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________________ स्त्री-पुरुषों के मुण्डन तथा क्षौर का विचार; सवारी और पैदल यात्रा का फल १३१५ आपस्तम्ब (श्लोक ११३३-३४), अंगिरा (१६३), यम (५४-५५), पराशर (मिता०, याज्ञ० ३।२६३-२६४) आदि स्मृतियों ने व्यवस्था दी है कि नारी का मुण्डन-कृत्य केशों की केवल दो अंगुल लंबाई में होता है। परा० मा० (२,१, पृ० २९१) ने 'एवं नारीकुमारीणाम्' पढ़ा है और कहा है कि 'नारी' का तात्पर्य है 'वह स्त्री जो सधवा है'। ५२ यद्यपि स्मृति-वचन प्रायश्चित्त-सम्बन्धी हैं, तथापि ये वचन तीर्थस्थानों की ओर भी संकेत करते हैं। विधवाओं, संन्यासियों एवं शूद्रों का सम्पूर्ण मुण्डन होता है। वाचस्पति मिश्र के इस कथन में कि गंगा के तट पर मुण्डन नहीं होता, तीर्थप्रकाश (पृ० ५१) ने दोष देखा है। जब मत-मतान्तर देखने में आते हैं तो देशाचार एवं व्यक्ति की अभिलाषा का सहारा लेना होता है। तीर्थकल्पतरु (पृ० १०) का कथन है कि तीर्थयात्रा के समय पितृ-पूजा उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है जो धनवान् होता है। क्षौर एवं मुण्डन में भेद बताया गया है। प्रथम का अर्थ है केवल सिर के केशों को बनवाना और दूसरे का अर्थ है दाढ़ी-मूंछ के साथ सिर के केशों को बनवाना। इसी से नारदीय का कथन है कि सभी ऋषियों ने गया में भी क्षौर वर्जित नहीं माना, केवल वहाँ मुण्डन वजित है, गंगा पर, प्रयाग को छोड़कर, कहीं भी मुण्डन नहीं होता। तीर्थेन्दुशेखर (पृ० ७) ने अपनी सम्मति दी है कि मुण्डन एवं उपवास आवश्यक न होकर काम्य है (अर्थात् किसी विशिष्ट फल की प्राप्ति के लिए है) और शिष्ट लोग बहुत-से तीर्थों पर ऐसा नहीं करते। पुराणों एवं निबन्धों ने यात्रा करने की विधि पर भी ध्यान दिया है। मत्स्य० (१०६।४-६) का कथन है कि यदि कोई प्रयाग की तीर्थयात्रा बैलगाड़ी में बैठकर करता है तो वह नरक में गिरता है और उसके पितर तीर्थ पर दिये गये जल-तर्पण को ग्रहण नहीं करते, और यदि कोई व्यक्ति ऐश्वर्य या मोह या मूर्खतावश वाहन (बैलों वाला नहीं) पर यात्रा करता है तो उसके सारे प्रयत्न वृथा जाते हैं, अतः तीर्थयात्री को वाहन आदि पर नहीं जाना चाहिए।" कल्पतरु (तीर्थ पृ० ११) के मत से केवल प्रयाग-यात्रा में वाहन वर्जित है, किन्तु तीर्थचि० (पृ०८) एवं तीर्थप्र० (पृ० ४५) ने एक श्लोक उद्धृत कर कहा है कि बैलगाड़ी पर जाने से गोवध का अपराध लगता है, घोड़े पर (या घोड़े द्वारा खींचे जानेवाले वाहन से) जाने पर तीर्थयात्रा का फल नहीं मिलता, मनुष्य द्वारा ढोये जाने पर (पालकी ५२. स्त्रीणां पराशरेण विशेषोऽभिहितः। वपनं नव नारोणां... सर्वान्केशान्समुद्धृत्य छेदयेदंगुलिद्वयम् । सर्वत्र हि नारीणां शिरसो मुण्डनं स्मृतम् ॥ मिता० (याज्ञ० ३।२६३-२६४) । सर्वान् केशान्... मुण्डनं भवेत् । इत्यस्य प्रायश्चित्तप्रकरणे श्रुतस्याकांक्षातौल्येनात्राप्यन्वयात् । प्रयागादावपि तासां द्वचंगुलकेशाग्रकर्तनमात्र वपनम् । तीर्थप्रकाश (पृ० ५०-५१)। ५३. गयादावपि देवेशि श्मश्रूणां वपनं विना। नौरं मुनिभिः सर्वनिषिवं चेति कीर्तितम् । सश्मश्रुकेशवपनं मुण्डनं तद्विदुर्बुधाः । न क्षौरं मुण्डनं सुभ्र कीतितं वेदवेदिभिः ॥ नारदीय० (उत्तर, ६२।५४-५५) । प्रयागव्यतिरेके तु गङ्गायां मुण्डनं नहि। वही (६१५२)। ५४. प्रयागतीर्थयात्रार्थी यः प्रयाति नरः क्वचित् । बलीवर्दसमारूढः शृणु तस्यापि यत्फलम् ॥ नरके वसते घोरे गवां क्रोधो हि दारुणः। सलिलं न च गृह्णन्ति पितरस्तस्य देहिनः॥ ऐश्वर्यलाभमोहाद्वा गच्छेद्यानेन यो नरः । निष्फलं तस्य तत्सर्व तस्माद्यानं विवर्जयेत् ॥ मत्स्य० (१०६।४-५ एवं ७) । और देखिए तीर्थचि० (पृ०८, 'ऐश्वर्यलाभमाहात्म्यम्');तीर्थप्र० (पृ० ३३-३४); प्रायश्चित्ततत्त्व (पृ० ४९२); कूर्म० (११३७-४-५)। गंगावाक्यावली (१० १३) ने 'ऐश्वर्यमदमोहेन' पाठ दिया है और उसमें आया है-'मत्स्यपुराणीयवचनस्य प्रयागयात्राप्रकरणस्थत्वाद् ऐश्वर्यमदशून्यस्यैव प्रयागगमनेपि दोषाभावः।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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