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________________ १४४६ धर्मशास्त्र का इतिहास अन्तर्गत ) लिंग ० ६६।३३। धनुःपात -- (आमलक ग्राम के अन्तर्गत ) नृसिंह० धर्मेश्वर -- (१) (वाराणसी के ( ती० क०, पृ० ५३ ) ; ( २ ) ( गया के अन्तर्गत ) नारदीय० २।४५।१०३, वायु० १११।२६ । धर्मोद्भव --- (कोकामुख के अन्तर्गत ) वराह० १४० । धरणीतीर्थ -- ( यहाँ पर श्राद्ध अत्यन्त पुण्यकारक है ) मत्स्य ० २२।७० । ४४-४६। धर्महद -- ( वाराणसी के अन्तर्गत ) नारदीय० २।५१।१४ । धर्मनद -- यह पञ्चनद है । देखिए 'पंचनद' | धर्मप्रस्थ --- ( गया के अन्तर्गत ) वन० ८४ । ९९ । धर्मपृष्ठ -- ( बोधगया से चार मील पर ) पद्म० ५।११। ७४, नारदीय० २।४४ । ५४-५५ एवं ७८, कूर्म० २।३७ | धवलेश्वर -- ( साभ्रमती के उत्तरी तट पर ) पद्म० ६ । १४४।७ (इसे इन्द्र द्वारा प्रतिष्ठापित समझा जाता है) । धारा--- - (नदी) पद्म० ११२८/२६, मत्स्य० २२|३८| धारातीर्थ -- ( नर्मदा के उत्तरी तट पर ) मत्स्य ० १९०६ । धारापतनकतीर्थ - (मथुरा के अन्तर्गत ) वराह० १५४।८। घुष्टिविनायक -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) लिंग० (ती० क०, पृ० १२६) । स्कन्द० ४।५७ ३३ ( यहाँ 'धुष्टि' की व्युत्पत्ति की गयी है); ५६ गणेशों के लिए देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १३ । धूतपाप -- ( या धौतपाप या धोतपुर ) (१) ( नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य ० २२/३९, १९३।६२, कूर्म ० २।४२।९-१०; (२) (गोकर्ण पर) ब्रह्माण्ड० ३।१३।२० ( रुद्र ने यहाँ तप किया); (३) ( गया के अन्तर्गत) अग्नि० ११६ १२, नारदीय० २।४७।३५, ( ४ ) ( स्तुतस्वामी के अन्तर्गत ) वराह० १४८ । ५८ (स्तुतस्वामी से ५ कोस से कम की दूरी पर ), ती० क०, पृ० २२३ | ऐं०जि० ( पृ० ४०१ ) में आया है कि धोपापपुर गोमती के दाहिने तट पर है, और सुल्तानपुर से दक्षिण-पूर्व १८ मील है । (५) ( रत्नगिरि जिले में संगमेश्वर के पास ) देखिए इम्पि० गजे० इण्डि०, जिल्द २२, पृ० ५० धूतपापा -- (१) (वाराणसी के अन्तर्गत एक नदी ) देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १३ । (२) (हिमालय से निकली हुई नदी) वाम० ५७/८०, ब्रह्माण्ड० २।१६।२६ । धूमावती - वन ० ( घूमवन्ती ) । ८४।२२, ३८ । धर्मराजतीर्थ -- (प्रयाग के पास यमुना के पश्चिमी तट पर) मत्स्य० १०८।२७, पद्म० ११४५।२७ । धर्मारण्य -- ( १ ) ( गया के अन्तर्गत ) वन० ८२/४६, अनु० १६६।२८-२९ । वायु० १११।२३, वाम०८४११२ ( धर्मारण्य के ब्राह्मण), अग्नि० ११५ । ३४, नारदीय ० २|४५|१००; देखिए डा० बरुआ का 'गया एवं बुद्धगया', जिल्द १, पृ०१६-१७ ( जहाँ यह मत प्रकाशित है कि यह बोधगया के मन्दिर के आसपास की भूमि से सम्बन्धित है और यह बौद्ध साहित्य के उरुवेला या उरुविल्वा के जंगल की ओर निर्देश करता है । ( १|३२|७) में आया है कि धर्मारण्य ब्रह्मा के पौत्र एवं कुश के पुत्र असूर्त रजा द्वारा स्थापित किया गया था । देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ४, अध्याय १४ । (२) ( महाकाल के पास ) पद्म० १।१२।६-८; बृहत्संहिता १४।२ ( किन्तु स्थान अनिश्चित है ) । धर्मशास्त्रेश्वर - ( वाराणसी के अन्तर्गत ) ४|३३|१३३ ॥ धर्मशिला --- ( गया के अन्तर्गत ) वायु० (अध्याय १०७ ) एवं अग्नि० ११४।८-२८ । गाथा के लिए देखिए गत अध्याय १४ । रामा० स्कन्द ० धर्मतीर्थ -- ( वाराणसी के अन्तर्गत) पद्म० ११३७ ४, अग्नि० १०९।१६, कूर्म ० ११३५/१०, पद्म० ६।१३५।१७ । धर्मावती -- ( साभ्रमती से मिलने वाली नदी ) पद्म० ६।१३५।१६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only पद्म० १२८२३ www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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