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________________ १५२८ धर्मशास्त्र का इतिहास कात्यायनगृह्मपरिशिष्ट। कायस्थतत्व। कात्यायनस्मृति-याज्ञवल्क्य, विज्ञानेश्वर, हेमाद्रि, माधव कायस्थनिर्णय-(या प्रकाश) विश्वेश्वर उर्फ गागाभट्ट द्वारा व० । दे० वृद्धकात्यायन, रघुनन्दन ने उल्लेख द्वारा। लगभग १६७४ ई० में प्रणीत । किया है (जीवानन्द द्वारा मुद्रित, भाग १, पृ० कायस्थनिर्णय। ६०४-६४४)। इसे आनन्द० (पृ० ४९-७१) में कायस्थपद्धति--विश्वेश्वर द्वारा ।१८७४ ई० में बम्बई कर्मप्रदीप एवं गोभिलस्मृति कहा गया है। में मुद्रित। यह कायस्थप्रदीप ही है (बड़ोदा, सं० कादम्बरी--गोकुलनाथ के द्वैतनिर्णय पर एक टीका। ९६७०, संवत् १७२७ = १६७०-७१ ई०) । कामधेनु--गोपाल द्वारा। दे० प्रक० ७१। कायस्थविचार। कामधेनु--टेकचन्द्र के पुत्र यतीश द्वारा। इसमें धर्म, कायस्थोत्पत्ति---गंगाधर द्वारा। अर्थ, काम एवं मोक्ष--चार स्तनों का वर्णन है। कारणप्रायश्चित्त।। अमृतपाल के पुत्र विजयपाल के संरक्षण में संगृहीत। कारिका--अनन्तदेव द्वारा। स्टोन, पृ० ८४ एवं ३०१। कारिकाटीका--(लघु) माधव द्वारा। कामधेनुदीपिका--मनुस्मृति के टीकाकार नारायण द्वारा कारिफामंजरी--मौद्गल गोत्र के वैद्यनाथ के पुत्र कनक(दे० मनु ५।५६, ८० एवं १०४)। ___ सभापति द्वारा। टी० प्रयोगादर्श (लेखक द्वारा)। कामन्दकीयनीतिसार--(बिब्लि०इण्डि० एवं दाएनीएल कारिकासमुच्चय। सौरोज) महाभारत, वामन के काव्यालंकार में व०। कार्तवीर्यार्जुनदीपदान- रामकृष्ण के पुत्र कमलाकरद्वारा। १९ सर्गों एवं १०८७ श्लोकों में। कुछ पाण्डु ० में २० कार्तवीर्यार्जुनदीपदानपति---विश्वामित्र के पुत्र रघुनाथ सर्ग हैं। टी०, आत्माराम द्वारा। टी० उपाध्याय द्वारा। निरपेक्षा (अलवर, २९) । यह काव्यादर्श के प्रथम कार्तवीर्यार्जुनदीपदानपद्धति-कृष्ण के पुत्र लक्ष्मणदेशिक श्लोक से आरम्भ होता है और 'कौटिल्य' शब्द की द्वारा। व्युत्पत्तियाँ उपस्थित करता है---'कुटिर्घट उच्यते तं कार्यनिर्णयसंक्षेप----(श्राद्ध पर)। लान्ति संगृह्णन्ति . . .नाधिकं . . .इति कुटिलाः.., कार्णाजिनिस्मृति---हेमाद्रि, माधव, जीमूतवाहन, मिताकुटिलानामपत्ग कौटिल्य: विष्णुगुप्तः'। टी० जयराम क्षरा द्वारा व०।। द्वारा। टी० जयमंगला, शंकरार्य द्वारा (ट्राएनी- कालकौमुदी-दुर्गोत्सवविवेक में व० । एल सी.)। टी० नयप्रकाश, वरदराज द्वारा। कालकौमदी---हरिवंशभद्र (द्राविड) के पुत्र गोपाल भद्र कामरूपनिबन्ध--- रघुनन्दन की पुस्तक मलमासतत्व में द्वारा। रघुनन्दन, रायमुकुट, कमलाकर द्वारा व० । एवं कमलाकर द्वारा उ०। १४०० ई० के पूर्व । कामरूपयात्रापद्धति--हलिरामशर्मा द्वारा; १० पटलों कालकौमुदी--गदावर के पुत्र नीलम्बर (कालसार के में। लेखक) द्वारा गोविन्दानन्द की शुद्धिकौमुदी में व० । कामिक-हेमाद्रि, कालमाधव, नृसिंहप्रसाद, निर्णयसिन्धु कालगुणोत्तर--शान्तिमयूख में व० । द्वारा व०। कालचन्द्रिका---कृष्णभट्ट मौनी द्वारा। काम्यकर्मकमला। कालचन्द्रिका-~-पाण्डुरंग मोरेश्वर भट्ट द्वारा। काम्यसामान्यप्रयोगरत्न। कालचिन्तामणि---गीविन्दानन्द की शुद्धिर्कामुदी में व० कायस्थक्षत्रियत्वद्रुमदलनकुठार--- लक्ष्मीनारायण पण्डित (अतः १५०० ई० के पूर्व)। द्वारा। कालतस्वविवेचन---भट्ट रामेश्वरात्मज भट्ट माधव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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