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________________ तीर्थसूची सिद्धवन - मत्स्य० २२।३३ | यहाँ पर श्राद्ध अत्यन्त फलदायक होता है । सिद्धवट -- (१) ( लोहार्गल के अन्तर्गत ) वराह० १५१।७ (२) (श्रीपर्वत के अन्तर्गत ) लिंग ० १।९२।६५३ । सिद्धिकूट - ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० क०, पृ० ८८ ) । मत्स्य ० सिद्धेश्वर -- (१) (वारा० के अन्तर्गत ) ३२।४३ एवं १८१।२५ ( ती० क०, पृ० ८८, ११७ एवं २४१ ); (२) ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १|१८|१००, ( नर्मदा के दक्षिणी तट पर एक लिंग) वाम० ४६ ३४, पद्म० | २०|३४ । ( ३ ) ( गोदावरी के दक्षिणी तट पर ) ब्रह्म० १२८|१ | सिन्धु - (१) (आधुनिक सिन्ध नदी, यूनानी 'सिष्ठोस' ) ऋ० २।१५/६ ( यहाँ सिन्धु को उत्तर की ओर या गया है) ५/५३९, ८/२०/२५ (ओषधि जो सिन्धु, असिक्नी एवं समुद्रों में है), १०।७५।६ । सप्त सिन्धु ( पंजाब की पाँच नदियाँ, सिन्धु एवं सरस्वती) ऋ० २।१२।१२. ४/२८/१, ८।२४।२७, अथर्व ० ६।३।१ में वर्णित है । द्रोणपर्व १०१।२८ ( सिन्धुषष्ठाः समुद्रणाः), राज० १।५७ (स्टीन की टिप्पणी), नोलमत० ३९४ ( सिन्धु गंगा है और वितस्ता यमुना है ) । देखिए वर्णन के लिए इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द १, पृ० २९-३० । यह कैलास के उत्तर तिब्बत से निकलती है । सिन्धु उस जनपद का भी नाम है जिसमें यह नदी बहती है ( पाणिनि ४ | ३ | ९३ काशिका ( पाणिनि ४।३।८३, 'प्रभवति' ) ने उदाहरण दिया है-- दारादी सिन्धुः' (सिन्धु नदी दरद से निकलती है) । सिन्धु नदी रुद्रदामन के जूनागढ़ वाले अभिलेख में भी उल्लिखित है; (२) (एक नदी जो पारियात्र से निकलकर यमुना में मिलती है) वायु. ४५ ९८, मत्स्य० ११४/२३, ब्रह्म० २७/२८ । यह वही काली सिन्धु है जो चम्बल एवं बेतवा के मध्य बहता है। मालतीमाधव ने इसके और 'पारा' के संगम (अंक ४, अन्त में) तथा इसके और 'मधु११६ ), Jain Education International १४९९ मती' (अंक ९, तीसरे श्लोक के पश्चात् गद्य) के संगम का उल्लेख किया है। नाटक के दृश्य में पद्माaat को पारा एवं सिन्धु के संगम पर रखा गया है। सिन्धुप्रभव --- ( सिन्धु का उद्गम ) वन० ८४१४६. पद्म० १।३२।१० । सिन्धुसागर-नृसिंह०६५।१३ (ती० क०, पृ० २५२ ) । सिन्धु- सागरसंगम - - वन० ८२२६८, वायु० ७७/५६, पद्म० १।२४।१६ । सिन्धूत्तम -- (झील) बन० ८२।७९ । सीतवन -- ( कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) पद्म० १।२६।५५ सीततीर्थ -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १७९।२८ । सीता--. ( गंगा की एक मूल शाखा) वायु० ४७।२१ एवं ३९, भाग० ५।१७१५ । सुकुमारी --- ( शुक्तिमान् पहाड़ से निकली हुई नदी ) वायु० ४५।१०७ । सुगन्ध -- ( सरस्वती के अन्तर्गत) पद्म० १|३२|१ | सुगन्धा -- वन० ८४।१० वि० ध० सू० २०११० ( टोका के अनुसार यह सौगन्धिक पर्वत के पास है), पद्म० १२८१, (सरस्वती के अन्तर्गत), पद्म० और वन० में एक ही श्लोक है । सुग्रीवेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत ) लिंग० ( तो० क०, पृ० ५१) । सुचक -- ( सरस्वती के अन्तर्गत ) वाम० ५७१७९ । सुतीर्थक- वन० ८३।५६ । सुदिन वन० ८३|१०० । सुनन्दा -- (नदी) भाग० ८ ११८ | सुनील- - ( वारा० के अन्तर्गत) पद्म० ११३७ ३ | सुन्दरिकातीर्थ - वन० ८४ । ५७, अनु० २५।२१ ( देविका के नाम पर ) वराह० २१५।१०४ । सुन्दरिकाहद - अनु० २५।२१ । सुन्दरिका -- (नदी) पद्म० १।३२।२१। यह एक पालि दोहे में उद्धृत सात पवित्र नदियों में एक है। (एस० बी० ई०, जिल्द १०, भाग २, पृ० ७४) । सुपर्णा - (गोदा० की एक सहायक नदी) ब्रह्म० १००११ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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