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तीर्यसूची
पर्व १४।५०, वराह० १४९/६६, स्कन्द० ७ २ ११६८ (वस्त्रापथ में सोमनाथ के पास उदयन्त पहाड़ी का पश्चिमी भाग), मत्स्य ० २२|७४ । रैवतक अर्थात् आधुनिक गिरनार, जैनों का एक अति पवित्र स्थल है । किन्तु आधुनिक द्वारका इससे लगभग ११० मील दूर है । मूल द्वारका, जो समुद्र द्वारा बहा दी गयी, अपेक्षाकृत समीप में थी । पाजिटर महोदय (पृष्ठ २८९) को दो द्वारकाओं का पता नहीं था, अतः उन्होंने काठियावाड़ के पश्चिम कोण में हालार में बरदा पहाड़ी को रैवतक कहा है। स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ शिलालेख (४५५ - ४५८ ई० ) में पलाशिनी नदो को वटक के सामने ऊर्जयत् से निर्गत कहा गया है (सी० आई० आई०, जिल्द ३, पृष्ठ ६४) ।
रोषस्वती -- (नदी) भाग० ५।१९।१८ | रोहीतक -- (पर्वत) सभापर्व ३२०४ |
ल
लक्ष्मणतीर्थ - - ( १ ) ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म ० १२३।२१५; (२) (सेतु के अन्तर्गत ) स्कन्द ० ३, ब्रह्मखण्ड ५२।१०६-७ ( इस तीर्थ पर केवल मुण्डन होता है) । यह तीर्थ एक नदी पर है, जो कुर्ग की दक्षिणी सीमा पर स्थित ब्रह्मगिरि से निकलती है और कावेरी में मिलती है; इम्पी० गजे० इण्डि०, जिल्द १६, पृष्ठ १३१ ।
लक्ष्मणाचल - नारद० २|७५/७४ । लक्षणेश्वर-- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) नारद ० २।४९ | ६४ ।
लक्ष्मी-तीयं -- ( गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म ०१३।६७|१ | लपेटिका -- (नदी) वन० ८५/१५ । लवणा - ( नदी, जो पारा और सिन्धु के संगम पर स्थित पद्मावती नगर से होकर बहती है) देखिए मालतीमाधव, अंक ९, श्लोक २ ।
लवर्णकतीर्थ - ( सरस्वती पर ) पद्म० १।२६।४८ । लाविका - (चम्पा के पास ) पद्म० १|३८|७१
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ललितक -- ( सन्तनु का तीर्थ ) वन० ८४ ३४, पद्म० १।२८।३४, नारद ० २१६६।३७ ।
ललिता - - ( वारा० में) नारद ० २०४९।४१, लिङ्ग० (ती० कल्प०, पृ० ९६ ), मत्स्य ० २२।११ ने उल्लेख किया है, किन्तु लगता है यह कहीं गंगा पर था । लांगलिनी - (नदी) सभा० ९।२२ मार्कण्डेय ५४।२९ ( लागुलिनी, जो महेन्द्र से निकली है), वाम० ८३ | १४ ( ती० कल्प०, पृ० २३५ ) । गंजाम जिले का चिकाकोल कसबा, लांगुल्य के बायें तट पर इसके मुख से चार मील की दूरी पर है । इम्पी० गजे० इण्डिo, जिल्द १०, पृष्ठ २१७ ।
लांगली - लिङ्ग - ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (तीο कल्प०, पृष्ठ १०५)।
लांगलतीर्थ -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) पद्म० १|१८| ५१ ।
लिङ्गसार -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९१।५१ । लिङ्गी जनार्दन -- ( नर्मदा के अन्तर्गत) कूर्म ० २४२
६१ ।
लोकोद्धार - वन० ८३।४५, पद्म० ११२६।४१ । लोकपाल --- ( बदरी के अन्तर्गत ) वराह० १४१।२८-३१ । लोकपालेश्वर -- ( वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० १०५) ।
लोणारकुण्ड - (विष्णुगया में ) पद्म० ६ १७६/४१ । लोणार बरार के बुढाना जिले में नमक की झील है। यहां दन्तकथा के अनुसार उस लोणासुर नामक राक्षस का निवास था जिसे विष्णु ने हराया। यह बहुत प्राचीन स्थल है और बड़ी श्रद्धा का पात्र है । आइने अकबरी (जिल्द २, २३०-२३१) ने इसका वर्णन किया है और कहा है कि ब्राह्मण लोग इसे विष्णुगया कहते हैं । यह बरार के मध्यकालीन प्रसिद्ध मन्दिरों में गिना जाता है जिसे दैत्यसूदन कहते हैं । यह वैष्णव तीर्थ है। देखिए विक्टर कजिन्स की पुस्तक 'मिडिएवल टेम्पुल्स आँव दि डक्कन्स' ( १९३१, पृष्ठ ६८-७२ ) जहाँ इस महामन्दिर का वर्णन है और साथ ही साथ एक झील के चारों
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