। बोपदेव के संकेत से तिथि १३०० के उपरान्त। किया है। दानमञ्जरी-व्रजराज द्वारा। सनपश्मी--रत्नाकर ठक्कुर द्वारा। दानसागर का दानमनोहर-त्रिपाठी परमानन्द के पुत्र सदाशिव द्वारा। संक्षेप है। गौड़ेश महाराज मनोहरदास की आज्ञा से स०१७३५ बानपजी--सूर्यकरशर्मा द्वारा। दे० 'नवराज' भी। (१६७८-७९ ई.) में प्रणीत । बानपाति--(षोडशमहादानपद्धति) मिथिला के कर्णाट दानमयूख-शंकरभट्ट के पुत्र नीलकण्ठ द्वारा! १७वीं राजानसिंह के मन्त्री रामदत्त द्वारा। लेखक चण्डेश्वर शती के पूर्वार्ध में। काशी सं०सी० एव घरपूरे द्वारा के चचेरे भाई थे। १४वीं शती के पूर्व में बम्बई से प्रका। (इण्डि० आ०, ३, पृ० ५५०, सं० १७१४) । इसे दानमहिमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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