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________________ नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्धों का काल १२१७ जब व्यक्ति दुःस्वप्न देखे और सभी बुरे ग्रह उसके जन्म के नक्षत्र को प्रभावित कर दें। ग्रहण में श्राद्ध का उपयुक्त समय स्पर्शकाल का है (अर्थात् जब ग्रहण का आरम्भ होता हो); यह बात वृद्ध वसिष्ठ के एक श्लोक में आती है । ब्रह्मपुराण (२२०१५१-५४) में याज्ञवल्क्य द्वारा सभी कालों एवं कुछ और कालों का वर्णम पाया जाता है। और देखिए स्कन्द० (७१।३०-३२), विष्णुपुराण (३।१४।४-६), पद्म० (सृष्टि ९।१२८-१२९)। विष्णुध० सू० (७६।१-२) के मत से अमावास्या, तीन अष्टकाएँ एवं तीन अन्वष्टकाएँ, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जिस दिन चन्द्र मघा नक्षत्र में होता है, शरद् एवं वसंत श्राद्ध के लिए नित्य कालों के द्योतक हैं और जो व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध नहीं करता वह नरक में जाता है। विष्णुध० सू० (७७।१-७) का कहना है कि जब सूर्य एक राशि से दूसरी में जाता है, दोनों विषुवीय दिन, विशेषतः उत्तरायण एवं दक्षिणायन के दिन, व्यतीपात, कर्ता के जन्म की राशि, पुत्रोत्पत्ति आदि के उत्सवों का काल—आदि काम्य काल हैं और इन अवसरों पर किया गया श्राद्ध (पितरों को) अनन्त आनन्द देता है। कूर्म० (उत्तरार्ध १६॥६-८) का कथन है कि काम्य श्राद्ध ग्रहणों के समय, सूर्य के अयनों के दिन एवं व्यतीपात पर करने चाहिए, तब वे (पितरों को) अपरिमित आनन्द देते हैं। संक्रांति पर किया गया श्राद्ध अनन्त काल-स्थायी होता है, इसी प्रकार जन्म के दिन एवं कतिपय नक्षत्रों में श्राद्ध करना चाहिए। आप० ध० सू० (२।७।१६।८-२२), अनुशासन पर्व (८७), वायु० (९९।१०-१९), याज्ञ० (१।२६२-२६३), ब्रह्म० (२२०।१५।२१), विष्णुध० सू० (७८१३६-५०), कूर्म० (२।२०।१७-२२), ब्रह्माण्ड ० (३।१७।१०-२२) ने कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावास्या तक किये गये श्राद्धों के फलों का उल्लेख किया है। ये फलसूचियाँ एक-दूसरी से पूर्णतया नहीं मिलतीं। आपस्तम्ब द्वारा प्रस्तुत सूची, जो सम्भवतः अत्यन्त प्राचीन है, यहाँ प्रस्तुत की जा रही है-कृष्णपक्ष की प्रत्येक तिथि में किया गया श्राद्ध क्रम से अधोलिखित फल देता है-संतान (मुख्यतः कन्याएँ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को), पुत्र जो चोर होंगे, पुत्र जो वेदज्ञ और वैदिक व्रतों को करनेवाले होंगे, पुत्र जिन्हें छोटे घरेलू पशु प्राप्त होंगे, बहुत-से पुत्र जो (अपनी विद्या से) यशस्वी होंगे और कर्ता संततिहीन नहीं मरेगा, बहुत बड़ा यात्री एवं जुआरी, कृषि में सफलता, समृद्धि, एक खुर वाले पशु, व्यापार में लाभ, काला लौह, काँसा एवं सीसा, पशु से युक्त पुत्र, बहुत-से पुत्र एवं बहुत-से मित्र तथा शीघ्र ही मर जानेवाले सुन्दर लड़के, शस्त्रों में सफलता (चतुर्दशी को) एवं सम्पत्ति (अमावास्या को)। गार्ग्य (परा० मा० ११२, पृ० ३२४) ने व्यवस्था दी है कि नन्दा, शुक्रवार, कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जन्म नक्षत्र और इसके एक दिन पूर्व एवं पश्चात् वाले नक्षत्रों में श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि पुत्रों एवं सम्पत्ति के नष्ट हो जाने का डर होता है। अनुशासन पर्व ने व्यवस्था दी है कि जो व्यक्ति त्रयोदशी को श्राद्ध करता है वह पूर्वजों में श्रेष्ठ पद की प्राप्ति करता है किन्तु उसके फलस्वरूप घर के युवा व्यक्ति मर जाते हैं। विष्णुध० सू० (७७।१-६) द्वारा वर्णित दिनों में किये जानेवाले श्राद्ध नैमित्तिक हैं और जो विशिष्ट तिथियों एवं सप्ताह के दिनों में कुछ निश्चित इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये जाते हैं, वे काम्य श्राद्ध कहे जाते हैं। परा० मा० (१।१, पृ० ६३) के मत से नित्य कर्मों का सम्पादन संस्कारक (जो मन को पवित्र बना दे और उसे शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करे) कहा जाता है, किन्तु कुछ परिस्थितियों में यह अप्रत्यक्ष अन्तहित रहस्य (परम तत्त्व) की जान (२००३१२१)का कहना है कि वह श्राव, जिसमें हाथी के कान पंखा झलने का काम करते हैं, सहस्रों कल्प तक संतुष्टि देता है। अपरार्क (पृ० ४२७) ने महाभारत से उद्धरण देकर कहा है कि वर्षा ऋतु में गज की छाया में और गज के कानों द्वारा पंखा झलते समय बाद किया जाता है, इसमें जो मांस अर्पित किया जाता है वह लोहित रंग के बकरे का होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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