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है । दे ( पृ० २२० ) ने इसे कैस्पियन समुद्र के पश्चिमी तट पर 'बाकू' माना है। वत्सीजनक -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५६।१ । भव -- (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४०/६१
यज्ञ किया था और यह तीर्थ सभी नदियों में श्रेष्ठ था) । कूर्म० २१२०/३२, वाम० ९० |४; (९) ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० ७९।६ । वराहपर्वत - ( सम्भवत: कश्मीर का विष्णुधर्मसूत्र ८५/६ |
बारामूला )
( जल कौशिकी में जाता है) । वनेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (तीर्थ- वराहमूलक्षेत्र या वराहेश्वर - ( कश्मीर में आधुनिक कल्प०, पृ० १०४) । वधूसरा - ( नदी, जिसमें स्नान करके परशुराम ने राम द्वारा छीन ली गयी शक्ति पुनः प्राप्त की थी)
बारामूला) यह कश्मीर की घाटी के ऊपर वितस्ता के दाहिने तट पर स्थित है और आदिवराह का तीर्थस्थल है। राज० ६ १८६, ह० चि० १२/४३, कश्मीर रिपोर्ट ( पृ० ११ १२) एवं स्टीन-स्मृति ( पृ० २०१ २०२ ) ।
वराहस्थान - (विष्णु के वराहावतार के लिए तीन स्थल
प्रसिद्ध हैं, यथा— कोकामुख, बदरी एवं लोहार्गल ) वराह० १४०/४-५ ।
तीर्थसूची
वन० ९९।६८ ।
वन्दना -- (नदी) भीष्म० ९।१८ | वरणा - ( वाराणसी की उत्तरी सीमा की नदी ) मत्स्य० २२।३१, १८३।६२ देखिए गत अध्याय १३ -- काशी, लिंग० ( १।९२।८७ ), जहाँ 'वरुणा' शब्द आया है ।
वरणावती - ( नदी ) अथर्ववेद ४।७१७ | वरदा (विदर्भ प्रदेश की वर्धा नदी) रामा० ४|४|१९, अग्नि० १०९।२२, नलचम्पू ६।६६ । देखिए 'वरदासंगम' के अन्तर्गत |
वरदान - वन० ८२।६३-६४, पद्म० १।२४।१२ ( दोनों में दुर्वासा द्वारा विष्णु को दिये गये वर की गाथा का उल्लेख है) ।
वरदासंगम --- वन० ८५।३५ पद्म० १।३९।३२ ॥ वराहृतीर्थ -- (१) (कुरुक्षेत्र के अन्तर्गत) वाम० ३४| ३२, पद्म० १।२६।१५; (२) (वारा० के अन्तर्गत ) पद्म० १।३७ । ६, कूर्म० १।३५।५; ( ३ ) ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १६६।२३ ( वराह की चार सुवर्णाकृतियाँ या सोने की प्रतिमाएं यहाँ थींनारायण, वामन, राघव एवं वराह); (४) कश्मीर में वितस्ता पर ) नीलमत० १५५९ ( ५ ) ( सह्यामलक का एक उपतीर्थ ) नृसिंह ० ६६ । ३४; (६) ( साभ्रमती के अन्तर्गत ) पद्म० ६।१६५ । ( ७ ) ( नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९३।७४, कूर्म० २।४२ । १४, पद्म० ११२०/७१ ; ( ८ ) ( पयोष्णी पर) वन० ८८1७ एवं ९ ( यहाँ पर राजा नृग ने
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वराहेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग ० ( ती०कल्प ०, पृ० ९८ ) ।
वरुणस्रोतस - (पर्वत) वन० ८८।१०।
वरुणा - ( गोदावरी की एक सहायक नदी ) । पद्म० ६।१७६।५९ ।
वर्णाशा-- ( बनास नदी, राजस्थान में, जो पारियात्र से निकल कर चम्बल में मिलती है) ब्रह्माण्ड ० २।१६।२८ | देखिए 'पर्णाशा' । वर्ण-- (नदी) पाणिनि ( ४ |२| १०३ ) | काशिका में व्याख्या है कि 'वर्ण' पर स्थित देश भी 'वर्ण' है । 'वर्ण' सुवास्त्वादि-गण में आया है ( पाणिनि ४।२।७७)।
वरुणेश - ( १ ) ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० ६६ ); (२) (नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० १९१६ ।
वसिष्ठतीयं - मत्स्य० २२।६८ ( यहाँ श्राद्ध एवं दान अत्यन्त फलदायक होता है ) ।
वसिष्ठाश्रम - (१) (कश्मीर में ज्येष्ठेश्वर के पास ) राज० १।१०७ (स्टीन की टिप्पणी, जिल्द १, पृ० २०-२१), नीलमत० १३२३; (२) ( अर्बुद पर्वत पर) वन १०२ | ३; (३) ( बदरीपाचन पर )
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