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तीर्यसूची
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वराह० ( १४३।२) का कथन है कि यह गंगा के दक्षिणी तट पर एक तीर्थ है, विन्ध्य पर अवस्थित है और सभी भागवतों का प्यारा है। यह केवल द्वादशी तथा चतुर्दशी को फूल देता है ( श्लोक १३) ती० कल्प० पृष्ठ (२१७-२१८ ) । ऐं० जि० (पृष्ठ ५०८ ) का कहना है कि यह बिहार में भागलपुर के दक्षिण में है । मन्दोदरीतीर्थ --- मत्स्य० २२४१ ( दर्शन मात्र से पाप कटते हैं और श्राद्ध अत्यन्त पुण्यदायक होता है) ।
मनोजव - पद्म० १।२६।८७, वन० ८३।९३ ॥
मनोहर --- (नर्मदा के अन्तर्गत ) मत्स्य ० १९४१७, कूर्म ० मन्त्रेश्वर -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) स्कन्द० ४|३३|
मध्यन्दिनीयक तीथ -- ( मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १७७।४६ ( वैकुण्ठ तीर्थ के पश्चिम में ) ।
मध्वतीर्थ - गरुड़० उत्तर खण्ड, ब्रह्मकाण्ड २६।४६-४७ ( यह कुछ संदेहात्मक है) ।
मडवावर्त नाग-- (कश्मीर में वितस्ता पर ) ह० चि० १०।१५२ ।
मनुजेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) लिंग० (ती० कल्प०, पृ० १०४)।
२४२१२०, पद्म० १।२१।७ ।
१३७।
मन्दगा--- ( शुक्तिमान् से निकली हुई नदी ) मत्स्य० मन्युतीर्थ -- ( गोदावरी के अन्तर्गत ) ब्रह्म० १६२०१, ११४।३२, वायु० ४५।१०७ । भाग० १०१७९।२१ (माहिष्मती एवं प्रभास के मध्य में कहीं) ।
मन्दाकिनी -- (१) (चित्रकूट पर्वत के पास एवं ऋक्षवान् से निकली हुई नदी) वन० ८५1५८, अनु० २५/२९, रामा० २।९३।८ एवं ३/५/३७, वायु० ४५/९९, अग्नि० १०९।२३, ब्रह्माण्ड० २।१६।३०, मत्स्य ० ११४/२५ (२) (वारा • के अन्तर्गत एक उपतीर्थ ) ती कल्प०, पृष्ठ ८६, ( ३ ) ( कैलास के चरण में मदोदक झील से निकली हुई नदी) मत्स्य० १२१ ४, ब्रह्माण्ड ० २।१८।१; (४) (किष्किन्धा के पास ) रामा० ४।१।९५ । मन्ववाहिनी - ( शुक्तिमान् पर्वत से निर्गत नदी) मत्स्य ० ११४३२, वायु०४५/१०७१
मम्बर
- (पर्वत) विष्णु० २।२1१८ ( यह मेरु के पूर्व में है), मार्कण्डेय० ५१।१९; वन० १३९।५, १४२/२, १६३।४ (पूर्व में समुद्र तक फैला हुआ ) एवं ३१ ३३, उद्योग० ११।१२, लिंग० २।९२।१८७ एवं १८८, ६१२ (देवतागण अन्धक से डरकर मन्दर में छिप गये थे), नारदीय० २।६०।२२, वाम० ५१।७४ ( पृथूदक से शिव मन्दर पर आये और तप किया), मत्स्य ० १८४।१८।१३।२८ (मन्दर पर्वत पर देवी का नाम कामचारिणी है), भाग० ७।३।२ एवं ७७२ (हिरण्यhary यहाँ रहता था ) ।
मन्दार-वराह० १४३|१-५१ ( मन्दार- माहात्म्य),
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मरुद्गण
अनु० २५।३८ ।
महद्वृधा -- (१) (नदी) ऋ० १०/७५/५ । निरुक्त (९/२६) ने इसे ऋ० (१०/७५/५ ) में उल्लिखित सभी नदियों की उपाधि माना है और अर्थ लगाया है कि 'जो वायु या मरुतों द्वारा बाढ़ में लायी गयी हो ।' जैसा कि स्टीन ने कहा है, यह नदी मरुवर्द्धन नाम से विख्यात है तथा चिनाब की सहायक है ( जे० आर० ए० एस० १९१७, पृष्ठ ९३-९६ ) ; भाग ० ५।१९।१८; (२) पद्म० (६।२२४|४ एवं १९) में कावेरी को मरुद्द्धा कहा है। मरुस्थल -- ( - ( पुरुषोत्तम के अन्तर्गत) नारद ० २।६०।२२ । मर्करीतीर्थ -- ( त्रिपुरी, अर्थात् आधुनिक तेवर, नर्मदा के तट पर, जबलपुर से सात मील पश्चिम ) तीर्थसार (पृष्ठ १०१ ) द्वारा उल्लिखित । मल -- ( कश्मीर में ) पद्म० १।२५।४ । मलन्दरा -- (नदी) मत्स्य० २२|४१ ( यहाँ का श्राद्ध अक्षय होता है) ।
मलप्रहारिणी - या मलापहारिणी (बेलगाँव के दक्षिण
पश्चिम लगभग २२ मील सह्य से निकली हुई नदी ) आधुनिक मलप्रभा स्कन्द ० (तीर्थसार पृष्ठ ८० एवं १०१), देखिए बम्बई का गजेटियर, जिल्द २१, पृष्ठ
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