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________________ पाप निवारण के उपाय १०३९ जहाँ एक ओर पापमोचन के लिए वैदिक सूक्तों एवं मन्त्रों आदि के जप की व्यवस्था की गयी है, वहीं कुछ अन्य ग्रन्थों ने, विशेषतः पुराणों ने एक अन्य सरल विधि की व्यवस्था की है, यथा भगवान् नारायण (हरि या कृष्ण) के स्मरण से पाप कट जाते हैं। ब्रह्मपुराण (अध्याय १७६) में विष्णु का एक स्तोत्र है, जिसके पाठ से मन, वाणी या देह से किये गये सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। प्राय० वि० ( पृ० ३१) ने भविष्यपुराण से एक एवं विष्णुपुराण से तीन पद्य उदधृत किये हैं- " बड़ा पाप ( महापाप ) अपुनःकरण से ('फिर ऐसा नहीं करेंगे, इस संकल्प से ), दान (त्याग) आख्यापन से (दूसरे से कह देने से ), (विष्णु के ) ध्यान से और प्रायश्चित्त से (भविष्य ० ) तो दूर हो ही जाता है; किंतु (ऋषियों द्वारा घोषित सभी पापों के ) प्रायश्चित्तों, यथा -तप ( चान्द्रायण आदि) एवं अन्य कृत्यों ( जप, होम, दान) से पाप नाशन के लिए उत्तम कृष्णानुस्मरण है। यदि कोई नारायण को प्रातः, रात्रि, संध्या, मध्याह्न आदि में स्मरण करता है, तो वह उसी क्षण पाप-क्षय प्राप्त कर लेता है (विष्णुपुराण) ।"" ब्रह्मपुराण (२१६८७ ८८) ने एक सामान्य मान्यता की ओर निर्देश किया है — “मनुष्य मोहसमन्वित होकर कई बार पाप करने पर भी पापहर हरि के समक्ष नत होने पर नरक नहीं जाता। ऐसे लोग भी, जो जनार्दन को शठतापूर्वक स्मरण करते हैं, मृत्यु के उपरान्त विष्णुलोक को चले जाते हैं। विष्णुपुराण (११६।३९) का कथन है कि जो लोग द्वादशाक्षर मन्त्र ('ओं नमो भगवते वासुदेवाय') पर ध्यानावस्थ होते हैं या उसका जप करते हैं वे जन्म-मरण के चक्र में पुनः नहीं पड़ते। आदिपर्व (१६१ | १४) में कुन्ती ने मन्त्रों की महती शक्ति का उल्लेख किया है। नृसिंहपुराण (अध्याय १८) ने अष्टाक्षर ('ओं नमो नारायणाय' ) मन्त्र की महिमा गायी है और कहा है ( ६३।६ ) – “बहुत से मन्त्रों के प्रयोग एवं व्रतों के सम्पादन से लाभ है, जब 'ओं नमो नारायणाय' नामक मन्त्र सभी सिद्धियों एवं इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ है।" लिंगपुराण (पूर्वार्ध, अध्याय ८५) एवं सौरपुराण (६५) में पंचाक्षर मन्त्र ( नमः शिवाय) की महत्ता का वर्णन है। ब्रह्मपुराण (४१।६३) ने वैदिक मन्त्रों एवं आगमोक्त मन्त्रों के विषय में कहा है। नित्याचारपद्धति ( पृ० ६७ ) का कथन है कि श्रोत कृत्यों में वैदिक मन्त्रों को समझने की आवश्यकता पड़ती है किन्तु स्मार्त कृत्यों में ऐसी बात नहीं है। वान - गौतम (१९।१६) का कथन है कि सोना, गौ, परिधान, घोड़ा, भूमि, तिल, घृत एवं अन्न ऐसे दान हैं जो पाप का क्षय करते हैं, विकल्प से इनका उपयोग करना चाहिए यदि कोई स्पष्ट उल्लेख न हो। वसिष्ठ ने दान के विषय में कई वचन उद्धृत किये हैं, जिनमें एक ऐसा है---"जीविकावृत्ति को लेकर अर्थात् वृत्ति या भरण-पोषण से परेशान होकर जब मनुष्य कोई पाप कर बैठता है तो वह गोचर्म के बराबर भूमि भी देकर पवित्र हो सकता है। यही ५. भविष्यपुराणम् । अपुनःकरणात्त्यागात्ख्यापनादनुचिन्तनात् । व्यपैति महदप्येनः प्रायश्चित्तैर्न केवलम् ॥ विष्णुपुराण । प्रायश्चित्तान्यशेषाणि तपः कर्मात्मकानि वै । यानि तेषामशेषाणां कृष्णानुस्मरणं परम् ॥ प्रातर्निशि तथा सन्ध्यामध्याह्नाविषु संस्मरन् । नारायणमवाप्नोति सद्यः पापक्षयं नरः । प्राय० वि० ( पृ० ३१) । 'प्रायश्चि० परम्' विष्णु० का ११।६।३९ पद्य है । और देखिए ब्रह्मपुराण (२२।३७ एवं ३९), अपरार्क ( पृ १२३२) एवं प्राय० तत्व ( पृ० ५२४) । ६. कृत्वापि बहुशः पापं नरा मोहसमन्विताः । न यान्ति नरकं नत्वा सर्वपापहरं हरिम् ॥ शाठ्येनापि नरा नित्यं ये स्मरन्ति जनार्दनम् । तेपि यान्ति तनुं त्यक्त्वा विष्णु लोकमनामयम् ॥ ब्रह्मपुराण (२१६।८७-८८); अद्यापि न निवर्तन्ते द्वावशाक्षरचिन्तकाः । विष्णुपुराण ( १।६।३९ ) । ७. हिरण्यं गौर्वासोऽश्वो भूमिस्तिला घूतमन्नमिति देयानि । एतान्येवानादेशे विकल्पेन क्रियेरन् । गौ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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