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________________ गया-श्राविधि १३६७ केवल ९ ही होंगे,)।“ यम (श्लोक ८०) के मत से माता, पितामही एवं प्रपितामही अपने पतियों के साथ श्राद्ध में सम्मिलित होती हैं। कुछ लोगों के मत से गयाश्राद्ध के देवता केवल छः होते हैं, यथा-पितृवर्ग के तीन पुरुष पितर एवं मातृवर्ग के तीन पुरुष पितर (त्रिस्थलीसेतु, पृ० ३४९)। रघुनन्दन ने अपने तीर्थयात्रातत्त्व में कहा है कि यह गौडीय मत है। अन्त में त्रिस्थलीसेतु (पृ० ३४९) ने टिप्पणी की है कि मत-मतान्तरों में देशाचार का पालन करना चाहिए। प्रजापति-स्मृति (१८३-१८४) ने विरोधी मत दिये हैं कि श्राद्ध में कब-कब १२ या ६ देवता होने चाहिए। जब, १२ देवता होते हैं तो प्रेतशिला-श्राद्ध में जो संकल्प किया जाता है वह गया के सभी तीर्थों में प्रयुक्त होता है।" यह ज्ञातव्य है कि गयाश्राद्ध की अपनी विशिष्टताएँ हैं, उसमें मुण्डन नहीं होता (वायु०८३।१८) तथा केवल गयावाल ब्राह्मणों को ही पूजना पड़ता है, अन्य ब्राह्मणों को नहीं, चाहे वे बड़े विद्वान ही क्यों न हों। गयावाल ब्राह्मणों के कुल, चरित्र या विद्या पर विचार नहीं किया जाता। इन सब बातों पर हमने अध्याय ११ में विचार कर लिया है। किन्तु यह स्मरणीय है कि नारायण भट्ट (त्रिस्थली०, पृ० ३५२) ने इसको गया के सभी श्राद्धों में स्वीकृत नहीं किया है, केवल अक्षयवट में ही ऐसा माना है। गया में व्यक्ति अपना भी श्राद्ध कर सकता है, किन्तु तिल के साथ नहीं।" त्रिस्थली० (पृ० ३५०) में आया है कि जब कोई अपना श्राद्ध करे तो पिण्डदान भश्मकूट पर जनार्दन की प्रतिमा के हाथ में होना चाहिए और यह तभी किया जाना चाहिए जब कि यह निश्चित हो कि वह पुत्रहीन है या कोई अन्य अधिकारी व्यक्ति श्राद्ध करने के लिए न हो (वाय०१०८1८५, गरुड०; नारदीय०, उत्तर, ४७१६२-६५)। गया में कोई भी सम्बन्धी या असम्बन्धो पिण्डदान कर सकता है (वायुपुराण, १०५।१४-१५) और देखिए वायु० (८३।३८)।" गयाश्राद्ध-पद्धति के विषय में कई प्रकाशित एवं अप्रकाशित ग्रन्थ मिलते हैं, यथा---वाचस्पतिकृत गयाश्राद्धपद्धति, रघनन्दनकृत तीर्थयात्रातत्त्व (बंगला लिपि में), माधव के पुत्र रघनाथ की गयाश्राद्धपद्धति, वाचस्पति की गयाश्राद्धविधि। हम यहाँ रघुनन्दन के तीर्थयात्रातत्त्व की विधि का संक्षेप में वर्णन करेंगे। रघुनन्दन ने तीर्थचिन्तामणि का अनुसरण किया है। गया-प्रवेश करने के उपरान्त यात्री को फल्गु-स्नान के लिए उचित संकल्प करना चाहिए, नदी से मिट्टी लेकर शरीर में लगाना चाहिए और स्नान करना चाहिए। इसके पश्चात् उसे १२ पुरुष एवं स्त्री पितरों का तर्पण करना चाहिए। तब उसे संकल्प करना चाहिए कि मैं 'ओम् अद्येत्यादि अश्वमेध-सहस्रजन्म-फलविलक्षणफल ३८. तत्र मातृश्राद्धं पृयक् प्रशस्तम्। मातामहानां सपत्नीकमेव। स्मृत्यर्थसार (पृ० ५९-६०); देखिए त्रिस्थली० (पृ० ३४९), जहां हेमाद्रि का मत दिया गया है। ३९. ओम्। अद्यामुकगोत्राणां पितृ-पितामहप्रपितामहानाममुकदेवशर्मणाम्, अमुकगोत्राणां मातृ-पितामहीप्रपितामहीनाममुकामुकदेवीनाम्, अमुकगोत्राणां मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहानाममुकामुकदेवदार्मणाम्, अमुकगोत्राणां मातामही-प्रमातामही-वृद्धप्रमातामहीनाममुकामुकदेवीनां प्रेतत्वविमुक्तिकामः प्रेतशिलायां श्राद्धमहं करिये। तीर्यचि० (पृ० २८७)। और देखिए गरुड़० (११८४१४५.४७)।। ४०. आत्मनस्तु महाबुद्धे गयायां तु तिलविना। पिण्डनिर्वपणं कुर्यात्तथा चान्यत्र गोत्रजाः॥ वायु० (८३॥३४), त्रिस्थलो० (पृ० ३५०)। और देखिए वायु० (१०५।१२); अग्नि० (११५।६८)-'पिण्डो देयस्तु सर्वेन्यः सर्वेश्च कुलतारकैः। आत्मनस्तु तथा देयो ह्यक्षयं लोकमिच्छता॥' __४१. आत्मजोप्यन्यजो वापि गयाभूमौ यदा तदा। यन्नाम्ना पातयेत्पिण्डं तं नयेद् ब्रह्म शाश्वतम् ॥ नामगोत्रे समुन्चार्य पिण्डपातनमिष्यते। येन केनापि कस्मैचित्स याति परमां गतिम् ॥ वायु० (१०५।१४-१५)। और देखिए वायु० (८३३८)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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