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________________ १२९६ धर्मशास्त्र का इतिहास करेंगे। यदि तिथि दो दिनों तक चली जाय या जब कभी तिथि का क्षय हो जाय तो क्या करना चाहिए, इस विषय में भी हम वहीं पढ़ेंगे। पृथ्वीचन्द्रोदय जैसे कुछ श्राद्ध-सम्बन्धी ग्रन्थों में संधातथाद्ध नामक श्राद्ध का वर्णन आया है। यदि एक ही दिन विभिन्न कालों में कई लोग मृत हो जायँ तो, ऋष्यश्रृंग के मत से, उनका श्राद्ध सम्पादन उसी कालक्रम से होना चाहिए, किन्तु यदि एक ही काल में पांच या छः व्यक्ति मृत हो जायँ (यथा नाव डूबने पर या हाट-बाजार में आग लग जाने पर) तो श्राद्ध-सम्पादन के कालों का क्रम मृत-सम्बन्धियों की सन्निकटता पर ( अर्थात् कर्ता से जो अति निकट होता है उसका पहले और अन्यों का उसी क्रम से) निर्भर रहता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी की पत्नी, पुत्र, भाई एवं चाचा एक ही समय मृत हो जायँ तो सर्वप्रथम पत्नी का, तब पुत्र का और तब भाई एवं चाचा का श्राद्ध क्रम से करना चाहिए। यदि किसी दुर्घटना से पिता एवं माता साथ ही मृत हो जायें तो पिता का पहले और माता का ( शवदाह आदि ) बाद को करना चाहिए।* यदि किसी विघ्न-बाधा से श्राद्ध करना असम्भव हो तो इसके लिए भी व्यवस्था दी हुई है। ऋष्यशृंग ने इस विषय में कहा है-यदि पितृश्राद्ध के समय मरणाशौच हो जाय तो आशौचावधि के उपरान्त ही श्राद्ध करना चाहिए। यदि एकोद्दिष्ट के सम्पादन के समय कोई विघ्न उपस्थित हो जाय तो उसे दूसरे मास में उसी तिथि पर करना चाहिए।" यह अन्तिम वाक्य मासिक श्राद्ध की ओर भी संकेत करता है। यदि किसी बाधा से षोडश श्राद्धों में कोई स्थगित हो जाय तो उसे अमावस्या को या उससे भी अच्छा कृष्णपक्ष की एकादशी को करना चाहिए। यदि मरणाशौच से मासिक श्राद्ध या सांवत्सरिक श्राद्ध में बाधा उपस्थित हो जाय तो उसका सम्पादन आशौचावधि के उपरान्त या अमावस्या को किया जाना चाहिए। यही बात पद्म० में भी आयी है।" यदि विघ्न कर्ता की रोगग्रस्तता, सामग्रियों के एकत्रीकरण की असमर्थता या पत्नी की रजस्वला अवस्था से सम्बन्धित हो तो आमश्राद्ध किया जा सकता है। यह ज्ञातव्य है कि जहां श्राद्ध में विद्वान् ब्राह्मण को आमन्त्रित करने पर बल दिया गया है वहीं कुछ स्मृतियों द्वारा उसे व्यवहृत करने में बाधा भी उपस्थित कर दी गयी है । यथा सपिण्डन ( जो बहुधा मृत्यु के उपरान्त एक वर्ष में किया जाता है) के उपरान्त तीन वर्षों तक शुद्धताकांक्षी व्यक्ति को किसी श्राद्ध में भोजन नहीं करना चाहिए, प्रथम वर्ष में श्राद्ध-भोजन खाने से व्यक्ति मृत की अस्थियाँ एवं मज्जा खाता है, दूसरे वर्ष में उसका मांस, तीसरे वर्ष में रक्त; ३२. तत्रैकस्मिन्नहनि क्रमेण मृतानां मरणक्रमेणकेन कर्त्रा श्राद्धं कर्तव्यम् । तदाह ऋष्यशृंगः । कृत्वा पूर्वमृतस्यादी द्वितीयस्य ततः पुनः । तृतीयस्य ततः कुर्यात्संनिपाते त्वयं क्रमः ॥ भवेद्यदि सपिण्डानां युगपन्मरणं तदा । सम्बन्धासत्तिमालोच्य तत्क्रमाच्छ्राद्धमाचरेत् ॥ पृथ्वीचन्द्रोदय, पांडुलिपि २६५; जाबालि :- पित्रोस्तु मरणं चेत्स्यावेक देव यद तदा । पितुर्दाहादिकं कृत्वा पश्चान्मातुः समाचरेत् ॥ वही (पांडुलिपि २६६ ) । ३३. वेये पितॄणां श्राद्धे तु आशौचं जायते यदि । आशौचे तु व्यतिक्रान्ते तेभ्यः श्राद्धं प्रदीयते । एकोद्दिष्टे तु सम्प्राप्ते यदि विघ्नः प्रजायते । मासेऽन्यस्मिंस्तियौ तस्यां श्राद्धं कुर्यात्प्रयत्नतः ॥ ऋष्यश्रृंग (अपरार्क, पृ० ५६१; श्रा० कि० कौ०, पृ० ४८०; मदन पारिजात पृ० ६१८ ) । और देखिए स्कन्द० (७।१।२०६ ) एवं गरुड़० ४५।९)। ३४. मासिकाब्दे तु सम्प्राप्ते त्वन्तरा मृतसूतके । वदन्ति शुद्ध तत्कार्यं वरों वापि विचक्षणाः । ष‌ट्त्रिंशन्मत ( अपरार्क, पृ० ५६१) ; मासिकान्यु वकुम्भानि श्राद्धानि प्रसवेषु च । प्रतिसंवत्सरं श्राद्धं सूतकानन्तरं विदुः ॥... • एकादश्यां कृष्णपक्षे कर्तव्यं शुभमिच्छता । तत्र व्यतिक्रमे हेतावमायां क्रियते तु तत् ॥ पद्म० ( पातालखण्ड १०१।६८ एवं ७१ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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