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________________ तीर्यसूची १४११ ऋषभा--(विन्ध्य से निकलती हुई नदी) मत्स्य० एकवीरा-(गोदावरी के अन्तर्गत) ब्रह्म० १६१।३ । ११४।२७। एकहंस--वन० ८३।२० । ऋषभजनकतीर्थ या उषाती--(मथुरा के अन्तर्गत) एकानक--(उत्कल या उड़ीसा में, कटक से लगभग __ वराह० (ती० क०, पृ० १९१)। २० मील दूर) यह रुद्रतीर्थ है। एकाम्रक प्राचीन ऋषिकन्या--(नर्मदा के अन्तर्गत) मत्स्य० १९४।१४। है, इसे अब भवनेश्वर कहा जाता है। इसे कृत्तिऋषिका--(शुक्तिमान् पर्वत से निकली हुई एक नदी) वास भी कहा जाता रहा है। ब्रह्म० (४१।१०वायु० ४५।१०७। ९३) ने इसकी प्रशस्ति गायी है (तीर्थ चिन्तामणि, ऋषिकुल्या--(नदी) वन० ८४।४९, पद्म० ११३२।- पृ० १७६-१८०)। इसे पापनाशक, वाराणसी के १२, मत्स्य० ॥१४।३१, ब्रह्म० २७।३७, नारद० सदृश और आठ उपतीर्थों वाला कहा जाता है। २।६०।३०। (महेन्द्र पर्वत से निकली हुई) वायु० प्राचीन काल में यहाँ एक आम का पेड़ था, इसी ४५।१६० (ऋतुकुल्या)। ऐं० जि० (पृ. ५१६) से इसका यह नाम पड़ा (ब्रह्म० ३४।६ एवं ४१ । के मत से यह जाम की एक नदी है। प्रसिद्ध जौगढ़ १०-९३)। देखिए हण्टर कृत 'उड़ीसा' (जिल्द किला, जिसके मध्य के एक विशाल पर्वत पर अशोक १, पृ० २३१-२४१) एवं डा० मित्र कृत 'ऐण्टीक्वि के १३ अनुशासन उत्कीर्ण हैं, इसी नदी पर है। टोज आव उड़ीसा' (जिल्द २, पृ० ३६-९८) जहाँ ऋषिसंघेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती० इसके इतिहास, विवरण, उत्सव आदि का उल्लेख क०, पृ० ५४)। है। मुख्य मंदिर १६० फुट ऊँचा है। भुवनेश्वर ऋषिसत्र---- (गो० के अन्तर्गत) ब्रह्म० १७३।१। के शिलालेख (डा० एल० डी० बार्नेट द्वारा सम्पादित, ऋषितीर्थ--(१) (नर्मदा पर) मत्स्य० १९११२२ एपि० इण्डि० १३, पृ० १५०) में ऐसा आया है कि एच १९३।१३। (यहाँ मुनि तृणबिन्दु शाप से मुक्त एका म्रक में गंगराज अनंगभीम की पुत्री एवं हैहय हुए थे) कूर्म० २०४१।१५, पद्म० १११८।२२; राजकुमार परमर्दी की विधवा रानी ने विष्णु का (२) (मयुरा के अन्तर्गत) वराह० १५२१६० । मन्दिर बनवाया। इस शिलालेख में उत्कल की ऋष्यमूक या ऋष्यमूके--(पर्वत) रामा० ३१७२।- प्रशंसा, एकाम्रक के मन्दिर एवं बिन्दुसर का वर्णन १२, ३।७५।७ एवं २५। (पम्पासर की सीमा पर) है। इस शिलालेख की तिथि अज्ञात है। किन्तु भाग० ५।१९।१६, वन० २८०।९, वन० १४७।३० यह शक संवत् ११०१-१२०० के बीच कहीं है। (यहाँ सुप्रोव रहते थे), २७९।४४ (पम्पासर के यहाँ बहुत-सी मूर्तियाँ एवं मन्दिर हैं। देखिए ए० पास) । देखिए पाजिटर (पृ० २८९) जिनकी एस्. इण्डिया रिपोर्ट (१९०२, पृ० ४३-४४) टिप्पणो सन्देहात्मक है। एवं पुरुषोतमतत्त्व (जहाँ रघुनन्दन ने ब्रह्मपुराण ऋष्यवन्त या ऋष्य--(पर्वत) मत्स्य० ११४१२६, के अध्याय ४१ से कई श्लोक उद्धृत किये हैं)। वायुर० ४५।१०१, ब्रह्म० २७१३२। पाँच भागों एवं ७० अध्यायों में एकाम्रपुराण भी ऋष्यशंगेश्वर--(वारा० के अन्तर्गत) लिंग० (ती. है। एकाम्र-चन्द्रिका में (जो यात्रियों की जानकारी कल्प०, पृ० ११५)। के लिए लिखित है) कपिलसंहिता, शिवपुराण एवं अन्य ग्रन्थों से उद्धरण दिये गये हैं। देखिए मित्र की 'नोटिसेज' (जिल्द ४, पृ० १३६-१३७, नं० एकधार--(साभ्रमती के अन्तर्गत) पद्म० ६।१३६।- १५६०)। १२। एरण्डीतीर्थ--(बड़ोदा जिले में नर्मदा की एक सहायक १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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