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________________ मयुरा संबन्धी प्राचीन उल्लेख ब्रह्मपुराण (१४।५४-५६) में आया है कि कृष्ण की सम्मति से वृष्णियों एवं अन्धकों ने कालयवन के भय से मथुरा का त्याग कर दिया। वायु० (८८।१८५) का कथन है कि राम के माई शत्रुघ्न ने मधु के पुत्र लवण को मार डाला आर मधुवन में मथुरा को प्रतिष्ठापित किया, किन्तु रामायण (उत्तरकाण्ड, ७०१६-९) में आया है कि शत्रुघ्न ने १२ वर्षों में मथुरा को सुन्दर एवं सम द्धिशाली नगर बनाया। घट-जातक (फॉस्वॉल, जिल्द ४, पृ० ७९-८९, संख्या ४५४) में मथुरा को उत्तर मधुरा कहा गया है (दक्षिण के पाण्डयों की नगरी भी मधुरा के नाम से प्रसिद्ध थी), वहाँ कंस एवं वासुदेव की गाथा भी आयी है जो महाभारत एवं पुराणों की गाथा से भिन्न है। रघुवंश (१५।२८) में इसे मधुरा नाम से शत्रुघ्न द्वारा स्थापित कहा गया है। ह्वेनसांग के अनुसार मथुरा में अशोकराज द्वारा तीन स्तूप बनवाये गये थे, पांच देवमन्दिर थे और बोस मंधाराम थे, जिनमें २००० वौद्ध रहते थे (बुद्धिस्ट रिकर्ड्स आव वेस्टर्न वर्ल्ड, वील, जिल्द १, प० १७९)। जेम्स ऐलन (कैटलॉग आव स्वाएंस आव ऐंश्यण्ट इण्डिया, १९३६) का कथन है कि मथुरा के हिन्दू राजाओं के सिक्के ई० पू० द्वितीय शताब्दी के आरम्भ से प्रथम शताब्दी के मध्य भाग तक के हैं (और देखिए कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑव इण्डिया, जिल्द १, १०५३८) । एफ० एस० ग्राउस की पुस्तक 'मथुरा' (सन १८८० द्वितीय संस्करण) भी दृष्टव्य है। मथुरा के इतिहास एवं प्राचीनता के विषय में शिलालेख भी प्रकाश डालते हैं। खारवेल के प्रसिद्ध अभिलेख में कलिंगराज (खारवेल) की उस विजय का वर्णन है, जिसमें मधुरा (मथुरा) की ओर यवनराज दिमित का भाग जाना उल्लिखित है। कनिष्क, हुविष्क एवं अन्य कुषाण राजाओं के शिलालेख भी पाये जाते हैं, यथा-महाराज राजाधिराज कनिक्ख (संवत् ८, एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द १७, प०१०) का नाग-प्रतिमा का शिलालेख; सं० १४ का स्तम्भतल लेख; हविष्क (सं०३३) के राज्यकाल का बोधिसत्व की प्रतिमा के आधार वाला शिलालेख (एपिग्रे० इण्डि०, जिल्द ८, पृ० १८१-१८२); वासु (सं०७४, वही, जिल्द ९, पृ० २४१) का शिलालेख ; शोण्डास (वही, पृ० २४६) के काल का शिलालेख एवं मथुरा तथा उसके आस-पास के सात ब्राह्मी लेख (वही, जिल्द २४, पृ० १९४-२१०)। एक अन्य मनोरंजक शिलालेख भी है, जिसमें नन्दिबल एवं मथुरा के अभिनेता (शैलालक) के पुत्रों द्वारा नागेन्द्र दधिकर्ण के मन्दिर में प्रदत्त एक प्रस्तर-खण्ड का उल्लेख है (वही, जिल्द १, पृ० ३९०)। विष्णुपुराण (६।८।३१) से प्रकट होता है कि इसके प्रणयन के पूर्व मथुरा में हरि की एक प्रतिमा प्रतिष्ठापित हुई थी। वायु० (९९।३८२-८३) ने भविष्यवाणी के रूप में कहा है कि मथुरा, प्रयाग, साकेत एवं मगध में गुप्तों के पूर्व सात नाग राजा राज्य करेंगे। अलबरूनी के भारत (जिल्द २, पृ० १४७) में आया है कि माहुरा (मथुरा) में ब्राह्मणों की भीड़ है। उपर्युक्त ऐतिहासिक विवेचन से प्रकट होता है कि ईसा के ५ या ६ शताब्दियों पूर्व मथुरा एक समृद्धिशाली पुरी थी, जहाँ महाकाव्य-कालीन हिन्दू धर्म प्रचलित था, जहाँ आगे चलकर बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म का प्राधान्य हुआ, जहाँ १२. वेलिए डा० बी० सी० लॉ का लेख 'मथुरा इन ऐश्येष्ट इण्डिया', जे० ए० एस० आव बंगाल (जिल्द १३, १९४७, पृ० २१-३०)। १३. सामान्य रूप से कनिष्क की तिथि ७८ ई० मानी गयी है। देखिए जे० बी० ओ० आर० एस० (जिल्द २३, १९३७, पृ० ११३-११७, डा०ए० बनर्जी-शास्त्री)। १४. नव नाकास्तु (नागास्तु ?) भोक्ष्यन्ति पुरी चम्पावतों नृपाः। मथुरां च पुरी रम्यां नागा भोक्ष्यन्ति सप्त वै॥ अनुगंगं प्रयागं च साोतं मगधांस्तथा। एताम् जनपवान्सर्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजाः ॥वायु० (९९।३८२-८३); ब्रह्म० (३७४।१९४)। देखिए डा० जायसवाल कृत 'हिस्ट्री आव इण्डिया (१५०-३५० ई०), पृ० ३-१५, जहाँ नागवंश के विषय में चर्चा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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