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________________ -१६ - ३००-५०० (ई० उ०) ३००-६०० (ई० उ०) ४००-६०० (ई० उ०) ५००-५५० (ई० उ०) ६००-६५० (ई० उ०) ६५०-६६५ (ई० उ०) ६५०-७०० (ई० उ०) ६००-९०० (ई० उ०) ७८८-८२० (ई० उ०) ८००-८५० (ई० उ०) ८०५-९०० (ई० उ०) ९६६. (ई० उ०) १०००-१०५० (ई० उ०) १०८०-११०० (ई० उ०) १०८०-११०० (ई० उ०) ११००-११३० (ई० उ०) : व्यवहार आदि पर बृहस्पतिस्मृति (अभी तक इसकी प्रति नहीं मिल सकी है)। ऐस० बी० ई० (जिल्द ३३) में व्यवहार के अंश अनूदित हैं, प्रो. रंगस्वामी आयंगर ने धर्म के बहुत से विषय संगृहीत किये हैं जो गायकबाड़ ओरिएण्टल सीरीज द्वारा प्रकाशित हैं। : कुछ विद्यमान पुराण, यथा-वायु०, विष्णु, मार्कण्डेय०, मत्स्य, कूर्मः । : कात्यायनस्मृति (अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है)। : वराहमिहिर, पञ्चसिद्धान्तिका, बृहत्संहिता, बृहज्जातक आदि के लेखक । : कादम्बरी एवं हर्षचरित के लेखक बाण।। : पाणिनि की अष्टाध्यायी पर काशिका'-व्याख्याकार वामन जयादित्य । : कुमारिल का तन्त्रवार्तिक। : अधिकांश स्मृतियाँ, यथा-पराशर, शंख, देवल तथा कुछ पुराण, यथा अग्नि०, गरुड़ : महान् अद्वैतवादी दार्शनिक शंकराचार्य। : याज्ञवल्क्यस्मृति के टीकाकार विश्वरूप । : मनुस्मृति के टीकाकार मेघातिथि। : वराहमिहिर के बृहज्जातक के टीकाकार उत्पल। : बहुत से ग्रन्थों के लेखक धारेश्वर भोज। : याज्ञवल्क्यस्मृति की टीका मिताक्षरा के लेखक विज्ञानेश्वर। : मनुस्मृति के टीकाकार गोविन्दराज। कल्पतरु या कृत्यकल्पतरु नामक विशाल धर्मशास्त्र विषयक निबन्ध के लेखक लक्ष्मीधर। : दायभाग, कालविवेक एवं व्यवहारमातृका के लेखक जीमूतवाहन । : प्रायश्चित्तप्रकरण एवं अन्य ग्रन्थों के रचयिता मवदेव मट्ट। : अपरार्क, शिलाहार राजा ने याज्ञवल्क्यस्मृति पर एक टीका लिखी। : भास्कराचार्य, जो सिद्धान्तशिरोमणि के, जिसका लीलावती एक अंश है, प्रणेता हैं। : सोमेश्वर देव का मानसोल्लास या अभिलषितार्थचिन्तामणि। : कल्हण की राजतरंगिणी। : हारलता एवं पितृदयिता के प्रणेता अनिरुद्ध भट्ट। : श्रीधर का स्मृत्यर्थसार। : मनुस्मृति के टीकाकार कुल्लूक। : गौतम एवं आपस्तम्ब धर्मसूत्रों तथा कुछ गृह्यसूत्रों के टीकाकार हरवत्त। : देवण्ण भट्ट की स्मृतिचन्द्रिका। : धनञ्जय के पुत्र, ब्राह्मणसर्वस्व के प्रणेता हलायुध । : हेमाद्रि की चतुर्वर्गचिन्तामणि । ११००-११५० (ई० उ०) ११००-११५० (ई० उ०) ११००-११३० (ई० उ०) १११४-११८३ (ई० उ०) ११२७-११३८ (ई० उ०) ११५०-११६० (ई० उ०) ११५०-११८० (ई० उ०) ११५०-१२०० (ई० उ०) ११५०-१३०० (ई० उ०) ११५०-१३०० (ई० उ०) १२००-१२२५ (ई० उ०) ११७५-१२०० (ई० उ०) १२६०-१२७० (ई० उ०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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